Friday, 25 October 2013

लक्ष्य क्यों, क्या, कैसे निर्धारित करें? - Goal Setting

नमस्कार दोस्तों!

अपने पिछले लेख में मैंने आपसे कहा था, एक सुन्दर सी डायरी खरीद कर उसमे वह सब कुछ लिखें जो आप पाना चाहते हैकब तक पाना चाहते हैं. कैसे पाना है यह सब आपको नहीं लिखना है. इस डायरी में सबसे पहले आपको पहले लक्ष्य (goals) लिखने है. बिल्कुल साफ़ साफ़, स्पष्ट शब्दों में कि आप क्या-क्या प्राप्त करना चाहते हैं? कब तक प्राप्त करना चाहते हैं? निर्धारित कर लीजिये. यदि आपने अपना लक्ष्य निर्धारित कर रखा है, तो सोने पर सुहागा है. परन्तु यदि आपने अब तक अपना लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है, तो भी बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है. क्योंकि आप अब भी अपने लक्ष्य निर्धारित कर सकते है. वो कहते हैं ना कि "जब जागो तभी सवेरा". 

लक्ष्यहीन होना बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई व्यक्ति घर से निकले, बिना यह सोचे कि उसे जाना कहाँ है. जब उस व्यक्ति ने घर से निकलने से पहले यह सोचा ही नहीं कि उसे जाना कहाँ है, तो वह घर से निकल कर क्या करेगा? कहाँ जाएगा? नियति उसे कहाँ ले जायेगी उसे नहीं पता. दूसरी और एक और व्यक्ति घर से निकलते समय पहले से ही सोच कर निकलता है कि उसे ऑफिस जाना है तो वह घर से निकल कर ऑफिस पहुँच जाएगा. जब ऐसी छोटी बातों में लक्ष्य का होना ज़रूरी है, तो फिर हमारी लाइफ में क्यों नहीं? हमारी लाइफ यदि लक्ष्यहीन है तो निश्चित रूप से हमने स्वयं को नियति के भरोसे छोड़ रखा है. तो दोस्तों देखा आपने कि लाइफ में लक्ष्य क्यों आवश्यक है?

लक्ष्य होता क्या है? जवाब बहुत आसान है. लक्ष्य एक ऐसा कार्य है जिसे हम सिद्ध करने (पूरा करने) का इरादा रखते हैं. आपका लक्ष्य क्या हो यह मैं तो क्या कोई भी आपको नहीं बता सकता. आपको अपना लक्ष्य स्वयं ही बनाना है, क्योंकि हर व्यक्ति का लक्ष्य अलग-अलग होता है. एक स्टूडेंट का लक्ष्य अच्छे नम्बरों से एग्जाम पास करना हो सकता है, किसी विशेष डिग्री को प्राप्त करना हो सकता है. किसी व्यापारी का लक्ष्य और अधिक धन कमाना हो सकता है, कोई नया व्यवसाय शुरू करना हो सकता है. नई कम्पनी खड़ी करना हो सकता है. किसी नौकरी-पेशा व्यक्ति का लक्ष्य प्रमोशन पाना हो सकता है. किसी हाउस-वाइफ का लक्ष्य कोई घरेलु व्यवसाय शुरू करना हो सकता है. वगैरा-वगैरा.

पर यह सब लक्ष्य नहीं हैं. यह सब केवल इच्छाएं हैं. यह इच्छाएं ही लक्ष्य बन सकती हैं
, अगर इनमे कुछ बदलाव किये जाएँ तो. उदाहरण के लिए किसी स्टूडेंट का अच्छे मार्क्स से एग्जाम पास करने की इच्छा उसका लक्ष्य बन सकती है अगर वह यह निर्धारित करे कि उसे इस बार एग्जाम 80% या 90% या 95% मार्क्स से पास करना है. यदि कोई व्यवसायी या बिजनेसमैन ये कहता है की उसे अधिक धन कमाना है और आप उसे 500 रुपये दे कर कहें लीजिये अब आपके पास अधिक धन हो गया. तो क्या यही उसका लक्ष्य था? नहीं ना. पर जब वह व्यवसायी यह कहता है कि उसे हर वर्ष 20 लाख या 50 लाख या एक करोड़ रुपये कमाने हैं, तब उसकी अधिक धन कमाने की इच्छा उसका लक्ष्य बन जाती है. वह कोई नया व्यवसाय शुरू करना चाहता है, पर कब तक? जब तक इस कार्य के लिए वह कोई समय सीमा निर्धारित नहीं करता, तब तक यह केवल उसकी इच्छा है, लक्ष्य नहीं. अर्थात जब तक किसी भी इच्छा को स्पष्ट (specify) नहीं किया जाता, उसे समय-बद्द नहीं किया जाता, वह केवल इच्छा है लक्ष्य नहीं.

दोस्तों अब हमें यह पता लग गया है की लक्ष्य क्या होते हैं? पर क्या इस बात से हमारा काम पूरा हो गया? नहीं. यदि आपने अपना लक्ष्य निर्धारित कर रखा है तब भी आपको समय समय पर उसका मूल्यांकन करते रहना है, जिससे कि उसे प्राप्त करने में आपको आसानी रहे. और यदि आपने अपना लक्ष्य अभी निर्धारित करना है तो आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना है, यह हमें जानना है.

आपको अपना लक्ष्य निर्धारित करने में जिन बातों का विशेष ध्यान रखना है, उनमें सबसे पहले आती है स्पष्टता. आपका लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिये. उसे सुनने या पढने के बाद उसे लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए. अगर कोई स्टूडेंट कहता है कि उसे “अच्छे मार्क्स लाने हैं ” तो ये बात स्पष्ट नहीं है कि वह किस विषय या एग्जाम की बात कर रहा है जिसमे उसे अच्छे मार्क्स लाने हैं . और अच्छे से क्या मतलब हैकिसी के लिए 100 में 60 भी अच्छा हो सकता है तो किसी के लिए 100 में से 80 भी अच्छा नहीं सकता. इसी तरह मानलो आपका लक्ष्य है एक सफल आदमी बनना. पर जब आप यह नहीं बता पायें कि किस क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं, तो आप अपने लक्ष्य को लेकर स्पष्ट नहीं हैं , और जब लक्ष्य स्पष्ट ही ना हो तो उसके प्राप्त होने का सवाल ही नहीं पैदा होता.

आपका लक्ष्य ऐसा होना चाहिए जिसे किसी मापा जा सके, परिभाषित किया जा सके. यानि उस लक्ष्य के साथ कोई संख्या कोई माप का पैमाना जुड़ा होना चाहिए. जैसे कि यदि कोई कहता है की उसका लक्ष्य अधिक धन कमाना है तो सवाल उठता है की कितना अधिक कमाना है? क्या उस व्यक्ति को यदि कोई 500 या 1000 रुपये और देदे, तो क्या उसका लक्ष्य पूरा हो जाएगा? नहीं नानिश्चित तौर पर उसका लक्ष्य लाखों-करोड़ों में होगा. मगर कितना? यह निर्धारित करना लक्ष्य निर्धारण में ज़रूरी है. लक्ष्य के साथ जब कोई पैमाना जुड़ जाता है, तो आप अपनी तरक्की को नाप सकते हैं, और ये जान सकते हैं की आपने अपना लक्ष्य सही तरह से प्राप्त किया या नहीं? जब तक आप अपने लक्ष्य को नाप नहीं सकते तब तक आप उसे प्राप्त नहीं कर सकते.

आपका लक्ष्य साध्य (जिसे प्राप्त किया जा सके) होना चाहिए. यदि आप कोई ऐसा लक्ष्य बनाएँगे जो आपको स्वयं ही असाध्य लगे, तो ऐसे लक्ष्य का कोई लाभ नहीं है. क्योंकि जब आप कोई असाध्य लक्ष्य निर्धारित करते हैं तो आपका अवचेतन मन (sub-conscious mind) आपको तुरन्त कहेगा कि ये तो असंभव है. ऐसे लक्ष्य का कोई अर्थ नहीं है. हमारा अवचेतन मन, हमारे चेतन मन से कहीं अधिक शक्तिशाली होता है. यदि आप चेतन मन से कोई असाध्य लक्ष्य बनायेंगे और अवचेतन मन आपका साथ नहीं देगा ऐसे लक्ष्य के पूरे होने के आसार तो नहीं के बराबर होंगे. मान लीजिये आप यह तय करते हैं, कि इस दिसम्बर तक आपको एक करोड़ रुपये कमाने है, जब कि आप अब तक कुछ हज़ार रुपये मासिक से आगे भी नहीं बढ़ पाए, तो आपका अवचेतन मन इस लक्ष्य को तुरंत नकार देगा. हाँ अगर आप एक दो लाख रुपये दिसम्बर तक कमाने का लक्ष्य रखते हैं तो आपके सफल होने की संभावना कहीं अधिक होगी. दोस्तों यहाँ मैं आपको निराश नहीं करना चाहता. मेरे कहने का अर्थ है कि आप छोटे-छोटे लक्ष्य बनाते चलिए, उन्हें पूरा करते चलिए और आगे बढ़ते रहिये.

इस बात का ध्यान रहे कि आपका लक्ष्य आपके लिए यथार्थवादी (realistic) होना चाहिए. नहीं समझे? साध्य (achievable) और यथार्थवादी (realistic) के बीच एक बहुत हल्का सा अंतर है. आपका realistic लक्ष्य achievable हो सकता हैपर जो लक्ष्य achievable है वो realistic भी हो ऐसा ज़रूरी नहीं है. ओलंपिक्स में स्वर्ण-पदक प्राप्त करना एक achievable लक्ष्य है, पर यदि आपने अब तक प्रक्टिस नहीं की है और ओलंपिक्स में कुछ ही दिन बचे हैं तो ये unrealistic लक्ष्य होगा की आप स्वर्ण-पदक जीत पायें. लक्ष्य हमेशा अपनी क्षमता के हिसाब से बनाएं. एक बात यह भी है कि कोई काम किसी अन्य व्यक्ति के लिए realistic हो सकता है, पर हो सकता है आपके लिए न हो. इसलिए आपको बहुत सावधानी से अपने लक्ष्य निर्धारित करने हैं, क्योंकि इसका सीधा असर आपके विचारों और आपकी सोच और आपके भविष्य पर पड़ने वाला है.

समय-बद्धता (time-bounding) आपके लक्ष्य का एक अभिन्न अंग होना आवश्यक है. जब आप किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित कर देते हैं तभी वह लक्ष्य आपके लिए अत्यावश्यक बनता है, और आप उसे प्राप्त करने के लिए सही दिशा में जोश के साथ प्रयत्न करते हैं. मैं यहाँ फिर से ओलंपिक्स का उदाहरण देना चाहूंगा. ओलंपिक्स प्रतियोगिता हर 4 वर्ष बाद होती है. हर खिलाड़ी इसी समय-सीमा को ध्यान में रख कर अभ्यास करता है. मान लीजिये आप ने एक करोड़ रुपये कमाने का लक्ष्य रखा है. यह कोई लक्ष्य नहीं है. पर जब आप यह कहते हैं कि इस वर्ष आपको एक करोड़ रुपये कमाने हैं, या हर वर्ष कमाने हैं, तो यह लक्ष्य है.

एक बार फिर जल्दी से समझ लें लक्ष्य निर्धारण में किन-किन बातों का ध्यान रखना है:
- लक्ष्य हमेशा स्पष्ट होने चाहियें.
- लक्ष्य मापने योग्य होने चाहियें.
- लक्ष्य साध्य (achievable) होने चाहियें.
- लक्ष्य यथार्थवादी (realistic) होने चाहियें.
- लक्ष्य हमेशा समय-बद्ध होने चाहिए.

दोस्तों जब आपने अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए तो समझ लीजिये की आपने आधी जंग जीत ली. विश्वास रखिये बाकी आधी भी जीत लेंगे. 


अपने सपनों को साकार करने के लिये मेरे आर्टिकल्स पढ़ते रहियेअपनी राय मुझे कमेंट्स के माध्यम से भेजते रहिये. तब तक के लिए शुभ-रात्रि, good-night, शब्बाखैर.  - CA बी. एम्. अग्रवाल

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