Saturday, 21 December 2013

बीज की सोच

मिटटी के नीचे दबा एक बीज अपने खोल में आराम से सो रहा था. उसके बाकी साथी भी अपने अपने खोल में सिमटे पड़े हुए थे. तभी अचानक एक दिन बरसात हुई, जिस्से. मिटटी के ऊपर कुछ पानी इकठ्ठा हो गया और सारे बीज भीग कर सड़ने लगे. वह भी बीज भी तर -बतर हो गया और सड़ने लगा.
बीज ने सोचा, ”इस तरह तो मैं एक बीज के रूप में ही मर जाऊंगा. मेरी हालत भी मेरे दोस्तों की तरह ही हो जाएगी, जो अब ख़त्म हो चुके हैं. मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए कि मैं अमर हो जाऊं. बीज ने हिम्मत दिखाई और पूरी ताकत लगाकर अपना खोल तोड़ कर खुद एक पौधे के रूप में परिवर्तित कर लिया. अब बरसात और मिटटी उसके दोस्त बन चुके थे और नुक्सान पहुँचाने की जगह बड़े होने में उसकी मदद करने लगे. धीरे धीरे वह बड़ा होने लगा. एक दिन वह स्थिति आई जब वह इतना बड़ा हो गया कि अब और नही बढ़ सकता था. उसने मन ही मन सोचा, इस तरह यहाँ खड़े-खड़े मैं एक दिन मर जाऊँगा, पर मुझे तो अमर होना है. और ये सोच कर उसने खुद को एक कली के रूप में परिवर्तित कर लिया.
कली बसंत में खिलने लगी, उसकी खुशबू दूर-दूर तक फ़ैल गयी जिससे आकर्षित हो कर भँवरे वहां मडराने लगे, इस प्रकार इस पौधे के बीज दूर-दूर तक फ़ैल गए और वह एक बीज जिसने परिस्थितियों के सामने हार ना मान कर खुद को खुद को परिवर्तित करने का फैसला किया था, दुबारा लाखों बीजों के रूप में जीवित हो गया.

परिवर्तन को एक घटना की तरह नही, बल्कि एक प्रक्रिया की तरह देखना चाहिए. यह नयी खोज की तरह होता है. यह हमारे वातावरण को ही नही, बल्कि हमे भी बदलता है. हम विकास की नयी संभावनाओं को देखने लगते हैं और परिवर्तन में सक्षम होते हैं. यह हमे मिटाने की जगह मजबूत बनाता है और हम प्रगतिशील हो जाते हैं.

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