आवाज ने खोला भेद
किसी नगर में एक धोबी रहता था. अच्छा चारा न मिलने के कारण उसका गधा बहुत कमजोर हो गया था. एक दिन धोबी को जंगल में बाघ की एक खाल मिल गई. उसने सोचा कि रात में इस खाल को ओढ़ाकर मैं गधे को खेतों में छोड़ दिया करुँगा.
किसी नगर में एक धोबी रहता था. अच्छा चारा न मिलने के कारण उसका गधा बहुत कमजोर हो गया था. एक दिन धोबी को जंगल में बाघ की एक खाल मिल गई. उसने सोचा कि रात में इस खाल को ओढ़ाकर मैं गधे को खेतों में छोड़ दिया करुँगा.
गाँववाले इसे बाघ समझेंगे और डर से इसके पास नहीं आएँगे. खेतों में चरकर यह खूब मोटा-ताजा हो जाएगा.
एक रात गधा बाघ की खाल ओढ़े खेत में चर रहा था. तभी उसने दूर से किसी गधी का रेंकना सुना. उसकी आवाज सुनकर गधा प्रसन्न हो उठा और मौज में आकर स्वयं भी रेंकने लगा.
गधे की आवाज सुनते ही खेतों के रखवालों ने उसे घर लिया और पीट-पीटकर जान से मार डाला. इसलिए कहते हैं अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए. कभी-कभी यह खतरनाक भी साबित होता है.
चंचलता से बुद्धि का नाश
किसी तालाब में कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ रहता था. तालाब के किनारे रहने वाले संकट और विकट नामक हंस से उसकी गहरी दोस्ती थी. तालाब के किनारे तीनों हर रोज खूब बातें करते और शाम होने पर अपने-अपने घरों को चल देते.
एक वर्ष उस प्रदेश में जरा भी बारिश नहीं हुई. धीरे-धीरे वह तालाब भी सूखने लगा. अब हंसों को कछुए की चिंता होने लगी.
जब उन्होंने अपनी चिंता कछुए से कही तो कछुए ने उन्हें चिंता न करने को कहा. उसने हंसों को एक युक्ति बताई. उसने उनसे कहा कि सबसे पहले किसी पानी से लबालब तालाब की खोज करें फिर एक लकड़ी के टुकड़े से लटकाकर उसे उस तालाब में ले चलें.
उसकी बात सुनकर हंसों ने कहा कि वह तो ठीक है पर उड़ान के दौरान उसे अपना मुंह बंद रखना होगा. कछुए ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह किसी भी हालत में अपना मुंह नहीं खोलेगा.
कछुए ने लकड़ी के टुकड़े को अपने दांत से पकड़ा फिर दोनो हंस उसे लेकर उड़ चले. रास्ते में नगर के लोगों ने जब देखा कि एक कछुआ आकाश में उड़ा जा रहा है तो वे आश्चर्य से चिल्लाने लगे. लोगों को अपनी तरफ चिल्लाते हुए देखकर कछुए से रहा नहीं गया.
वह अपना वादा भूल गया. उसने जैसे ही कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोला कि आकाश से गिर पड़ा. ऊंचाई बहुत ज्यादा होने के कारण वह चोट झेल नहीं पाया और अपना दम तोड़ दिया. इसीलिए कहते हैं कि बुद्धिमान भी अगर अपनी चंचलता पर काबू नहीं रख पाता है तो परिणाम काफी बुरा होता है.
धोखेबाज का अंत
किसी स्थान पर एक बहुत बड़ा तालाब था. वहीं एक बूढ़ा बगुला भी रहता था. बुढ़ापे के कारण वह कमजोर हो गया था. इस कारण मछलियाँ पकड़ने में असमर्थ था. वह तालाब के किनारे बैठकर, भूख से व्याकुल होकर आँसू बहाता रहता था.
एक बार एक केकड़ा उसके पास आया. बगुले को उदास देखकर उसने पूछा, ‘मामा, तुम रो क्यों रहे हो? क्या तुमने आजकल खाना-पीना छोड़ दिया है?..अचानक यह क्या हो गया?’ बगुले ने बताया- ‘पुत्र, मेरा जन्म इसी तालाब के पास हुआ था. यहीं मैंने इतनी उम्र बिताई. अब मैंने सुना है कि यहाँ बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसेगा.’ केकड़े ने पूछा, ‘तुमसे ऐसा किसने कहा है?’
बगुले ने कहा- ‘मुझे एक ज्योतिषी ने यह बात बताई है. इस तालाब में पानी पहले ही कम है. शेष पानी भी जल्दी ही सूख जाएगा. तालाब के सूख जाने पर इसमें रहने वाले प्राणी भी मर जाएँगे. इसी कारण मैं परेशान हूँ.’
बगुले की यह बात केकड़े ने अपने साथियों को बताई. वे सब बगुले के पास पहुँचे. उन्होंने बगुले से पूछा-‘मामा, ऐसा कोई उपाय बताओ, जिससे हम सब बच सकें.’ बगुले ने बताया-‘यहां से कुछ दूर एक बड़ा सरोवर है. यदि तुम लोग वहाँ जाओ तो तुम्हारे प्राणों की रक्षा हो सकती है.’ सभी ने एक साथ पूछा-‘हम उस सरोवर तक पहुँचेंगे कैसे?’ चालाक बगुले ने कहा-‘मैं तो अब बूढ़ा हो गया हूँ. तुम लोग चाहो तो मैं तुम्हें पीठ पर बैठाकर उस तालाब तक ले जा सकता हूँ.’
सभी बगुले की पीठ पर चढ़कर दूसरे तालाब में जाने के लिए तैयार हो गए. दुष्ट बगुला प्रतिदिन एक मछली को अपनी पीठ पर चढ़ाकर ले जाता और शाम को तालाब पर लौट आता. इस प्रकार उसकी भोजन की समस्या हल हो गई. एक दिन केकड़े ने कहा-‘मामा, अब मेरी भी तो जान बचाइए.’ बगुले ने सोचा कि मछलियाँ तो वह रोज खाता है. आज केकड़े का मांस खाएगा. ऐसा सोचकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बैठा लिया. उड़ते हुए वह उस बड़े पत्थर पर उतरा, जहाँ वह हर दिन मछलियों को खाया करता था.
केकड़े ने वहाँ पर पड़ी हुई हड्डियों को देखा. उसने बगुले से पूछा-‘मामा, सरोवर कितनी दूर है? आप तो थक गए होंगे.’ बगुले ने केकड़े को मूर्ख समझकर उत्तर दिया-‘अरे, कैसा सरोवर! यह तो मैंने अपने भोजन का उपाय सोचा था. अब तू भी मरने के लिए तैयार हो जा. मैं इस पत्थर पर बैठकर तुझे खा जाऊँगा.’ इतना सुनते ही केकड़े ने बगुले की गर्दन जकड़ ली और अपने तेज दाँतों से उसे काट डाला. बगुला वहीं मर गया.
केकड़ा किसी तरह धीरे-धीरे अपने तालाब तक पहुँचा. मछलियों ने जब उसे देखा तो पूछा-‘अरे, केकड़े भाई, तुम वापस कैसे आ गए. मामा को कहाँ छोड़ आए? हम तो उनके इंतजार में बैठे हैं.’ यह सुनकर केकड़ा हँसने लगा. उसने बताया-‘वह बगुला महाठग था. उसने हम सभी को धोखा दिया. वह हमारे साथियों को पास की एक चट्टान पर ले जाकर खा जाता था. मैंने उस धूर्त्त बगुले को मार दिया है. अब डरने की कोई बात नहीं है. इसीलिए कहा गया है कि जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल भी होता है.’
बोलने वाली मांद
किसी जंगल में एक शेर रहता था. एक बार वह दिन-भर भटकता रहा, किंतु भोजन के लिए कोई जानवर नहीं मिला. थककर वह एक गुफा के अंदर आकर बैठ गया. उसने सोचा कि रात में कोई न कोई जानवर इसमें अवश्य आएगा. आज उसे ही मारकर मैं अपनी भूख शांत करुँगा.
उस गुफा का मालिक एक सियार था. वह रात में लौटकर अपनी गुफा पर आया. उसने गुफा के अंदर जाते हुए शेर के पैरों के निशान देखे. उसने ध्यान से देखा. उसने अनुमान लगाया कि शेर अंदर तो गया, परंतु अंदर से बाहर नहीं आया है. वह समझ गया कि उसकी गुफा में कोई शेर छिपा बैठा है. चतुर सियार ने तुरंत एक उपाय सोचा. वह गुफा के भीतर नहीं गया.
उसने द्वार से आवाज लगाई- ‘ओ मेरी गुफा, तुम चुप क्यों हो? आज बोलती क्यों नहीं हो? जब भी मैं बाहर से आता हूँ, तुम मुझे बुलाती हो. आज तुम बोलती क्यों नहीं हो?’
गुफा में बैठे हुए शेर ने सोचा, ऐसा संभव है कि गुफा प्रतिदिन आवाज देकर सियार को बुलाती हो. आज यह मेरे भय के कारण मौन है. इसलिए आज मैं ही इसे आवाज देकर अंदर बुलाता हूँ. ऐसा सोचकर शेर ने अंदर से आवाज लगाई और कहा-‘आ जाओ मित्र, अंदर आ जाओ.’आवाज सुनते ही सियार समझ गया कि अंदर शेर बैठा है. वह तुरंत वहाँ से भाग गया. और इस तरह सियार ने चालाकी से अपनी जान बचा ली.
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