Tuesday, 25 July 2017

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Friday, 24 March 2017

Make Money With Affiliate Marketing

Make Money With Affiliate Marketing



Do friends often purchase products based on your feedback? Do you love writing reviews on sites like Amazon? You might have a future in affiliate marketing! As an affiliate marketer, you'll be able to earn a commission for products you convince people to buy online. Read on, to learn what you should know before you get started.

To increase the success of your affiliate marketing, make certain that the affiliate program with which you join uses cookie tracking. This will ensure that you will be credited for all the purchases made by people who buy items on their second or subsequent visit to the affiliate company's site.

Consider putting a list in your side bar listing all the top-selling items from your website for the month. This will get the content onto every one of your pages, giving it more exposure, and ensure that everyone is able to see the items they're most likely to buy anyway.

Change your ads around every once in a while. Visitors can get very bored seeing the same ads over and over again. However, don't pick just any ad. Research your affiliates and make sure they are trustworthy and relevant. There are many options out there, and your choices should both reflect the interest of your visitors and be connected to your niche.

Making and keeping a list of ideas nearby is a good way to achieve success in affiliate marketing. Once you research a good tip or have one of those proverbial light bulb moments, always remember to make a note of it so you can refer to it later on. As you progress in your note-keeping you can begin to form campaigns from loose ideas.

Creating a content site is one filled with useful information, resources and tips and, which is not overtly a sales site. A site with good content will rank well with the free search engines. You can submit to the main paid submission engines such as Yahoo and Looksmart, also to the Open Directory which is free, and be confident it will be approved. (In contrast a one-page site is unlikely to get approval). You gain recognition as an authority in your niche, and others may recommend your site or will link to your site in order to provide useful material for their own visitors. You can refer to it in forum postings without sounding like an ad.

Use your intelligence when you see something that is too good to be true. If you see something that sounds like this it probably leverages off of a scam. Do all of your research on legitimate products as you should never want to throw your money away with a deal that will rarely materialize.

Don't get too comfortable! Take advantage of new affiliate programs and trends! Check and see the latest updates of your affiliate programs. There are constantly new ads and tools being added to increase usability and visual appeals. Even small differences - like keeping your site trendy - can have a huge effect on your readers.

Use contests as a way to sign up subscribers to your email newsletters. One of the most difficult things these days is getting people to willingly provide an email address. By providing an incentive for signing up you can increase your odds of getting new eyes on your email campaigns.

There's no reason not to give affiliate marketing a try. It won't take much for you to get started, and the information given in this article will put you on the fast track to affiliate marketing success. Don't be afraid to take your sales skills to the next level and make a career out of affiliate marketing!

अपना जीवन - लघुकथा

अपना जीवन




जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए फिर शुरू हुई नोकरी की खोज ये नहीं वो , दूर नहीं पास ऐसा करते करते 2 .. 3 नोकरियाँ छोड़ने एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।
फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 27 हो गयी।
और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के 2 ..  4 साल नर्म , गुलाबी, रसीले , सपनीले गुजरे हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए।
और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना - बैठना, खाना - पीना, लाड - दुलार
समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।
इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते- करना घूमना - फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही चला।
बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी....
इतने में मैं 37 का हो गया। घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।
इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब 10वि   anniversaryआई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही 40 42 के हो गए। बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया।
एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"
उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि " तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे बातो की सूझ रही है।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।
तो फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।
बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में शुन्य बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेश।
उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे चश्मा भी लग गया। मैं खुद बुढा हो गया। वो भी उमरदराज लगने लगी।
दोनों 55 से 60 की और बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।
अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।
एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक के फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था। जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा।
उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना। और आप भी वही रह लेना। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।
मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी पूजा ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं"
वो तुरंत बोली " अभी आई"
मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा ख़ुशी से चमक उठा। आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया। हमेशा के लिए !!
उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी " बोलो क्या बोल रहे थे?"
लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।
क्षण भर को वो शून्य हो गयी।
" क्या करू? "
उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। इश्वर को प्रणाम किया। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।
मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली
" चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे ? क्या बातें करनी हैं तुम्हे?" बोलो !!
ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......
वो एकटक मुझे देखती रही। आँखों से अश्रु धारा बह निकली। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।
क्या ये ही जिन्दगी है ? ?
सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।

Wednesday, 22 March 2017

वसीयत

एक दौलतमंद इंसान ने अपने बेटे को वसीयत देते हुए कहा,
"बेटा मेरे मरने के बाद मेरे पैरों में ये फटे हुऐ मोज़े (जुराबें) पहना देना, मेरी यह इक्छा जरूर पूरी करना ।
पिता के मरते ही नहलाने के बाद, बेटे ने पंडितजी से पिता की आखरी इक्छा बताई ।
पंडितजी ने कहा: हमारे धर्म में कुछ भी पहनाने की इज़ाज़त नही है।
पर बेटे की ज़िद थी कि पिता की आखरी इक्छ पूरी हो ।
बहस इतनी बढ़ गई की शहर के पंडितों को जमा किया गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला ।
इसी माहौल में एक व्यक्ति आया, और आकर बेटे के हाथ में पिता का लिखा हुआ खत दिया, जिस में पिता की नसीहत लिखी थी
_"मेरे प्यारे बेटे"_
देख रहे हो..? दौलत, बंगला, गाड़ी और बड़ी-बड़ी फैक्ट्री और फॉर्म हाउस के बाद भी, मैं एक फटा हुआ मोजा तक नहीं ले जा सकता ।
एक रोज़ तुम्हें भी मृत्यु आएगी, आगाह हो जाओ, तुम्हें भी एक सफ़ेद कपडे में ही जाना पड़ेगा ।
लिहाज़ा कोशिश करना,पैसों के लिए किसी को दुःख मत देना, ग़लत तरीक़े से पैसा ना कमाना, धन को धर्म के कार्य में ही लगाना ।
सबको यह जानने का हक है कि शरीर छूटने के बाद सिर्फ कर्म ही साथ जाएंगे"। लेकिन फिर भी आदमी तब तक धन के पीछे भागता रहता है जब तक उसका निधन नहीं हो जाता।

Thursday, 16 March 2017

Want Excellence? Learn to take Ownership.

Want Excellence? 

Learn to take Ownership.




Are you trying to lead a life where you are committed to displaying excellence in everything that you do? This is a wonderful way to lead your life. One way to reach this point is by taking ownership and responsibility for all of your actions.
Once you 'own' your choices and accept the consequences you will be viewed as a person who can be respected. Other people will see you as someone who can be counted on, and this is a huge trait to own.
The easiest way to display ownership is by not making excuses. If you were late for an appointment don't come up with a ridiculous excuse. Tell the other person why you were late, apologize for not calling to let them know.
It really is so easy to blame outside influences for your mistakes or oversights. While no-one can control one hundred percent of what happens, you can control how you respond to certain situations. This reaction can completely change your life.
Examples of things you can take ownership for include your relationships, your education, your fitness and your social life. As you start to take ownership you will find that you feel more confident and have a purpose in life.

Along with ownership you need to learn how to be flexible. Are you currently willing to do things differently? This means not being stubborn when something isn't working. Take advice and attempt to change what you are doing. If you do you will begin to excel at more tasks and this helps increase your confidence and self-esteem.
Becoming a flexible person means that you are happy to respond to a situation in a different way. When you are flexible you are not rigid and set in your ways.

This brings us to another important factor in the quest to committing to excellence with everything you do. This is the step of adding balance to your life.
When you live a balanced life you are focusing on those things that hold meaning to you. At the same time, though, you are still mindful of those around you. You make choices that are related to the way you feel and what you are thinking.

Balancing your life entails knowing when you have to not go out with friends so you can finish up an important project. You recognize the importance of staying healthy and fit and act accordingly.

When you combine taking ownership, being flexible, and balance, into your life you will be well on your way to leading a life where you are committed to excellence. 

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