Tuesday, 28 June 2016

हीरा और काँच

हीरा और काँच

एक राजा का दरबार लगा हुआ था, क्योंकि सर्दी का दिन था इसलिये राजा का दरवार खुले मे लगा हुआ था. पूरी आम सभा सुबह की धूप मे बैठी थी ..
महाराज के सिंहासन के सामने... एक शाही मेज थी... और उस पर कुछ कीमती चीजें रखी थीं.
पंडित लोग, मंत्री और दीवान आदि सभी दरबार मे बैठे थे और राजा के परिवार के सदस्य भी बैठे थे.. ..
उसी समय एक व्यक्ति आया और प्रवेश माँगा.. प्रवेश मिल गया तो उसने कहा “मेरे पास दो वस्तुएं हैं,
मै हर राज्य के राजा के पास जाता हूँ और अपनी वस्तुओं को रखता हूँ पर कोई परख नही पाता सब हार जाते है
और मै विजेता बनकर घूम रहा हूँ”.. अब आपके नगर मे आया हूँ

राजा ने बुलाया और कहा “क्या वस्तु है” तो उसने दोनो वस्तुएं.... उस कीमती मेज पर रख दीं..वे दोनों वस्तुएं बिल्कुल समान आकार, समान रुप रंग, समान प्रकाश सब कुछ नख-शिख समान था.. … ..

राजा ने कहा ये दोनो वस्तुएं तो एक हैं. तो उस व्यक्ति ने कहा हाँ दिखाई तो एक सी ही देती है लेकिन हैं भिन्न.
इनमें से एक है बहुत कीमती हीरा और एक है काँच का टुकडा।

लेकिन रूप रंग सब एक है. कोई आज तक परख नही पाया क़ि कौन सा हीरा है और कौन सा काँच का टुकड़ा..
कोइ परख कर बताये की.... ये हीरा है और ये काँच.. अगर परख खरी निकली... तो मैं हार जाऊंगा और.. यह कीमती हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे जमा करवा दूंगा.

पर शर्त यह है क़ि यदि कोई नहीं पहचान पाया तो इस हीरे की जो कीमत है उतनी धनराशि आपको मुझे देनी होगी.. इसी प्रकार से मैं कई राज्यों से जीतता आया हूँ..

राजा ने कहा मै तो नही परख सकूगा.. दीवान बोले हम भी हिम्मत नही कर सकते क्योंकि दोनो बिल्कुल समान है.. सब हारे कोई हिम्मत नही जुटा पा रहा था.. ..

हारने पर पैसे देने पडेगे... इसका कोई सवाल नही था, क्योंकि राजा के पास बहुत धन था, पर राजा की प्रतिष्ठा गिर जायेगी, इसका सबको भय था.. कोई व्यक्ति पहचान नही पाया.. ..

आखिरकार पीछे थोडी हलचल हुई एक अंधा आदमी हाथ मे लाठी लेकर उठा.. उसने कहा मुझे महाराज के पास ले चलो... मैने सब बाते सुनी है... और यह भी सुना है कि कोई परख नही पा रहा है... एक अवसर मुझे भी दो.. ..एक आदमी के सहारे.... वह राजा के पास पहुंचा.. उसने राजा से प्रार्थना की...मै तो जनम से अंधा हू....
फिर भी मुझे एक अवसर दिया जाये.. जिससे मै भी एक बार अपनी बुद्धि को परखूँ.. और हो सकता है कि सफल भी हो जाऊं..  और यदि सफल न भी हुआ... तो वैसे भी आप तो हारे ही है..

राजा को लगा कि..... इसे अवसर देने मे क्या हर्ज है... राजा ने कहा क़ि ठीक है..
 
तो तब उस अंधे आदमी को... दोनो चीजे छुआ दी गयी.. और पूछा गया..... इसमे कौन सा हीरा है.... और कौन सा काँच….?? .. यही तुम्हें परखना है.. ..

उस आदमी ने एक क्षण मे कह दिया कि यह हीरा है और यह काँच.. ..जो आदमी इतने राज्यो को जीतकर आया था वह नतमस्तक हो गया.. और बोला....“सही है आपने पहचान लिया.. धन्य हो आप… अपने वचन के मुताबिक..... यह हीरा मै आपके राज्य की तिजोरी मे दे रहा हूँ ” ..

सब बहुत खुश हो गये और जो आदमी आया था वह भी बहुत प्रसन्न हुआ कि कम से कम कोई तो मिला परखने वाला..उस आदमी, राजा और अन्य सभी लोगो ने उस अंधे व्यक्ति से एक ही जिज्ञासा जताई कि तुमने यह कैसे
पहचाना कि यह हीरा है और वह काँच.. ..

उस अंधे ने कहा की सीधी सी बात है मालिक धूप मे हम सब बैठे है.. मैने दोनो को छुआ .. जो ठंडा रहा वह हीरा..... जो गरम हो गया वह काँच.....

जीवन मे भी देखना..... जो बात बात मे गरम हो जाये, उलझ जाये... वह व्यक्ति "काँच" हैं और जो विपरीत परिस्थिति मे भी ठंडा रहे..... वह व्यक्ति "हीरा" है..!!

Sunday, 26 June 2016

Most Content Marketers Are Making These 3 Crushing Mistakes

Most Content Marketers Are Making These 3 Crushing Mistakes

जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा

जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा..
वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी.।"
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।
हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।
इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।
हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।
ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखगया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।
जैती है..। वह पतला और दुबला हो से ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..।
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।।

निष्कर्ष : हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।

Thursday, 23 June 2016

Thursday, 16 June 2016

What is More Important Marketing or Selling?



What is More Important Marketing or Selling?



Peter Drucker has rightly said that “the basic purpose of marketing is to make selling unnecessary”. Does it sound bizarre or absurd? Sit back tight and think again. Do you have an Apple I-phone? Did the salesman try selling the same to you? No, you went to the store fully prepared to buy it. Remember whenever Apple launches a new model of the same people queue up in front of the stores for hours and hours, just to be the privileged first few to own it. Take another example of Domino’s Pizza. Do you go the Domino’s outlet, every time you need a pizza? Certainly not, as most of the time people order their pizza online or on phone and the pizza gets delivered at your doorstep. You can find a lot of examples like this.
Now you will say, all these companies have deep pockets and spend a fortune on marketing. Correct you are, but even smaller business can have excellent marketing strategies within their small budgets. While travelling on a highway haven’t you come across big hoardings announcing “Hungry?  …… dhaba 1 Km. You see the hoarding, and since you are already hungry you stop at the food joint unfailingly. There can be n number of marketing strategies.
This is nothing else but the magic of their brilliant marketing strategies. When your marketing strategies are brilliant, more than half of the job is done and you are not required to put in more efforts in to selling, because your prospects are already more than willing to buy your product or service.

Tuesday, 14 June 2016

Miles to go before I sleep



Miles to go before I sleep
Famous poet Robert Frost had written the following beautiful lines which have great meaning hidden within.


These are the lines from the poem "Stopping by woods by snowy evening" by Robert Frost. A very beautiful poem in simple language but with a deeper connotation. A person is passing through a beautiful dense forest. H is fully immersed in the beauty and serenity of the forest. All of a sudden the horse, this man is riding, shakes his bells and this fellow is reminded of the long journey ahead before it’s dark. As such he can’t stop over there any long and has to make a move.
There’s a great message for everyone whether you are a student, common man or an entrepreneur. The essence of these line is that while enjoying the beauty and serenity of our surroundings, we should not be so immersed in them that we forget what is more important for us.
In other words, we should and must enjoy all the pleasant things life has to offer, but at the same time allow all these joys and pleasures to distract us from our main focus area. Moderation is required and suggested by these lines. Let’s take an example of an entrepreneur or a businessman, he comes across various things, various pleasantries which can easily become hindrances and distractions and if gets carried away by these he will lose his focus which may result in serious problem or loss in his business. Even if not so, his business growth will in any way be hampered.
Take the example of a student, he may be tempted to watch more TV, watch lots of movies, outings with friends, spending lots of time on social media and chatting with friends etc. All these things are not bad in moderation but one should not immerse himself so deep in them, that he gets distracted from his main focus area.
I read this poem in 9th standard and was so impressed that I have not forgotten them till date. Our first Prime Minister Pt. Jawaharlal Nehru used these lines as his motto and these lines are still written on his study table.
Friends, enjoy all the pleasantries of life but let them not be distractions.

- CA B. M. Aggarwal

Friday, 10 June 2016

हमारे ज़माने में मोबाइल नहीं थे..

चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने
अपनी पत्नी से कहा : हमारे ज़माने में
मोबाइल नहीं थे..

पत्नी : पर ठीक पाँच बजकर पचपन
मिनट पर मैं पानी का ग्लास लेकर
दरवाज़े पे आती और आप आ पहुँचते..

पति : हाँ मैंने तीस साल नौकरी की
पर आज तक मैं ये नहीं समझ
पाया कि मैं आता इसलिए तुम
पानी लाती थी या तुम पानी लेकर
आती थी इसलिये मैं आता था..

पत्नी : हाँ.. और याद है.. तुम्हारे
रिटायर होने से पहले जब तुम्हें
डायबीटीज़ नहीं थी और मैं तुम्हारी
मनपसन्द खीर बनाती तब तुम कहते
कि आज दोपहर में ही ख़याल आया
कि खीर खाने को मिल जाए तो मज़ा
आ जाए..

पति : हाँ.. सच में.. ऑफ़िस से
निकलते वक़्त जो भी सोचता, घर पर
आकर देखता कि तुमने वही बनाया है..

पत्नी : और तुम्हें याद है जब पहली
डिलीवरी के वक़्त मैं मैके गई थी और
जब दर्द शुरु हुआ मुझे लगा काश..
तुम मेरे पास होते.. और घंटे भर में तो
जैसे कोई ख़्वाब हो, तुम मेरे पास थे..

पति : हाँ.. उस दिन यूँ ही ख़याल
आया कि ज़रा देख लूँ तुम्हें !!

पत्नी : और जब तुम मेरी आँखों में
आँखें डाल कर कविता की दो लाइनें बोलते..

पति : हाँ और तुम शर्मा के पलकें झुका
देती और मैं उसे कविता की 'लाइक' समझता !!

पत्नी : और हाँ जब दोपहर को चाय
बनाते वक़्त मैं थोड़ा जल गई थी और
उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब अपनी
ज़ेब से निकाल कर बोले, इसे अलमारी
में रख दो..

पति : हाँ.. पिछले दिन ही मैंने देखा था
कि ट्यूब ख़त्म हो गई है,पता नहीं कब
ज़रूरत पड़ जाए, यही सोच कर मैं
ट्यूब ले आया था !!

पत्नी : तुम कहते आज ऑफ़िस के
बाद तुम वहीं आ जाना सिनेमा देखेंगे
और खाना भी बाहर खा लेंगे..

पति : और जब तुम आती तो जो
मैंने सोच रखा हो तुम वही साड़ी
पहन कर आती..

फिर नज़दीक जा कर उसका हाथ
थाम कर कहा : हाँ हमारे ज़माने में
मोबाइल नहीं थे..

पर..

"हम दोनों थे !!"

पत्नी : आज बेटा और उसकी बहू
साथ तो होते हैं पर..
बातें नहीं व्हाट्सएप होता है..
लगाव नहीं टैग होता है..
केमिस्ट्री नहीं कमेन्ट होता है..
लव नहीं लाइक होता है..
मीठी नोकझोंक नहीं अनफ़्रेन्ड होता है..

उन्हें बच्चे नहीं कैन्डीक्रश सागा,
टैम्पल रन और सबवे सर्फ़र्स चाहिए..

पति : छोड़ो ये सब बातें..
हम अब वायब्रंट मोड पे हैं
हमारी बैटरी भी 1 लाइन पे है..

अरे..!! कहाँ चली..?

पत्नी : चाय बनाने..

पति : अरे मैं कहने ही वाला था
कि चाय बना दो ना..

पत्नी : पता है.. मैं अभी भी कवरेज
में हूँ और मैसेज भी आते हैं..

दोनों हँस पड़े..

पति : हाँ हमारे ज़माने में
मोबाइल नहीं थे..!!

Wednesday, 8 June 2016

निगेटिव में पॉजिटिव सोच

निगेटिव में पॉजिटिव सोच
(एक सुन्दर रचना- अवश्य पढ़ें)
एक युवा महिला अपनी डाइनिंग टेबल पर बैठी थी और चिंतित थी,
इस बात से परेशान थी कि,
इनकमटैक्स देना पड़ता है।
घर का ढेरों काम करना होता है और ऊपर से कल त्यौहार के दिन लंच पर बहुत से
# रिश्तेदार भी आने वाले हैं।
कुल मिलाकर वो बहुत परेशान थी।
करीब ही उसकी 10 साल की बिटिया अपनी स्कूल नोटबुक लिए बैठी थी।
माँ के पूछने पर वो बोली---
" टीचर ने होमवर्क दिया है (Negative Thanks giving) और कहा है कि,
उन चीजों पर एक पैरेग्राफ लिखो जो प्रारम्भ में हमें अच्छी नहीं लगतीं, लेकिन बाद में वो अच्छी ही होती हैं। मैंने एक पैरेग्राफ लिख लिया है। "
उत्सुकतावश # माँ ने बेटी से नोटबुक ली और पढ़ने लगी कि, उसकी # बेटी ने क्या लिखा है।
बेटी ने लिखा था,
“ मैं अपनी फाइनल एग्जाम को धन्यवाद देती हूँ क्योंकि इसके बाद स्कूल बंद होकर छुट्टियाँ लग जाती हैं। "
.
" मैं उन कड़वी खराब स्वाद वाली दवाइयों को धन्यवाद देती हूँ जो मेरे स्वस्थ होने में सहायक होती हैं। "
.
" मैं सुबह सुबह जगाने वाली उस अलार्म क्लॉक को धन्यवाद देती हूँ
जो सबसे पहले मुझे बताती है कि, मैं अभी जीवित हूँ। "
.
पढ़ते पढ़ते माँ ने महसूस किया कि, उसके खुद के पास भी तो बहुत कुछ ऐंसा है जिसके लिए वो भी धन्यवाद कह सकती है।
उसने फिर सोचा,
" उसे इनकमटैक्स देना होता है, इसका मतलब है कि वो सौभाग्यशाली है कि, उसके पास एक अच्छी सैलरी वाली बढ़िया नौकरी है। "
" उसे घर का बहुत काम करना पड़ता है, इसका मतलब है कि उसके पास एक घर है, एक आश्रय है। "
" उसे परिवार के बहुत से सदस्यों के लिए खाना बनाना होगा, इसका मतलब है कि उसके पास एक बड़ा परिवार है जिनके साथ वो त्योहारों पर सेलिब्रेट करती है। "
मॉरल :
हम निगेटिव बातों या चीजों को लेकर बहुत शिकायतें करते हैं लेकिन उनके पॉजिटिव पक्ष को समझने, देखने में असमर्थ रहते हैं।
आपके निगेटिव में क्या पॉजिटिव है, उसे समझिए और अपने हर दिन को एक बेहतरीन दिन बना लीजिए।

एक पेड़ से लाखों माचिस की तीलियाँ बनती है
लेकिन वही उसी # पेड़ से बनी एक छोटी तीली लाखों पेड़ों को जला सकती है..
उसी प्रकार एक नकारात्मक सोच या शक आपके हजारों सपनों को जला सकता है इसलिए हमेशा सकारात्मकसोचें तभी आप अपनी मंजिल तक पहुँचेंगे...

Tuesday, 7 June 2016

प्राकृतिक सम्पदा बचाओ

एक बकरी के पीछे शिकारी कुत्ते दौड़े। बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ी में घुस गयी।
कुत्ते आगे निकल गए।
बकरी ने निश्चिंतापूर्वक अँगूर की बेले खानी शुरु कर दी और जमीन से लेकर अपनी गर्दन पहुचे उतनी दूरी तक के सारे पत्ते खा लिए।
पत्ते झाड़ी में नहीं रहे।
छिपने का सहारा समाप्त् हो जाने पर कुत्तो ने उसे देख लिया और मार डाला !!
जो सहारा देने वाले को जो नष्ट करता है , उसकी ऐसी ही दुर्गति होती है।

मनुष्य भी आज सहारा देने वालीं जीवनदायिनी नदियां, पेड़ पौधो, जानवर, गाय, पर्वतो आदि को नुकसान पंहुचा रहा है और इन सभी का परिणाम भी अनेक आपदाओ के रूप में भोग रहा है।
प्राकृतिक सम्पदा बचाओ
अपना कल सुरक्षित करो

भगवान चाहते हैं

एक प्रसिद्ध कैंसर स्पैश्लिस्ट था|
नाम था मार्क,
एक बार किसी सम्मेलन में
भाग लेने लिए किसी दूर के शहर जा रहे थे।
वहां उनको उनकी नई मैडिकल रिसर्च के महान कार्य के लिए पुरुस्कृत किया जाना था।
वे बड़े उत्साहित थे,
व जल्दी से जल्दी वहां पहुंचना चाहते थे। उन्होंने इस शोध के लिए बहुत मेहनत की थी।
बड़ा उतावलापन था,
उनका उस पुरुस्कार को पाने के लिए।

जहाज उड़ने के लगभग दो घण्टे बाद उनके जहाज़ में तकनीकी खराबी आ गई,
जिसके कारण उनके हवाई जहाज को आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी।
डा. मार्क को लगा कि वे अपने सम्मेलन में सही समय पर नहीं पहुंच पाएंगे,
इसलिए उन्होंने स्थानीय कर्मचारियों से रास्ता पता किया और एक टैक्सी कर ली, सम्मेलन वाले शहर जाने के लिए।
उनको पता था की अगली प्लाईट 10 घण्टे बाद है।
टैक्सी तो मिली लेकिन ड्राइवर के बिना इसलिए उन्होंने खुद ही टैक्सी चलाने का निर्णय लिया।

जैसे ही उन्होंने यात्रा शुरु की कुछ देर बाद बहुत तेज, आंधी-तूफान शुरु हो गया।
रास्ता लगभग दिखना बंद सा हो गया। इस आपा-धापी में वे गलत रास्ते की ओर मुड़ गए।
लगभग दो घंटे भटकने के बाद उनको समझ आ गया कि वे रास्ता भटक गए हैं। थक तो वे गए ही थे,
भूख भी उन्हें बहुत ज़ोर से लग गई थी। उस सुनसान सड़क पर भोजन की तलाश में वे गाड़ी इधर-उधर चलाने लगे।
कुछ दूरी पर उनको एक झोंपड़ी दिखी।
झोंपड़ी के बिल्कुल नजदीक उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी।
परेशान से होकर गाड़ी से उतरे और उस छोटे से घर का दरवाज़ा खटखटाया।
एक स्त्री ने दरवाज़ा खोला।
डा. मार्क ने उन्हें अपनी स्थिति बताई और एक फोन करने की इजाजत मांगी। उस स्त्री ने बताया कि उसके यहां फोन नहीं है।
फिर भी उसने उनसे कहा कि आप अंदर आइए और चाय पीजिए।
मौसम थोड़ा ठीक हो जाने पर,
आगे चले जाना।

भूखे, भीगे और थके हुए डाक्टर ने तुरंत हामी भर दी।
उस औरत ने उन्हें बिठाया,
बड़े सम्मान के साथ चाय दी व कुछ खाने को दिया।
साथ ही उसने कहा, "आइए, खाने से पहले भगवान से प्रार्थना करें
और उनका धन्यवाद कर दें।"
डाक्टर उस स्त्री की बात सुन कर मुस्कुरा दिेए और बोले,
"मैं इन बातों पर विश्वास नहीं करता।
मैं मेहनत पर विश्वास करता हूं।
आप अपनी प्रार्थना कर लें।"
टेबल से चाय की चुस्कियां लेते हुए डाक्टर उस स्त्री को देखने लगे जो अपने छोटे से बच्चे के साथ प्रार्थना कर रही थी।
उसने कई प्रकार की प्रार्थनाएं की। डाक्टर मार्क को लगा कि हो न हो,
इस स्त्री को कुछ समस्या है।
जैसे ही वह औरत
अपने पूजा के स्थान से उठी,
तो डाक्टर ने पूछा,
"आपको भगवान से क्या चाहिेए?
क्या आपको लगता है कि भगवान आपकी प्रार्थनाएं सुनेंगे?"
उस औरत ने धीमे से उदासी भरी मुस्कुराहट बिखेरते हुए कहा,
"ये मेरा लड़का है
और इसको कैंसर रोग है
जिसका इलाज डाक्टर मार्क नामक व्यक्ति के पास है
परंतु मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं
कि मैं उन तक,
उनके शहर जा सकूं
क्योंकि वे दूर किसी शहर में रहते हैं।
यह सच है की कि भगवान ने अभी तक मेरी किसी प्रार्थना का जवाब नहीं दिया किंतु मुझे विश्वास है
कि भगवान एक न एक दिन कोई रास्ता बना ही देंगे।
वे मेरा विश्वास टूटने नहीं देंगे।
वे अवश्य ही मेरे बच्चे का इलाज डा. मार्क से करवा कर इसे स्वस्थ कर देंगे।
डाक्टर मार्क तो सन्न रह गए।
वे कुछ पल बोल ही नहीं पाए।
आंखों में आंसू लिए धीरे से बोले,
"भगवान बहुत महान हैं।"
(उन्हें सारा घटनाक्रम याद आने लगा। कैसे उन्हें सम्मेलन में जाना था।
कैसे उनके जहाज को इस अंजान शहर में आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी।
कैसे टैक्सी के लिए ड्राइवर नहीं मिला और वे तूफान की वजह से रास्ता भटक गए और यहां आ गए।)
वे समझ गए कि यह सब इसलिए नहीं हुआ कि भगवान को केवल इस औरत की प्रार्थना का उत्तर देना था
बल्कि भगवान उन्हें भी एक मौका देना चाहते थे
कि वे भौतिक जीवन में
धन कमाने,
प्रतिष्ठा कमाने, इत्यादि
से ऊपर उठें और असहाय लोगों की सहायता करें।
वे समझ गए की भगवान चाहते हैं
कि मैं उन लोगों का इलाज करूं जिनके पास धन तो नहीं है
किंतु जिन्हें भगवान पर विश्वास है।

कुछ ही सेकण्ड्स लगते हैं
सबकुछ बदल जाने में
फिर हम याद करते हैं
परमपिता परमात्मा को।