1987 में बाई फंगली नाम का एक रिक्शा-चालक, वर्षों तक मेहनत करने के बाद अपने गाँव वापस आया. अब वह अपने परिवार के साथ बाकी जीवन बिताना चाहता था. गाँव आने के बाद वह यह देख कर बहुत दुखी हुआ कि छोटे-छोटे बच्चे खेतों में मजदूरी कर रहे थे. उन बच्चों के माता-पिता उनकी पढाई का बोझ नहीं उठा सकते थे. उसने मन ही मन एक फैसला लिया.
अगले दिन वह वापस शहर चला गया और रिक्शा चलाना शुरू कर दिया. रेलवे-स्टेशन के पास एक छोटी सी झोंपड़ी में रहता, आधा पेट रूखा सूखा खा कर गुजारा करता और दिन रात मेहनत कर चार पैसे कमाता. वह अपनी मेहनत की सारी कमाई उन गरीब बच्चों की पढाई पर खर्च कर देता था.
300 से भी अधिक बच्चों को पढाई में सहायता करने में बाई ने कुल मिला कर 350,000 युआन खर्च किये. 2005 में अपनी दानशीलता की प्रेरणादायक विरासत छोड़ कर इस दुनिया से विदा ली.
दोस्तों! फाटे पुराने कपड़े पहन कर, आधा पेट भोजन कर, दिन रात रिक्शा चला कर यदि वह 300 से अधिक बच्चों की पढाई का खर्च दे कर उनका जीवन संवार सकता था, तो हम क्या कुछ नहीं कर सकते? यदि हम सब ठान लें तो इस दुनिया की तस्वीर बदल सकते हैं.
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