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Friday, 2 May 2014

धन और सक्षमता


धनवान होना या निर्धन होना अपने आप में कोई बुराई नहीं है। किन्तु चूँकि यह युग अर्थ युग है और इसमें प्रत्येक गणना अर्थ से शुरू होती है और अर्थ पर ही समाप्त होजाती है।  इसलिए इस युग में जीवन की वास्तविक शक्तियों,आत्मिक,मानसिक और शारीरिक शक्तियों से भी अधिक उसकी आर्थिक शक्ति का उसके व्यक्तित्त्व पर प्रभाव पड़े बगेर नहीं रहता है। यह अलग बात है की यदि उसमे वास्तविक शक्ति (आत्मिक,मानसिक,और शारीरिक) नहीं है तो यह धन केवल एक बोझ ही बन कर रह जाता है। कल्पना कीजिये उस शुगर के मरीज का जो, हर तरह की मिठाई खरीद सकता है किन्तु उसे खा ही नहीं सकता, तो यह मिठाई उसके लिए उपयोगी हुयी या अनुपयोगी? उसे अक्सर बेस्वाद करेले का रश पीते हुए देखा जा सकता है। आज धन के एक्त्रीकरण में लोग ऐसी अंधी भाग-म-भाग में लगे हुए है कि, इसके लिए वे अपने असली शक्तियों को ही नष्ट कर बैठते है। फिर जीवन आनंद से परिचय शायद अगले जन्म के लिए छोड़ देते है। आवश्यकता और सुविधाओ में जो भेद नहीं कर सकता वो कितना ही धन कमा ले किन्तु रहेगा निर्धन का निर्धन ही ".

इसलिए केवल अधिक धन कमाने से कोई धनवान तो हो सकता है किन्तु सम्पन्न हो यह आवश्यक नहीं। क्योंकि सम्पन्नता तो सक्षमता की चेरी या दासी है। इसका सीधा सा तात्पर्य यह हुआ कि,यदि हमे धन का उपयोग करना नहीं आता तो हम असंख्य धन को भी गवां बैठेंगे, और यदि हम उसका सदुपयोग जानते है तो फिर थोडे से में भी हम अपनी सम्पन्नता,सक्षमता और ऐश्रव्य को बनाये रखने में सफल होसकते है।

धन अपने आप में न ज्यादा होता है न ही कम,न अच्छा होता है और न बुरा ,यह उस व्यक्ति कि मानसिकता पर निर्भर करता है कि वह इसे किस रूप में लेता है। हाँ एक निश्चित मात्रा में धन तो सभी को आवश्यक है ताकि वो अपनी रोटी,वस्त्र और सर छिपाने के लिए छत का इंतजाम तो कर सके। इसके अलावा जैसे जैसे उसकी मानसिकता पर दूसरे लोगो का, पड़ोसियों,मित्रों एवं रिश्तेदारों का प्रभाव पड़ता जाता है वो एक प्रतियोगिता का हिस्सा बन जाता है। फिर वो धन सदुपयोग के लिए नहीं केवल दूसरो की नजर में अपने को साखवाला, हैसियत वाला साबित करने के लिए उनकी होड़ा-हाड़ अंधाधुंध व्यय करना शुरू कर देता है जिसे अब हम अपव्यय ही कह सकते है। जबतक उसके पास धन सिमित होता है तबतक वह अपना बजट स्वयं बनता है और अपनी इच्छा से अपने धन को खर्च करता है या वह एक अर्थ-व्यवस्था बना कर चलता है। उसका अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण होता है और अपनी प्राथमिकताएँ स्वयं निश्चित करता है। किन्तु एकबार उसने अपने मन में यह मान लिया कि वह धनी है तब वह अपने ही मन में घोषणा कर देता है कि मै एक धनी व्यक्ति हूँ।

और अपनी इस घोषणा के बाद वह वो हरेक कार्य शुरू करने से पहले दुसरो के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव का ध्यान रखता है न कि स्वयं के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव का। वह अब बाजार और बनिए द्वारा फैलाये गए प्रचार-और विज्ञापनों के अधीन अपने विवेक को गिरवी रख देता है। अब उसके घर में क्या आवश्यकता है क्या नहीं यह ध्यान रखने के बजाय वह यह देखता है कि किस वस्तु का चलन और प्रचालन बाजार में है। वह अब यह नहीं देखता कि मुझे क्या खाना चाहिए और क्या पहनना चाहिए बाजार चूँकि पूंजीपति और बुद्धिजीवी वर्ग के हाथ का खिलौना रहा है,वह शुरू से पुरुषार्थी वर्ग कि भावनाओ पर चोट करता आया है। इसलिए वह बाजार में वो चीजे प्रचलित नही करता जो कि लोगो के लिए लाभप्रद हो। वह तो वो प्रतियोगिता की आंधी लाना चाहता है जिसमे स्थिर वृक्ष (पुराने धनी और सम्पन्न) भी उखड जाते है फिर अपने तने (क्षमता) से अधिक ऊँचे सर निकलने वाले वृक्षों का तो कहना ही क्या है। अब व्यक्ति बहुतसी ऐसी वस्तुओ को घर में भर लेता है जो कि उसके लिए न केवल अनुपयोगी है बल्कि बेहद हानिकारक भी है। क्या मुझे कोई बता सकता है कि व्यक्ति दूध और लस्सी जैसी स्वास्थ्य-वर्धक पेय को छोड़कर पेप्सी और कोला जैसे हानिकारक पेय को क्यों अपना बैठा? शायद यही विज्ञापन और दूसरे के अन्धानुकरण का परिणाम है।

जब व्यक्ति दूसरो का प्रभावित करने के लिए किसी भी हद तक यहाँ तक कि हानि उठाकर भी इस बाजारू प्रतियोगिता का त्याग नहीं करता है तो वो फिर कितना ही कमाये, उसमे क्षमता कहाँ रही? यदि उसकी मानसिक शक्ति में यह दम ही नहीं कि वो अपना भला बुरा स्वयं सोचे तो फिर शारीरिक शक्ति भी कितने दिन टिकेगी यदि आप उन खाद्य-पदार्थो का लगातार प्रयोग करेंगे तो निश्चित रूपसे आपकी शारीरिक शक्ति क्षय होगी। अब इस व्यक्ति कि हालत कुछ ऐसी हो जाएगी कि वह सभी साधनों के होते हुए भी उनका आनंद नहीं ले पाता है। और मानसिक और शारीरिक शक्ति की यह अपूर्णीय क्षति आपके लिए उस बेडी (जंजीर) का कार्य करती है ,जो एक कुत्ते को बांधे रखती है, जबकि मांस का टुकड़ा उसके पास ही पड़ा हुआ है किन्तु वो उसका स्वाद ही नहीं चख सकता। अब सवाल यह भी उठता है कि फिर कौनसी ऐसी शक्ति है की अपार धन होते हुए भी उसका बड़े आसानी से उपयोग किया जासकता है। वह शक्ति केवल एक ही है, और उसका नाम है आत्मिक शक्ति क्योंकि यदि आपकी यह शक्ति प्रबल होगी तो आप निश्चित रूपसे अपने को देख कर अपने को माप कर ही, कोई निर्णय, कोई प्राथमिकतायें तय करेंगे। तब आपमें यह मानसिक शक्ति स्वतंत्र होगी और अपने भले-बुरे का फैसला स्वयं कर पाएंगे न कि बाजार में षड़यंत्र के तहत फैलाई गयी प्रचार और विज्ञापनों की आंधी में बह कर, अपने अतीव श्रम से गाढ़ी कमाई का अपव्यय करेंगे। जब आपकी मानसिक शक्ति स्वतन्त्र होगी तो निशिचित रूपसे आप वही खायेंगे जो, आपके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा। तब आप सभी साधनों को अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर प्रयोग कर पाएंगे। ऐसा यदि आप कर पाएंगे तो आप थोडा कमाएंगे तो भी , अपनी कमाई के अनुसार सर्वोतम वस्तु खरीद कर उपयोग करेंगे, और ऐसी स्थिति में हम सीमित साधन होते हुए भी सम्पनता को अनुभव करेंगे ,और सम्पन्नता तो सक्षमता की दासी है ही। और जो सक्षम है वही तो ऐश्वर्य-शाली है। इसिलए सक्षमता को अपनाओ न कि केवल धन को।

Thursday, 9 January 2014

जो किसी स्कूल, कॉलेज, इंस्टिट्यूट में नहीं सिखाते

एक सुखी जीवन एवं उत्पादकता के लिए संसाधनों (resources) का प्रबंधन (management) बहुत आवश्यक है. चार मुख्य संसाधनों: श्रम, धन, सामग्री और मशीनरी ( Four Ms - men, money, materials & machinery) के सही एवं उत्पादक (productive) प्रयोग के लिए और उनके प्रबंधन में पांचवां M, हमारा मन (mind) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. 

आज दुनिया में अनगिनत स्कूल, कॉलेज, इंस्टिट्यूट हैं जो विज्ञान एवं आर्थिक प्रबंधन के बारे में ज्ञान देती हैं, पर दुर्भाग्य से एक भी ऐसा स्कूल, कॉलेज, इंस्टिट्यूट नहीं है जो इस पांचवें, सबसे महत्वपूर्ण M अर्थात मन (mind) का प्रबंधन सिखाते हों. यदि हम अपने मन को मैनेज करना सीख जायें तो बाकी की सारी चीज़ें, सारे M अपने आप मैनेज हो जायेंगे.

मन वास्तव में है क्या? साधारण शब्दों में, मन और कुछ नहीं, यह हमारी सोचने एवं संकल्प करने की शक्ति है. साधारणतया लोग मस्तिष्क (brain) और मन (mind) के बीच भेद नहीं करते, मस्तिष्क और मन को एक ही समझते हैं. मस्तिष्क किसी भी अन्य अंग की भांति शरीर का एक अंग है. जबकि मन (mind) मस्तिष्क (brain) की वह शक्ति है जिसके बिना मस्तिष्क कुछ नहीं कर सकता. साधारण भाषा में हम यूं भी कह सकते हैं कि मस्तिष्क एक कंप्यूटर है और मन एक सॉफ्टवेयर अथवा उसे चलाने वाला प्रोग्राम है.

 मानव शरीर की तीन सूक्ष्म शक्तियों: मन, बुद्धि एवं संस्कार में मन सर्वोपरि है. मन अर्थात mind आखिर करता क्या है? इसकी शक्तियां क्या हैं? यह केवल सोचता नहीं है, अपितु महसूस करने की शक्ति भी मन में ही होती है. हमारा मन रचनाकार भी है तो यही हमारी कल्पना शक्ति है. हमारे मन में ही इच्छाशक्ति भी समाई है यानि मन में ही इच्छाएं जागृत होती हैं तो यही मन याद रखने का कार्य भी करता है. यही मन हमारे विचारों को साकार रूप भी देता है. यदि हम मन की शक्तियों एवं कार्यों की सूचि बनाएं तो वह कुछ इस प्रकार होगी:

1. सोचना या विचार करने की शक्ति (Think)
2. महसूस या आभास करने की शक्ति (Feel)
3. रचना करने की शक्ति या रचनात्मकता (Create)
4. कल्पना शक्ति (Imagine)
5. इच्छाशक्ति (Desire)
6. याद्दाश्त अर्थात याद करने की शक्ति (Remember)
7. प्राप्त करने या विचारों को मूर्त अथवा साकार रूप देने की शक्ति (Realize)

प्रकृति की इतनी सुन्दर देन 'मन' के बारे में किसी भी स्कूलकॉलेजअथवा इंस्टिट्यूट में नहीं समझाया जाता. आइये मन के बारे में कुछ और जानने का प्रयास करते हैं. हमारे मन को साधारणतया दो भागों में विभक्त (divide) किया जा सकता है. जागृत अथवा चेतन मन (conscious mind) एवं अर्ध-जागृत अथवा अवचेतन मन (sub-conscious mind).



उपरोक्त चित्र में एक हिमशैल (iceberg) को देखिये. यद्यपि एक हिमशैल हमें पानी पर तैरता हुआ दिखाई देता है, लेकिन इसका एक बहुत बडा भाग पानी की सतह के नीचे डूबा रहता है, जो हमें दिखाई नही देता. हमारे मन के दोनों हिस्से भी बिल्कुल इसी तरह स्थित हैं. पानी की सतह से ऊपर तैरती आइसबर्ग की चोटी, चेतन मन का प्रतिनिधत्व करती है, जबकि पानी में डूबा हुआ विशाल हिस्सा, शक्तिशाली अवचेतन मन के समान होता है.
आमतौर पर यह माना जाता है कि मानव-मन का केवल 10%  हिस्सा चेतन मन होता है, जबकि बाकी 90% हिस्सा अवचेतन मन होता है.

सामान्यत: जागृत अवस्था में, चेतन मन काम करता है. यह निणर्य लेने और चुनने का काम करता है. जैसे आप किस पुस्तिका को पढ़ते हैं और गीत को सुनते हैं, तो यह आपका चेतन मन है जो सारी जानकारियों को आत्मसात् कर रहा है. यह भावनाओं और विचारों के रूप में प्रकट होता है. यह हमें, अपने आसपास की चीजों के बारे मे सजग करता है. यह हमारी पांच इंद्रियों के आधार पर कार्य करता है - देखना, सुनना, स्वाद, स्पर्श और सुगंध.

अवचेतन मन नीचे स्थित होता है. यह उस खुफिया एजेंट की तरह होता है जो सारे काम करता रहता है लेकिन कभी भी दिखाई नहीं देता. यह हमारे जीवन के सारे अनुभवों के ख़जाने के तौर पर काम करता है - हाल ही मे घटी और अतीत की घटनाओं की यादों का खजाना, अवचेतन मन, चेतन मन की तरह केवल तभी काम नही करता जब हम जागृत अवस्था में होते हैं, बल्कि यह तब भी काम करता रहता है जब हम सो रहे होते हैं. इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह दिन के चौबीसों  घंटो काम करता रहता है. हमें जब भी कोई सूचना मिलती है, तो अवचेतन मन हमारी वर्तमान सांसारिक अनुभूति के आधार पर ही सूचना को स्वीकार या अस्वीकार करता है. ये वर्तमान अनुभूतियां तभी पैदा होनी शुरू हो जाती हैं जब हम छोटे बच्चे होते हैं, और ये पूरे जीवन हमारे रूचियों, आदतों और दृष्टिकोण को प्रभावित करती रहती है .

किसी भी व्यक्ति के मन में, दिन भर में लगभग 60000 विचार आते हैं. मोटे तौर पर विचारों के दो प्रकार होते हैं, सकारात्मक विचार एवं नकारात्मक विचार. इन 60000 विचारों में अधिकतर विचार नकारात्मक होते हैं. यदि हमें जीवन में आगे बढ़ना है तप हमें हमें अपने विचारों को सही दिशा देनी होगी. नकारात्मक विचारों को ना कहना सीखना होगा और सकारात्मक विचारों को अधिक से अधिक अपनाना होगा. क्योंकि कोई भी विचार चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, जब बार-बार हमारे मन में आता है तो धीरे-धीरे वह हमारे अवचेतन मन (subconscious mind) में रिकॉर्ड हो जाता है या यूं कहिये कि हमारे अवचेतन मन की conditioning कर देता है और फिर उससे पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है. जैसी अवचेतन मन की कंडीशनिंग होगी वैसा ही हमारा जीवन होता जाएगा.

मन ही देवता, मन ही ईश्वर
मन से बड़ा ना कोई
मन उजियारा, जब जब फैले
जग उजियारा होए
इस उजले दर्पण पर प्राणी, धूल ना ज़मने पाए

मन का यह विषय अत्यंत रोचक एवं गहन है. आज के लिए इतना ही. आगामी लेखों में हम इस विषय पर और अधिक चर्चा करेंगे.

Tuesday, 7 January 2014

ख़ुशी क्या है?

खुशी मन की एक अवस्था है. आप के अंदर ही वो जादूई शक्ति मौजूद है कि आप जो चाहे हासिल कर सकते हैं! यह सब आपके हाथ में है. खुशी, संतुष्टि और आनंद सब आपके भीतर ही छुपा हुआ है, जरूरत है केवल उसे ढूंढ निकालने की. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं और किस अवस्था में हैं, यदि आप चाहें तो सकारात्मक सोच से खुशी को अपने अंदर ही महसूस कर सकते हैं.

कुछ लोग सोचते हैं कि यदि मुझे ये मिल जाए या मुझे वो हासिल हो जाए तो मैं खुश हो जाउंगा. लेकिन ऐसे व्यक्ति कभी भी खुश नहीं रह सकते जो अपने वर्तमान से असंतुष्ट हैं और सदैव भविष्य में ही अपनी खुशियां तलाश करते रहते हैं. जरूरत है तो केवल एक सकारात्मक रवैया अपनाने की और आप हमेशा संतुष्टि का अनुभव कर सकते हैं. कहीं भविष्य में खुशियां ढूढंने के चक्कर में आप अपना वर्तमान उदास और दुखी मन से ना गुजार दें! 

शायद आपको विश्वास नहीं होगा पर यह सच है कि; जैसा रवैया आप दूसरों के लिए अपनाते हैं वो आप को भी कहीं ना कहीं प्रभावित करता है. जो चीज़ आपको अच्छी लगती है वो उन्हे भी अच्छी लगेगी, जो बात आपको बुरी लगती है वो उन्हे भी लगेगी. अपने व्यवहार में थोड़ा सा बदलाव आपको ढेरों खुशियां दे सकता है. क्योंकि आपका आंतरिक दृष्टिकोण ही आपके अंदर सच्चे मायने में खुशी की भावना का एहसास कराता है.

जो व्यक्ति हमेशा नकारात्मक सोच लेकर चलते हैं वो कभी भी सच्ची खुशी का आनंद नहीं उठा सकते हैं. क्योंकि वो चाहे कुछ भी हासिल कर लें उन्हे हमेशा और अधिक पाने की इच्छा रहेगी और वो असंतुष्ट ही रहेंगे. वो केवल उदासीनता को ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं. उन्हे इस बात का एहसास भी नहीं होता और वो अपने नकारात्मक नज़रिये के कारण मिलती हुई खुशी को भी नज़रअंदाज कर देते हैं.

आप जैसा सोचते हैं और जैसा व्यवहार करते हैं वो घूम कर आपके पास ही वापस आता है. क्या खुशियों को आकर्षित किया जा सकता है? क्या दुख खिंचा चला आ सकता है? दोनो सवालों का जवाब हाँ ही है. दूसरों के साथ खुशिया बांटने से आप खुद के अंदर खुशी को महसूस कर सकते हैं. आप मानें या ना मानें, पर यदि आप दूसरों की बुरी लगने वाली बातो को नज़रअंदाज कर दें और सिर्फ यह सोचें कि मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हूँ, तो आप चाहे कुछ हो जाए सदैव खुश रहेंगे. केवल एक सकारात्मक सोच अपनाने की आवश्यकता है.

अपनी स्वार्थी इच्छाओं का त्याग कर दें और यह सोचना छोड़ दें कि आप ही सबकुछ हैं. और फिर देखें कि आपके इस ज़रा से बदलाव ने आपकी पूरी ज़िंदगी को ही बदल डाला है. खुशियां तो आपकी ओर आकर्षित हुए बिना रह ही नहीं सकती हैं, क्योंकि आपके भीतर महसूस होने वाली खुशी के लिए आपका मन ही जिम्मेदार है. तो आज से ही आनंद उठाना शुरू कर दें इस जादूई शक्ति का, बस अपने जीवन में एक सकारात्मक नज़रिया अपना कर!

Thursday, 21 November 2013

क्या आप अमीर बनना चाहते हैं?

मैंने बचपन में एक दोहा पढ़ा था. शायद आप लोगों में से बहुतों ने पढ़ा होगा:
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय,
वा खाये बौराय जग, या पाये बौराय.
अर्थात सोने (धन) में धतूरे से सौ गुना अधिक नशा होता है, क्योंकि धतूरा तो खाने से नशा करता हैजबकि सोना (धन) पाने मात्र से नशा हो जाता है. सोना पाना या धन पाना, अर्थात अमीर होना. बहुत से लोग कहते रहते हैं, "आदमी को अमीर नहीं होना चाहिए, क्योंकि पैसा आदमी को बुराई की और ले जाता है. पैसा ही सब बुराइयों की जड़ है. अमीर आदमी कभी सुखी नहीं होता" आदि आदि. परन्तु ये कौन लोग हैं? ये वो लोग हैं जो खुद अमीर नहीं बन पाए, और यदि खुद अमीर बन भी गए तो, दूसरों को अमीर होते देखना नहीं चाहते.

यदि अमीर होना बुरी बात होती तो मैं, आप, या अन्य कोई भी इंसान अमीर बनना नहीं चाहता. यह बात सच है कि दौलत का अपना एक नशा होता है. पर यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस नशे का, हलके सुरूर की तरह आनंद लेते हैं, या यह नशा हमारे सिर चढ़ कर बोलता है? अमिताभ बच्चन की फिल्म 'शराबी' का प्रसिद्द गीत "नशा शराब में होता तो नाचती बोतल" आपने भी सुना होगा. दोस्तों! नशा शराब में नहीं, पीने वाले की सोच में होता है. कुछ लोग शराब के सुरूर का आनंद लेते हैं, जबकि कुछ अन्य लोग अत्यधिक शराब पी कर उधम मचाते हैं और सब को परेशान करते हैं. उसी तरह सज्जन व्यक्ति अपने धन के अनोखे सुरूर का आनंद लेते हैं, जब कि दूसरी तरह के लोग धन पाने के बाद इंसान को इंसान नहीं समझते और संसार की हर बुराई को अपना लेते हैं. प्रसिद्द संत रहीम दास जी ने कहा है:
जे रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग,
चन्दन विष व्यापै नहीं, लिपटे रहत भुजंग.
बहुत नशा होता है दोस्तों धन में, पर हमें उसका सदुपयोग करना है, दुरूपयोग नहीं. हमें इसके गुणों का लाभ उठाना है. महात्मा गाँधी ने भी अपने seven-sins में कहा है, Wealth is not a sin, but wealth without work is a sin.

मनुश्य का शरीर पांच तत्वों से बनता है, अग्नि, जल, वायु, आकाश और पृथ्वी. यही पाँचों तत्व अर्थात शक्तियां (energy) मनुष्य के शरीर को जीवन भर चलाती हैं. पर आज के युग में एक और शक्ति बहुत आवश्यक है, और वह है धन. बच्चा पैदा होते ही उसे भूख लगती है, उसे दूध चाहिए जो माँ से मिल जाता है. थोड़ा बड़ा होता है तो उसे खाना चाहिए, पहनने को कपड़े चाहिए, सिर पर छत चाहिए, थोड़ा और बड़ा होता है तो खिलोने चाहिए. स्कूल जाने लगता है तो पुस्तकें, पेंसिल, यूनिफार्म, स्कूल-फीस चाहिए, स्कूल-बस चाहिए, खेल कूद का सामान चाहिए, थोड़ा और बड़ा होता है तो साईकिल चाहिए, बाइक चाहिए. 20-25 वर्ष की आयु तक उसका सारा खर्च माँ-बाप उठाते हैं. शादी में खर्च, शादी के बाद पत्नी का खर्च, फिर बच्चों का भी. बीमार हो गए तो इलाज का खर्च, रहने के लिए घर, आवागमन के लिए बाइक या कार, बात करने के लिए मोबाइल, काम करने के लिए लैपटॉप और भी न जाने क्या-क्या. यह सब, क्या पैसे के बिना संभव है? नहीं. जन्म से ले कर मृत्यु तक हर काम में पैसे की आवश्यकता होती है. आज के युग में बिना पैसे के जीवन संभव ही नहीं है. शायद इसीलिए, पैसे अर्थात धन को आज के युग में, जीवन को चलाने वाली छठी energy माना जाता है.

हाँ तो हम बात कर रहे थे कि, "क्या आप अमीर बनना चाहते हैं?" आपका उत्तर मैं जानता हूँ. परन्तु एक बार पूरे मन से आप मुझे और अपने आप से कहिये कि आप अमीर बनना चाहते हैं. अपने लक्ष्य निर्धारित कीजिये. यदि आपने मेरे पहले के लेख पढ़े हैं तो आप जन चुके होंगे कि लक्ष्य निर्धारण क्यों, कैसे और किस प्रकार के निर्धारित करें. आपने अपनी सक्सेस डायरी बनाई होगी और उसमें अपने लक्ष्य लिखे भी होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है. अगर नहीं बनाई है तो कोई बात नहीं. चलिए अब बना लीजिये और उसके पहले पेज पर अपने लक्ष्य स्पष्ट रूप से लिख लीजिये.

दोस्तों! जैसा कि हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि जीवन में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता. (There are no free lunches) हमें हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है. आपका अपनी सफलता का सपना, अमीर बनने का सपना भी ऐसे ही पूरा होने वाला नहीं है. इसके लिये भी आपको कीमत चुकानी पड़ेगी. आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, इसका अर्थ है कि आप अपनी सफलता के और अमीर बनने के सपने की कीमत चुकाने के लिये काफी हद तक तैयार हैं. फिर भी, अपनी सक्सेस डायरी के दुसरे पेज पर निम्नलिखित प्रश्न और उनके सामने उनके उत्तर लिखिए:

1. क्या आप ऐसे लोगों को छोड़ने के लिए तैयार हैं, जो आपकी तरक्की, आपकी सफलता में रूकावट पैदा करते हैं?

2. क्या आप प्रेरणा-दायक पुस्तकें, लेख आदि पढने एवं इसके विडियो देखने के लिए तैयार हैं?

3. क्या आप प्रेरणा-दायक और self-development सेमिनार या वर्कशॉप अटेंड करने के लिए तैयार हैं?

4. क्या आप TV serials को छोड़ कर news-channels, business channels देखने के लिए तैयार हैं?

5. क्या आप सफल और अमीर व्यक्तिओं की जीवनियाँ (biographies) पढने के लिए तैयार हैं?

6. क्या आप अपनी सोच में से नकारात्मकता को निकालने के लिए तैयार हैं?

7. क्या आप सफल एवं अमीर व्यक्तियों के साथ उठने-बैठने, उनकी संगति करने के लिये तैयार हैं?

यदि इन सब प्रश्नों का उत्तर हाँ है तो आप सही रास्ते पर हैं. आपको सफल होने से, अमीर बनने से कोई भी रोक नहीं सकता. यदि इनमें से एक भी प्रश्न का उत्तर ना में है, तो पहले उस ना को हाँ में बदलीये और फिर आगे बढिए. आइये अब इन प्रश्नों को थोड़ा गहराई में समझने का प्रयास करते हैं.

बचपन से ही हमें माता-पिता, रिश्तेदारों, दोस्तों आदि से यही सुनने को मिलता है कि पैसे से प्यार मत करो. यहाँ तक कि जब हम किसी धार्मिक स्थान पर जाते हैं तो वहां भी यही प्रवचन सुनने को मिलता है. पर क्या यह सब लोग पैसे से प्यार नहीं करते? शायद करते हैं, पर अन्दर ही अन्दर. या फिर शायद वह इस बात से अनजान हैं कि, जाने-अनजाने उन्हें भी पैसे से प्यार है. इनमें से किसी से किसी से भी पूछ कर देखिये क्या उन्हें बड़ा और सुन्दर घर नहीं चाहिये? बड़ी कार नहीं चाहिये? महंगा मोबाइल फ़ोन नहीं चाहिये? बच्चों की अच्छी शिक्षा नहीं चाहिये? यदि चाहिये, तो क्या यह सब, बिना पैसे के आ जाएगा? आप ऐसे दोस्तों को छोड़ सकते हैं, अन्य लोगों को छोड़ सकते हैं, पर अपने परिवार एवं रिश्तेदारों को नहीं. क्या करेंगे आप? उत्तर बेहद आसान है. आप अपने ऊंचे लक्ष्यों एवं अमीर बनने की चाहत को ऐसे लोगों से शेयर ना करें. और उनकी नकारात्मक बातों को अनदेखा करें. इस विषय पर फिर किसी लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे.

जब आप प्रेरणादायक (inspirational and motivational) लेख या पुस्तकें पढ़ते हैं, विडियो देखते हैं, सेमिनार या वर्कशॉप अटेंड करते हैं, तो अन्दर ही अन्दर आप में एक अनोखी चेतना का संचार होता है, आपकी इच्छाशक्ति बढती है, आप एक प्रकार के जोश से भर जाते हैं और आपकी सफलता की राह आसान हो जाती है. आप अपने अमीर बनने के सपने के और अधिक करीब हो जाते हैं. सफल एवं अमीर लोगों की जीवनियाँ (biographies) पढने से भी आप ऐसे ही जोश से ओतप्रोत हो जाते हैं. यार! मुझे भी ऐसा बनना है.

आपके जीवन में इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि आनंदी कितनी बार बदल गई है, या फिर जगिया की शादी गंगा से होती है साँची से. इन फ़ालतू के TV serials में व्यर्थ समय बर्बाद करने की अपेक्षा न्यूज़ चैनल्स या बिज़नेस चैनल्स आपके ज्ञान को कहीं अधिक बढ़ाएंगे जो आपको अपनी सफलता की और बढ़ने में सहायक होगा. हां थोड़ी देर मनोरंजन भी आवश्यक है.

आपकी सकारात्मक या नकारात्मक सोच ही आपके भविष्य का निर्धारण करती है. वो कहते हैं ना कि जो हम सोचते हैं, वही हम बन जाते हैं. विचारों की नकारात्मकता हमें आगे बढ़ने से रोकती है, जबकि सकारात्मक सोच हमें सफल होने में, अमीर बनने में सहायता करती है. इस विषय पर फिर किसी लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे.

जब आप सफल एवं अमीर लोगों के साथ मेल जोल बढ़ाते हैं, उनके साथ उठते बैठते हैं, तो उनके विचारों से, उनकी सोच से अवगत होते हैं. उनकी संगति का सकारात्मक असर आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है. आपकी सोच सकारात्मक होने लगती है, और आप अपने अमीर बनने के सपने के और अधिक करीब आ जाते हैं.

यह लेख बहुत बड़ा हो जाएगा. इसलिए शेष भाग अगले लेख में.

अपने सपनों को साकार करने के लिये मेरे आर्टिकल्स पढ़ते रहियेअपनी राय मुझे कमेंट्स के माध्यम से भेजते रहिये. तब तक के लिए शुभ-रात्रि, good-night, शब्बाखैर. CA बी. एम्. अग्रवाल

Wednesday, 13 November 2013

क्या Law of Attraction काम करता है?

क्या "आकर्षण का सिद्धांत" (Law of Attraction) काम करता है? यह प्रश्न करीब करीब हर उस इंसान के मस्तिष्क में उठता है जो इस को पढता है या इस पर बनी विडियो देखता है. इसका उत्तर है, हां यह काम करता है. परन्तु उस प्रकार नहीं, जिस प्रकार विडियो में दिखाया गया है. विडियो बनाने वाले लोगों को अपना विडियो बेचना है, इसलिए वह हर चीज़ को बहुत आसान बना कर दिखाते हैं, कि बस आपने केवल सोचना है, कुदरत (इश्वर) को एक मेनू-कार्ड की तरह इस्तेमाल करते हुए अपना आर्डर देना है और वह, अलादीन के जिन्न की भांति सब कुछ ला कर आपके क़दमों में डाल देगा. दोस्तों! वास्तविक जिंदगी में ऐसा नहीं होता. 

आइये थोड़ा विस्तार से इस पर विचार करते हैं.

सिद्धांत, कुदरत के बनाये एक प्रकार के नियम हैं, जो निरंतर अपना कार्य करते हैं. इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि हम उन नियमों को जानते हैं या नहीं जानते, उन्हें मानते हैं या नहीं मानते. हमारे मानने या ना मानने से ये सिद्धांत बदल नहीं जाते, ये अपना कार्य निर्धारित रूप से करते जाते हैं. हम गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को मानें या ना मानें. ऊंचाई से छलांग लगाने से हम उड़ नहीं जायेंगे, बल्कि नीचे ही गिरेंगे. क्योंकि पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण हर वस्तु को अपनी और आकर्षित करती है, उसे अपने और खींचती है. ठीक उसी प्रकार, जैसे अन्य सिद्धांत अपना कार्य करते हैं. जैसे उर्जा से तरल पदार्थ (liquid), भाफ़ (steam) बन जाता है, ठण्ड से भाफ़ द्रव (liquid) बन जाती है. इसी तरह आकर्षण का सिद्धांत भी अपने नियमों के अनुसार ही कार्य करता है, चाहे हम उसे मानें या ना मानें.

दोस्तों! हमने देखा कि किस प्रकार प्रकृति के सिद्धांत अपना कार्य करते हैं? इसी प्रकार "आकर्षण का सिद्धांत" (Law of Attraction) भी अपना कार्य करता है. अब यदि हम चाहें तो इस सिद्धांत को भी अपने फायदे के लिए प्रयोग कर सकते हैं, जैसे हम अन्य सिद्धांतों को प्रयोग में लाते हैं. आग का सिद्धांत है जलाना, पर हम इसे खाना पकाने के लिए प्रयोग करते हैं. यही आग यदि सावधानी पूर्वक प्रयोग ना की जाए तो यह हमें जला भी सकती है. इसी आग की शक्ति से भाफ़ (steam) बनती है जो बड़े-बड़े जहाज़ों को रेल-इंजनों को चलाती है. यदि हम सही तरीके से "आकर्षण के सिद्धांत" को प्रयोग में लायेंगे तो उससे बहुत लाभ उठा सकते हैं, अन्यथा, यही सिद्धांत अपना कार्य करते हुए हमारा अहित भी कर सकता है.

सबसे पहले आती है हमारी सोच. जो हम सोचते हैं वही हम बन जाते हैं. हमें अपनी सोच सकारात्मक रखनी है. यदि हमारी सोच सकारात्मक है, तो यह सिद्धांत हमें सकारात्मक परिणाम देगा, अन्यथा हमारी नकारात्मक सोच के चलते भी यह तो अपना कार्य करता ही जाएगा, पर ज़रा सोचिये इस प्रकार हमारा कितना अहित हो सकता है? यदि इस सिद्धांत का प्रयोग ठीक से किया जाए तो 'हम जो चाह सकते हैं, वह हम पा सकते हैं.'

दोस्तों! दुनिया में दो प्रकार के विश्वास होते हैं. एक है विश्वास और दूसरा है अंधविश्वास. ईश्वर है, यह एक विश्वास है परन्तु ईश्वर ही हर अच्छे बुरे कार्य या परिणाम के लिए उत्तरदायी है, यह अंधविश्वास है. आकर्षण के सिद्धांत में सबसे पहले यह बताया जाता है कि आपको अपने लक्ष्य लिखने हैं. यह सच है कि लिखने से कोई भी बात हमारे दिमाग में जल्द और गहराई तक बैठती है और हमारी सोच को प्रभावित करती है. एक दूसरा तरीका भी इस बात के लिए यह भी बताया जाता है कि आप अपने लक्ष्यों की तस्वीरें लगा कर एक विज़न-बोर्ड बनाएं. चाहे आप अपने लक्ष्यों को लिखें या फिर विज़न-बोर्ड बनाएं, तात्पर्य यह है कि आपके लक्ष्य जितना अधिक आपके सामने रहेंगे, उतना ही आप उन्हें याद रख पायेंगे. वो कहते हैं न किout of sight, out of mind. प्रतिदिन आपके दिमाग में आने वाले हज़ारों विचारों में, आपके लक्ष्य कहां खो जायेंगे, पता भी नहीं चलेगा. लिखे हुए लक्ष्य या विज़न-बोर्ड का कार्य है आपकी इच्छाओं को को ज्वलंत-इच्छाएं (burning desire) बनाना. पर यदि आप यह सोचते हैं, कि केवल लिख देने से या विज़न-बोर्ड बना देने भर से आपको आपके लक्ष्य प्राप्त हो जायेंगे, तो यह आपका अंध-विश्वास है. आपने देखा होगा कि बहुत से लोग अपने ड्राइंग-रूम में बड़ी-बड़ी मंहगी कारों के या बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स के चित्र लगाते हैं, बहुत से हेयर-कटिंग सैलून में भी ऐसी तस्वीरें लगी रहती हैं, पर बरसों बाद भी ऐसे लोगों के पास वैसी बड़ी-बड़ी मंहगी कारें या बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स नहीं आती. तो यह सोचना कि लिखने या विज़न-बोर्ड बनाने मात्र से आपको आपके लक्ष्य प्राप्त हो जायेंगे, यह अंध-विश्वास है. जहाँ विश्वास आपका हित-साधक है, वहीँ अन्धविश्वास आपका अहित ही करता है.

जब अपने लक्ष्यों, अपनी इच्छाओं पर आप पूरा ध्यान केन्द्रित (focus) करेंगे, आपकी इच्छाएं burning desires बन जायेंगी. आपको अपने लक्ष्यों तक पहुँचने के अनेकों रास्ते नज़र आयेंगे, उन रास्तों पर चलते हुए जब आप जोश के साथ प्रयत्न करेंगे, तो आपके लिए अपने लक्ष्य प्राप्त करना आसान हो जाएगा. अर्थात केवल सोचने से या लिखने से आपको आपके लक्ष्य प्राप्त नहीं होने वाले. अपनी सोच से अपने लक्ष्यों को अपनी इच्छाओं को ज्वलंत इच्छाएं बनाना है और अपनी कल्पना में अपने लक्ष्यों को पूरा होते देखने का अनुभव (visualise) करना है. तब बनेंगी आपकी इच्छाएं burning desires. जब आपकी इच्छाएं burning desires बन जायेंगी, आगे का रास्ता आपके लिए आसान हो जाएगा. इसमें आपका विश्वास भी बहुत महत्वपूर्ण पार्ट अदा करता है. यदि आप मन में यही सोचते रहते हैं, कि यह सिद्धांत काम करेगा या नहीं? यह आपके अनुसार कार्य नहीं करेगा.

एक और बात भी यहां सामने आती है, वह है आपकी इच्छाशक्ति. आकर्षण का सिद्धांत आपकी इच्छाशक्ति को दृढ बनाता है. आपकी इच्छाशक्ति बहुत सी समस्याओं (जैसे बिमारी, आपसी सम्बन्ध आदि) से निकलने में आपका बहुत साथ देती है. 

इस सिद्धांत को कैसे प्रयोग करना है? इसके लिए आपको क्या करना है और क्या नहीं? इसकी चर्चा हम फिर किसी लेख में करेंगे.

अपने सपनों को साकार करने के लिये मेरे आर्टिकल्स पढ़ते रहियेअपनी राय मुझे कमेंट्स के माध्यम से भेजते रहिये. तब तक के लिए शुभ-रात्रि, good-night, शब्बाखैर. CA बी. एम्. अग्रवाल


Tuesday, 12 November 2013

असफलता, सफलता का राजमार्ग है

सुनने में बात शायद कुछ अटपटी लगे, परन्तु असफलता, सफलता के लिए राजमार्ग (highway) है. टॉम वाटसन सीनियर (इंटरनेशनल बिजनेस मशीन के अध्यक्ष और सीईओ) ने तो यहां तक कहा है कि, "यदि आप सफलता चाहते हैं, तो अपनी असफलता की दर दोगुनी कर दीजिये." यदि हम इतिहास का अध्ययन करें तो हम पायेंगे कि, सफलता की सारी महान कहानियाँ, महान असफलताओं की भी कहानियाँ हैं. लेकिन सफल लोगों की विफलतायें, अक्सर दूसरों को नहीं दिखती. लोगों को तस्वीर का केवल एक पहलू दिखता है, सफलता वाला पहलू, और लोग कहते हैं, "वह व्यक्ति भाग्यशाली रहा होगा. उसे उचित समय पर अवसर मिला होगा." परन्तु सफलता से पहले या बाद में, उस सफल व्यक्ति ने भी अवश्य, कई बार असफलताओं या विफलताओं का मूंह देखा होगा. यहां हम कुछ महान व्यक्तियों की संक्षिप्त कहानियों का उदहारण देखते हैं.

एक 21 साल का व्यक्ति व्यापार में विफल रहा, 22 साल की उम्र में एक विधायी चुनाव हारा, 24 साल की उम्र के कारोबार में फिर से विफल रहा. 26 साल की उम्र में उनकी पत्नी का निधन हो गया, 27 साल की उम्र में उन्हें तंत्रिका-विकार (nervous breakdown) हुआ; 34 साल की उम्र में कांग्रेस का चुनाव हारा, 45 साल की उम्र में एक प्रशासनिक समितीय चुनाव हारा, 47 साल की उम्र में उपाध्यक्ष बनने के प्रयास में विफल रहा, 49 साल की उम्र में एक प्रशासनिक समितीय चुनाव हारा, और 52 साल की उम्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए. यह आदमी अब्राहम लिंकन था. क्या आप उसे एक विफलता कहोगे? और कोई होता तो शायद हार मान लेता. लेकिन लिंकन हार मानना शायद सीखा ही नहीं था.

1913 में, triodes ट्यूब के आविष्कारक, ली डी फॉरेस्ट, पर जिले के वकील ने आरोप लगाया कि, फारेस्ट ने जनता को अपनी कम्पनी के शेयर को खरीदने के लिएकपटपूर्ण साधनों का उपयोग कर, गुमराह किया. इस आरोप के साथ उन्हें सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया. फारेस्ट ने कहा था, कि वह अटलांटिक के पार तक मानव आवाज संचारित कर सकता है. क्या यह असफलता थी? नहीं. ज़रा सोचिये उनके आविष्कार के बिना क्या होता? फारेस्ट को बाद में 'रेडियो के पिता' के रूप में जाना गया. क्या यह विफलता थी?

KFC के कर्नल सैंडर्स को 65 साल की उम्र में 
एहसास हुआ, जो कुछ उनके पास था (एक टूटी कार और 100 डॉलर) वह कुछ भी नहीं था. तभी उन्हें अपनी मां का नुस्खा याद आया और वह उसे बेचने के लिए निकल पड़े. जानते हैं, अपना पहला आर्डर पाने से पहले उन्होंने कितने दरवाजे खटखटाए होंगेअनुमान है कि अपना पहला आर्डर पाने से पहले उन्होंने एक हजार से अधिक दरवाजों पर दस्तक दी थी. अधिकतर लोग दो तीन कोशिशों के बाद हार मान कर बैठ जाते हैं और कहते हैं जो कुछ हम कर सकते हैं, हमने किया.

एक युवा कार्टूनिस्ट के रूप में, वॉल्ट डिज्नी की प्रतिभा को पहचानने से अखबार वालों ने इनकार कर दिया. कई अखबार के संपादकों से उन्हें 
अस्वीकृति (rejections) का सामना करना पड़ा. एक दिन एक चर्च में एक मंत्री ने कुछ कार्टून बनाने के लिए उसे काम पर रखा. डिज्नी चर्च के पास एक छोटे से शेड के बाहर काम कर रहा था. उस शेड में चूहों ने उधम मचा रखा था. एक छोटे चूहे को देख कर डिज्नी को प्रेरणा मिली. यहीं से मिकी-माउस का जन्म हुआ.

एक दिन एक आंशिक रूप से बधिर (deaf), चार साल का बच्चा अपने घर आया तो उसकी जेब में उसके शिक्षक द्वारा लिखा एक नोट था. नोट में लिखा था, "आपका टॉमी मूर्ख है, यह कुछ भी नहीं सीख सकता. इसे स्कूल से निकाल लीजिये." उसकी मां ने पत्र पढ़ा और उत्तर दिया, " मेरा टॉमी मूर्ख नहीं है, मैं उसे अपने आप सिखाऊंगी." और यही टॉमी बड़ा हो कर महान थॉमस एडीसन बना. थॉमस एडीसन की औपचारिक स्कूली शिक्षा केवल तीन महीने की थी और वह आंशिक रूप से बहरा था. 
जब थॉमस एडीसन बल्ब पर काम कर रहा था, वह लगभग 10,000 बार असफल रहा. क्या यह विफलता थी?

हेनरी फोर्ड अपनी पहली कार में रिवर्स गियर बनाना भूल गया. क्या यह विफलता थी?

युवा बीथोवेन से कहा गया कि उसमें संगीत के लिए कोई प्रतिभा नहीं थी, लेकिन वह दुनिया के लिए कुछ सर्वश्रेष्ठ संगीत दे गया.

क्या आप इन लोगों को असफल मानते हैं? वे सब के सब अभावों में रहते हुए, समस्याओं के बावजूद सफल रहे. लोगों को शायद यह लगता हो कि वे भाग्यशाली थे. परन्तु उनकी सफलता का राज था persistence. 

सफलता की सभी कहानियां, महान असफलताओं की कहानियाँ हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि वे लोग विफल रहने पर हार कर नहीं बैठे, अपनी विफलताओं से सबक लेते हुए अपने कार्य में लगे रहे. आप भी अपनी विफलताओं से सीखें और आगे बढ़ें. 

दोस्तों! इंसान जब प्रयत्न करता है तब या तो वह सफल हो जाता है या कुछ सीख जाता है.

कविवर हरिवंश राय बच्चन की कविता की कुछ पंक्तियां यहां उद्धृत करना चाहूँगा:

असफलता एक चुनौती है... स्वीकार करो...
क्या कमी रह गयीदेखो और सुधार करो...
जब तक ना सफल हो नींद-चैन को त्यागो तुम...
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम...
कुछ किये बिना ही जयजयकार नहीं होती...
हिम्मत करने वालों की कभी हार नही होती...