Wednesday 30 April 2014

आधा कम्बल


एक जमींदार था वह अपने माता पिता की परवाह नहीं करता था. उनके एक बेटा था. उससे वह बहुत प्यार करता था. बेटे को अपने दादा दादी बहुत प्यार करते थे. पोता अपने दादा दादी की बहुत सेवा करता था. एक बार सर्दी बहुत ज्यादा हो गई. जमींदार के पिता ने उससे एक गर्म कपड़ा माँगा, जमींदार को उनका माँगना अच्छा नहीं लगा. उसने बहुत सोच कर अपने बेटे को कहा कि कबाड़ के कमरे में एक पुराना कम्बल पड़ा है वह इनको ला क दे दो. जमींदार का बेटा गया और कम्बल ला कर उसने अपने दादा को दे दिया.  दादा ने देखा कि वह तो आधा है. जमींदार के पिता ने अपने बेटे को कहा कि यह तो आधा है इससे ठण्ड कैसे रुकेगी. जमींदार ने अपने बेटे से कहा बेटा आपने कम्बल आधा क्यों दिया है. इस पर बेटे ने जमींदार से कहा कि जब आप बूढ़े हो जाएगे और आप मुझसे कम्बल मांगेंगे तब मैं कहा देखता रहूँगा इसलिए मैंने आज ही आपके लिए बंदोबस्त कर लिया है.

प्रेम का असर

एक दिन एक चोर किसी महिला के कमरे में घुस गया. महिला अकेली थी, चोर ने छुरा दिखाकर कहा - "अगर तू शोर मचाएगी तो मैं तुझे मार डालूंगा."

महिला बड़ी भली थी वह बोली - "मैं शोर क्यों मचाऊंगी? तुमको मुझसे ज्यादा चीजों की जरूरत है. आओ, मैं तुम्हारी मदद करूंगी."

उसके बाद उसने अलमारी का ताला खोल दिया और एक-एक कीमती चीज उसके सामने रखने लगी. चोर हक्का-बक्का होकर उसकी ओर देखने लगा. स्त्री ने कहा - "तुम्हें जो-जो चाहिए खुशी से ले जाओ, ये चीजें तुम्हारे काम आएंगी. मेरे पास तो बेकार पड़ी हैं."

थोड़ी देर में वह महिला देखती क्या है कि चोर की आंखों से आंसू टपक रहे हैं और वह बिना कुछ लिए चला गया. अगले दिन उस महिला को एक चिट्ठी मिली. उस चिट्ठी में लिखा था -- 'मुझे घृणा से डर नहीं लगता. कोई गालियां देता है तो उसका भी मुझ पर कोई असर नहीं होता. उन्हें सहते-सहते मेरा दिल पत्थर-सा हो गया है, पर मेरी प्यारी बहन, प्यार से मेरा दिल मोम हो जाता है. तुमने मुझ पर प्यार बरसाया. मैं उसे कभी नहीं भूल सकूंगा.'

लालच बुरी बला

किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था. उसकी खेती साधारण ही थी, अतः अधिकांश समय वह खाली ही रहता था. एक बार ग्रीष्म ऋतु में वह इसी प्रकार अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था.

सोए-सोए उसने अपने समीप ही सर्प का बिल देखा, उस पर सर्प फन फैलाए बैठा था. उसको देखकर वह ब्राह्मण विचार करने लगा कि हो-न-हो, यही मेरे क्षेत्र का देवता है. मैंने कभी इसकी पूजा नहीं की. अतः मैं आज अवश्य इसकी पूजा करूंगा.

यह विचार मन में आते ही वह उठा और कहीं से जाकर दूध मांग लाया. उसे उसने एक मिट्टी के बरतन में रखा और बिल के समीप जाकर बोला, “हे क्षेत्रपाल! आज तक मुझे आपके विषय में मालूम नहीं था, इसलिए मैं किसी प्रकार की पूजा-अर्चना नहीं कर पाया. आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए.इस प्रकार प्रार्थना करके उसने उस दूध को वहीं पर रख दिया और फिर अपने घर को लौट गया.

दूसरे दिन प्रातःकाल जब वह अपने खेत पर आया तो सर्वप्रथम उसी स्थान पर गया. वहां उसने देखा कि जिस बरतन में उसने दूध रखा था उसमें एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई है. उसने उस मुद्रा को उठाकर रख लिया. उस दिन भी उसने उसी प्रकार सर्प की पूजा की और उसके लिए दूध रखकर चला गया. अगले दिन प्रातःकाल उसको फिर एक स्वर्णमुद्रा मिली.

इस प्रकार अब नित्य वह पूजा करता और अगले दिन उसको एक स्वर्णमुद्रा मिल जाया करती थी. कुछ दिनों बाद उसको किसी कार्य से अन्य ग्राम में जाना पड़ा. उसने अपने पुत्र को उस स्थान पर दूध रखने का निर्देश दिया. तदानुसार उस दिन उसका पुत्र गया और वहां दूध रख आया. दूसरे दिन जब वह पुनः दूध रखने के लिए गया तो देखा कि वहां स्वर्णमुद्रा रखी हुई है.

उसने उस मुद्रा को उठा लिया और वह मन ही मन सोचने लगा कि निश्चित ही इस बिल के अंदर स्वर्णमुद्राओं का भण्डार है. मन में यह विचार आते ही उसने निश्चय किया कि बिल को खोदकर सारी मुद्राएं ले ली जाएं.

सर्प का भय था. किन्तु जब दूध पीने के लिए सर्प बाहर निकला तो उसने उसके सिर पर लाठी का प्रहार किया. इससे सर्प तो मरा नहीं और इस प्रकार से क्रुद्ध होकर उसने ब्राह्मण-पुत्र को अपने विषभरे दांतों से काटा कि उसकी तत्काल मृत्यु हो गई. उसके सम्बधियों ने उस लड़के को वहीं उसी खेत पर जला दिया. कहा भी जाता है लालच का फल कभी मीठा नहीं होता है.