Wednesday, 8 January 2014

चन्दन की लकड़ी और राजा का मन

एक बार एक राजा ने अपने जन्म दिन पर अपने नगर के प्रमुख सेठ साहुकारों को भोज दिया. भोज के लिए आये प्रत्येक सेठ से राजा स्वंय मिला. राजा सभी सेठों से मिलकर प्रसन्न हुआ. लेकिन एक सेठ से मिलने पर राजा के मन में भाव आया कि इस सेठ को फांसी दे दी जाए. राजा ने तब तो कुछ नहीं कहा लेकिन इस तरह का विचार मन में उठने का कारण खोजने लगा.
दूसरे दिन राजा ने अपने मन्त्रियों से अपने मन में ऐसा विचार आने का कारण पूछा. एक बुद्धिमान मन्त्री ने कहा कि इसका पता लगाने का वक्त दिया जाय. मन्त्री ने अपने गुप्तचरों से उस सेठ के बारे में जानकारी इकट्ठी करवाई.
कुछ दिनों बाद गुप्तचरों ने बताया कि वह सेठ चन्दन लकड़ी का व्यापारी है. लेकिन विगत तीन-चार माह से उसका व्यवसाय ठीक नहीं चल रहा था. अतः वह सोचता है कि राजा की मृत्यु हो जाय तो उसकी ढेर सारी चन्दन की लकड़ी बिक जाय. अतः वह राजा की मौत की कामना करने लगा. सम्राट के सेठ से मिलने पर सम्राट के अचेतन मन ने सेठ के मन के भावों को पढ़ कर यह प्रतिक्रिया दी कि सेठ को फांसी पर चढ़ाना चाहिए.
मन्त्री बहुत बुद्धिमान था. उसने सोचा सम्राट को यह बात बता दी तो सेठ बेकार ही खतरे में पड़ जाएगा. इसलिए उसने एक तरकीब सोची. उसने सेठ से प्रतिदिन चन्दन की कुछ लकड़ी महलों में उपयोग हेतु खरीदनी शुरू की. अब प्रतिदिन चन्दन की लकड़ी बिकने लगी और सेठ सोचने लगा कि राजा दीर्घायु हो. उनसे उसका व्यवसाय हो रहा है. राजा के बदलने पर नया राजा रोज लकड़ी खरीदे या नहीं इसलिए वह राजा की लम्बी उम्र की कामना करने लगा.
राजा ने अगले वर्ष फिर अपने जन्म दिन पर बड़े सेठों को भोजन पर बुलाया. इस बार राजा उस सेठ से व्यक्तिगत रूप से मिले तो उसे लगा सेठ बहुत अच्छा है. अब इस तरह के विचार आने का कारण राजा ने फिर मन्त्री से पूछा. मन्त्री ने बताया कि महाराज हम सब का मन बहुत सूक्ष्म है, हमारा अचेतन मन सामने वाले के मन में गुप्त चलते विचारों का चुपचाप पकड़ लेता है. उस पर स्वतः प्रतिक्रिया करता है. इस बार सेठ आप की आयु बढ़ाने की प्रार्थना मन ही मन करता था. चूंकि इससे उसका व्यवसाय चल निकला था. प्रतिदिन चन्दन की लकड़ी बिक रहीं थी. अतः उसके मन में चलते गुप्त विचारों को आपके मन ने पकड़ लिया.
हम विश्वास करते हैं तो विश्वास पाते हैं. हम यदि जीवन में सुख चाहते हैं तो हमें दूसरों पर बिना कारण अविश्वास नहीं करना चाहिए. अविश्वास संदेह को बढ़ाता है.
हमें सकारात्मक होने के लिए बिना कारण किसी पर भी अविश्वास नहीं करना चाहिए. जीवन में सफल होने के लिये दूसरों पर भरोसा कराना चाहिए. भरोसा करेगें तो आप के काम बनेंगे. कभी ठोकर लगे तो इसे अपवाद मान लें. बिना परीक्षण किए सब को गलत मानना ही गलत है.


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