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Tuesday, 4 March 2014

ख़ुशी की तलाश

एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में हिस्सा ले रहा था. सेमीनार शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि स्पीकर अचानक ही रुका और सभी पार्टिसिपेंट्स को गुब्बारे देते हुए बोला, ”आप सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है. सभी ने ऐसा ही किया. अब गुब्बारों को एक दुसरे कमरे में रख दिया गया. स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा. सारे पार्टिसिपेंट्स तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे. पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था
पांच मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया. स्पीकर बोला, ” अरे! क्या हुआ, आप सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला ?”
नहीं ! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया…”, एक पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला.
कोई बात नहीं , आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये, पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उसपर लिखा हुआ है.“,स्पीकर ने निर्दश दिया.
एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और कमरे में किसी तरह की अफरा-तफरी नहीं मची हुई थी. सभी ने एक दुसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये. स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा, ” बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है. हर कोई अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है, पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता, दोस्तों हमारी ख़ुशी दूसरों की ख़ुशी में छिपी हुई है. जब तुम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हे तुम्हारी खुशियां मिल जाएँगी.और यही मानव जीवन का उद्देश्य है.

Friday, 10 January 2014

बढ़ई का कमाल

किसी गांव में दो भाई साथ साथ खेती करते थे. मशीनों की भागीदारी और चीजों का व्यवसाय किया करते थे. बरसों बाद एक एक छोटी सी ग़लतफहमी की वजह से उनमे पहली बार झगडा हो गया था झगडा दुश्मनी में बदल गया था.

एक सुबह एक बढई बड़े भाई से काम मांगने  आया.

बड़े भाई ने  कहा हाँ, मेरे पास तुम्हारे लिए काम हैं. उस खेत की तरफ देखो ,वो मेरा पडोसी हैं.  यूँ तो वो मेरा भाई हैं. पिछले सप्ताह तक हमारे खेतो के बीच घास का मैदान हुआ करता था. पर मेरा भाई बुलडोजर ले आया और अब हमारे खेतो के बीच ये खाई जरुर हैं. जरुर उसने मुझे परेशान करने के लिए ये सब किया होगा. अब मुझे उसे मजा चखना है. तुम खेत के चारो तरफ बाड़ बना दो ताकि मुझे उसकी शक्ल भी ना देखनी पड़े.

ठीक है”, बढई ने कहा.

उसने बढई को सारा सामान लाकर दे दिया और खुद शहर चला गया. शाम को लौटा तो बढई का काम देखकर भौचक्का रह गया. बाड़ की जगह वहा एक पुल था  जो खाई को एक तरफ से दूसरी तरफ जोड़ता था.

इससे पहले की बढई कुछ कहता, उसका छोटा भाई आ गया. तुम कितने दरियादिल हो, मेरे इतने भला बुरा कहने के बाद भी तुमने हमारे बीच ये पुल बनाया, कहते कहते उसकी आँखे भर आई और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे. जब दोनों भाई सम्भले तो देखा की बढई जा रहा था. रुको मेरे पास तुम्हारे लिए और भी कई काम हैं, बड़ा भाई बोला. मुझे रुकना अच्छा लगता ,पर मुझे ऐसे कई पुल और बनाने हैं, बढई मुस्कुराकर बोला  और अपनी राह को चल दिया.

Wednesday, 8 January 2014

चन्दन की लकड़ी और राजा का मन

एक बार एक राजा ने अपने जन्म दिन पर अपने नगर के प्रमुख सेठ साहुकारों को भोज दिया. भोज के लिए आये प्रत्येक सेठ से राजा स्वंय मिला. राजा सभी सेठों से मिलकर प्रसन्न हुआ. लेकिन एक सेठ से मिलने पर राजा के मन में भाव आया कि इस सेठ को फांसी दे दी जाए. राजा ने तब तो कुछ नहीं कहा लेकिन इस तरह का विचार मन में उठने का कारण खोजने लगा.
दूसरे दिन राजा ने अपने मन्त्रियों से अपने मन में ऐसा विचार आने का कारण पूछा. एक बुद्धिमान मन्त्री ने कहा कि इसका पता लगाने का वक्त दिया जाय. मन्त्री ने अपने गुप्तचरों से उस सेठ के बारे में जानकारी इकट्ठी करवाई.
कुछ दिनों बाद गुप्तचरों ने बताया कि वह सेठ चन्दन लकड़ी का व्यापारी है. लेकिन विगत तीन-चार माह से उसका व्यवसाय ठीक नहीं चल रहा था. अतः वह सोचता है कि राजा की मृत्यु हो जाय तो उसकी ढेर सारी चन्दन की लकड़ी बिक जाय. अतः वह राजा की मौत की कामना करने लगा. सम्राट के सेठ से मिलने पर सम्राट के अचेतन मन ने सेठ के मन के भावों को पढ़ कर यह प्रतिक्रिया दी कि सेठ को फांसी पर चढ़ाना चाहिए.
मन्त्री बहुत बुद्धिमान था. उसने सोचा सम्राट को यह बात बता दी तो सेठ बेकार ही खतरे में पड़ जाएगा. इसलिए उसने एक तरकीब सोची. उसने सेठ से प्रतिदिन चन्दन की कुछ लकड़ी महलों में उपयोग हेतु खरीदनी शुरू की. अब प्रतिदिन चन्दन की लकड़ी बिकने लगी और सेठ सोचने लगा कि राजा दीर्घायु हो. उनसे उसका व्यवसाय हो रहा है. राजा के बदलने पर नया राजा रोज लकड़ी खरीदे या नहीं इसलिए वह राजा की लम्बी उम्र की कामना करने लगा.
राजा ने अगले वर्ष फिर अपने जन्म दिन पर बड़े सेठों को भोजन पर बुलाया. इस बार राजा उस सेठ से व्यक्तिगत रूप से मिले तो उसे लगा सेठ बहुत अच्छा है. अब इस तरह के विचार आने का कारण राजा ने फिर मन्त्री से पूछा. मन्त्री ने बताया कि महाराज हम सब का मन बहुत सूक्ष्म है, हमारा अचेतन मन सामने वाले के मन में गुप्त चलते विचारों का चुपचाप पकड़ लेता है. उस पर स्वतः प्रतिक्रिया करता है. इस बार सेठ आप की आयु बढ़ाने की प्रार्थना मन ही मन करता था. चूंकि इससे उसका व्यवसाय चल निकला था. प्रतिदिन चन्दन की लकड़ी बिक रहीं थी. अतः उसके मन में चलते गुप्त विचारों को आपके मन ने पकड़ लिया.
हम विश्वास करते हैं तो विश्वास पाते हैं. हम यदि जीवन में सुख चाहते हैं तो हमें दूसरों पर बिना कारण अविश्वास नहीं करना चाहिए. अविश्वास संदेह को बढ़ाता है.
हमें सकारात्मक होने के लिए बिना कारण किसी पर भी अविश्वास नहीं करना चाहिए. जीवन में सफल होने के लिये दूसरों पर भरोसा कराना चाहिए. भरोसा करेगें तो आप के काम बनेंगे. कभी ठोकर लगे तो इसे अपवाद मान लें. बिना परीक्षण किए सब को गलत मानना ही गलत है.


Tuesday, 7 January 2014

ख़ुशी क्या है?

खुशी मन की एक अवस्था है. आप के अंदर ही वो जादूई शक्ति मौजूद है कि आप जो चाहे हासिल कर सकते हैं! यह सब आपके हाथ में है. खुशी, संतुष्टि और आनंद सब आपके भीतर ही छुपा हुआ है, जरूरत है केवल उसे ढूंढ निकालने की. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं और किस अवस्था में हैं, यदि आप चाहें तो सकारात्मक सोच से खुशी को अपने अंदर ही महसूस कर सकते हैं.

कुछ लोग सोचते हैं कि यदि मुझे ये मिल जाए या मुझे वो हासिल हो जाए तो मैं खुश हो जाउंगा. लेकिन ऐसे व्यक्ति कभी भी खुश नहीं रह सकते जो अपने वर्तमान से असंतुष्ट हैं और सदैव भविष्य में ही अपनी खुशियां तलाश करते रहते हैं. जरूरत है तो केवल एक सकारात्मक रवैया अपनाने की और आप हमेशा संतुष्टि का अनुभव कर सकते हैं. कहीं भविष्य में खुशियां ढूढंने के चक्कर में आप अपना वर्तमान उदास और दुखी मन से ना गुजार दें! 

शायद आपको विश्वास नहीं होगा पर यह सच है कि; जैसा रवैया आप दूसरों के लिए अपनाते हैं वो आप को भी कहीं ना कहीं प्रभावित करता है. जो चीज़ आपको अच्छी लगती है वो उन्हे भी अच्छी लगेगी, जो बात आपको बुरी लगती है वो उन्हे भी लगेगी. अपने व्यवहार में थोड़ा सा बदलाव आपको ढेरों खुशियां दे सकता है. क्योंकि आपका आंतरिक दृष्टिकोण ही आपके अंदर सच्चे मायने में खुशी की भावना का एहसास कराता है.

जो व्यक्ति हमेशा नकारात्मक सोच लेकर चलते हैं वो कभी भी सच्ची खुशी का आनंद नहीं उठा सकते हैं. क्योंकि वो चाहे कुछ भी हासिल कर लें उन्हे हमेशा और अधिक पाने की इच्छा रहेगी और वो असंतुष्ट ही रहेंगे. वो केवल उदासीनता को ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं. उन्हे इस बात का एहसास भी नहीं होता और वो अपने नकारात्मक नज़रिये के कारण मिलती हुई खुशी को भी नज़रअंदाज कर देते हैं.

आप जैसा सोचते हैं और जैसा व्यवहार करते हैं वो घूम कर आपके पास ही वापस आता है. क्या खुशियों को आकर्षित किया जा सकता है? क्या दुख खिंचा चला आ सकता है? दोनो सवालों का जवाब हाँ ही है. दूसरों के साथ खुशिया बांटने से आप खुद के अंदर खुशी को महसूस कर सकते हैं. आप मानें या ना मानें, पर यदि आप दूसरों की बुरी लगने वाली बातो को नज़रअंदाज कर दें और सिर्फ यह सोचें कि मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हूँ, तो आप चाहे कुछ हो जाए सदैव खुश रहेंगे. केवल एक सकारात्मक सोच अपनाने की आवश्यकता है.

अपनी स्वार्थी इच्छाओं का त्याग कर दें और यह सोचना छोड़ दें कि आप ही सबकुछ हैं. और फिर देखें कि आपके इस ज़रा से बदलाव ने आपकी पूरी ज़िंदगी को ही बदल डाला है. खुशियां तो आपकी ओर आकर्षित हुए बिना रह ही नहीं सकती हैं, क्योंकि आपके भीतर महसूस होने वाली खुशी के लिए आपका मन ही जिम्मेदार है. तो आज से ही आनंद उठाना शुरू कर दें इस जादूई शक्ति का, बस अपने जीवन में एक सकारात्मक नज़रिया अपना कर!

Friday, 20 December 2013

Song of Happiness


Thursday, 19 December 2013

मुस्कुराहट का रहश्य

एक 60 वर्ष से भी अधिक उम्र के व्यक्ति को लोग प्यार से दादा बुलाते थे. उनकी एक अनोखी आदत थी, हमेशा मुस्कुराते रहना. चाहे कैसी भी विषम से विषम परिस्थिति हो उनके होठों पर हमेशा वही जानी पहचानी मुस्कराहट खेलती रहती थी. लोग उन्हें देख कर हैरान हो जाते कि चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, कैसे यह व्यक्ति हर हाल में खुश रहता है?

एक बार एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला दादा आपसे एक बात पूछनी है. उन्होंने कहा, पूछो. वह व्यक्ति दादा से बोला, मैं पिछले कई सालों से आपको जानता हूँ. आप कैसे भी उतार चढ़ाव, कैसी भी परिस्थिति में कैसे हमेशा इतने खुश रह पाते हैं? आपका तो व्यापार भी काफी बड़ा है, उसमें भी तरह तरह की परेशानियां हर रोज आपको आती होंगी. फिर भी आप हमेशा खुश रहते हैं, मुस्कुराते रहते हैं. कैसे?

दादा ने कहा अरे बस इतनी सी बात? जिन्दगी हमें दो आप्शन देती है, या तो खुश रहो या दुखी रहो. मैं प्रतिदिन सुबह उठते ही अपने आप से एक सवाल करता हूँ. आज मुझे खुश रहना है या दुखी रहना है? मेरा मन क्या उत्तर देता होगा यह तुम समझ सकते हो. और ऐसा करते करते अब मेरी आदत बन चुकी है कि मैं हमेशा खुश रहता हूँ, मुस्कुराता रहता हूँ.

उनका उत्तर सुन कर वह व्यक्ति मन ही मन सोचने लगा कि दादा शायद मुझे अपनी हमेशा खुश रहने की आदत का रहश्य बताना नहीं चाहते.

कुछ दिन बाद अचानक दादा एक दुर्घटना का शिकार हो गए. वही व्यक्ति उनका हाल चाल जानने हॉस्पिटल पहुंचा. उसे देखते ही दादा ने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे पता है, तुम क्या सोच रहे हो? तुम यही जानना चाहते हो ना कि दुर्घटना का शिकार होने के बाद भी, मैं कैसे मुस्कुरा रहा हूँ?"

उस व्यक्ति ने हां में गर्दन हिलाई.

दादा बोले, "देखो दुर्घटना के बाद जब मुझे पता चला कि मेरी हालत बहुत नाजुक है और मेरा ऑपरेशन किया जाएगा. डॉक्टर ने यह भी बताया कि मेरे बचने की उम्मीद बहुत कम है, तो मेरे सामने दो ही रास्ते थे. या तो मैं अपनी इच्छाशक्ति को बनाए रखूं और जिंदा रहूँ, या अपने आप को भाग्य भरोसे छोड़ दूं. मैंने डॉक्टर से कहा कि अभी तो मैं बहुत वर्षों तक जीना चाहता हूँ, यही सोच कर मेरा ऑपरेशन करें. डॉक्टर भी मेरी बात सुन कर बहुत उत्साहित हो गया, उसने मन लगा कर मेरा ऑपरेशन किया और देखो मैं अब ठीक हूँ."

लोग यह देख कर हैरान थे कि दुर्घटना के कुछ ही दिन बाद दादा मुस्कुराते हुए हॉस्पिटल से घर आ गए.

देखा दोस्तों! खुश रहना कितना आसान है? सब कुछ हमारी सोच पर निर्भर करता है.

Wednesday, 20 November 2013

रिश्तों में मजबूती

एक बड़ा उत्सव चल रहा था. एक आदमी और उसकी मंगेतर शादी कर रहे थे. दोनों के दोस्त, रिश्तेदार और परिवार के सभी लोग शादी के समारोह में हिस्सा लेने के लिए आये थे. दुल्हन अपने शादी के जोड़े में बहुत खूबसूरत लग रही थी, और दूल्हा अपनी शेरवानी में. ख़ुशी-ख़ुशी शादी संपन्न हो गई.

कुछ महीने बाद, पत्नी एक प्रस्ताव के साथ पति के पास आई: "हम अपनी शादी को और भी मजबूत कर सकते हैं, इसके बारे में कुछ समय पहले मैंने एक पत्रिका में पढ़ा था. हम दोनों अलग-अलग अपनी-अपनी एक लिस्ट बनायेंगे और उसमें वह सब बातें लिखेंगे, जो हमें, एक दूसरे में पसंद नहीं हैं. फिर हम दोनों साथ बैठ कर अपनी-अपनी लिस्ट पढेंगे और प्रकार हम उन चीज़ों को दूर कर सकेंगे जो दूसरे को पसंद नहीं हैं."


पति भी इस बात पर सहमत हो गया. दोनों ने तय किया कि अगले दिन सुबह नाश्ते के समय दोनों अपनी अपनी लिस्ट पढेंगे. वे दोनों, दिन भर, आराम से इस सवाल के बारे में सोचते रहे.अगली सुबह, नाश्ते की मेज़ पर, वे अपनी अपनी लिस्ट के साथ उपस्थित थे."पहले मैं शुरू करूंगी" पत्नी ने कहा और अपनी लिस्ट बाहर निकाली. इस में कई आइटम थे. उसने छोटी बड़ी सब बातें लिखते लिखते 3 पेज भर रखे थे.
पत्नी ने अपनी छोटी-छोटी नाराजगियों की लिस्ट पढनी शुरू की. उसके पति की आंखों में आंसू दिखाई देने लगे."क्या हुआ?" उसने पूछा. "कुछ नहीं, तुम अपनी लिस्ट पढो." पति ने कहा.अपनी 3 पेज की लिस्ट पढने के बाद उसने कहा, "अब आप अपनी लिस्ट पढिये. फिर हम दोनों लिस्ट के बारे में विचार करेंगे."पति ने कहा, "मेरी लिस्ट में कुछ भी नहीं है, 
तुम सुंदर और अद्भुत हो. तुम जैसी हो, मेरे लिये परिपूर्ण हो. मैं नहीं चाहता, कि तुम मेरे लिए अपने आप को बदलो."

पति की ईमानदारी और अपने लिए उसके प्यार को देख कर, पत्नी बहुत खुश हो गई. अब आंसू उसकी आँखों में छलक रहे थे.कोई भी समझदार पति यदि अपनी पत्नी में कुछ बात नापसंद करता है तो उसे पत्नी की कोई और बात पसंद होती है, जो नापसंद बात को महत्वहीन कर देती है.जीवन में कई बार हम निराश हो जाते हैं और एक दुसरे में बुराइयां ढूंढना शुरू कर देते हैं. यदि हमें रिश्तों में मजबूती लानी है, तो हमें एक दुसरे के अवगुण ढूँढने की अपेक्षा उसकी अच्छाइयां ढूंढनी चाहिए. ईश्वर ने सौंदर्य, प्रकाश और नेमतों से भरी, एक अद्भुत दुनिया हमें दी है. क्यों हम बुरी, निराशाजनक या कष्टप्रद चीजों की तलाश में समय बर्बाद करते हैं? हम में से कोई भी पूर्ण नहीं है. लेकिन फिर भी हम दूसरों में पूर्णता ढूंढते हैं. हम यदि दूसरों की कमियों के बजाय, गुणों को देखें, कठिनाइयों के समय दूसरे की सहायता करें, तो रिश्ते अवश्य ही सुन्दर और मज़बूत बनेंगे.