Tuesday, 4 March 2014

वफादार खजांची

दिल्ली के एक बादशाह अपनी प्रजा के सुख-दुख का बड़ा ख्याल रखते थे. वह हर समय आम आदमी के विकास की बात सोचते रहते थे. एक रात वह टहल रहे थे, तभी अचानक उनकी नजर शाही खजाने की तरफ गई. उन्होंने थोड़ा और आगे बढ़कर देखा तो पाया कि खजाने की बत्तियां जली हुई हैं. बत्ती जलती देखकर बादशाह खजाने की तरफ बढ़ चले. वहां जाने पर उन्होंने देखा कि खजांची कुछ हिसाब-किताब कर रहे हैं. उन्होंने खजांची से पूछा, ‘क्या बात है? आज सोना नहीं है? आधी रात हो गई और तुम अब तक यहीं पर बैठे-बैठे हिसाब-किताब कर रहे हो.बादशाह की बात पर खजांची बोला, ‘जहांपनाह, हिसाब कुछ बढ़ गया है इसलिए मैं दोबारा गिनती कर रहा हूं और यह पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं कि आखिर किसका अतिरिक्त धन हमारे खजाने में आ गया है.
बादशाह खजांची की इस बात पर बोले, ‘ठीक है, किसी का पैसा खजाने में आ गया होगा. लेकिन यह काम तो तुम कल सुबह भी कर सकते हो. अभी तो बहुत रात हो गई है. काम बंद करो और अपने घर जाकर आराम करो.इस पर खजांची ने जवाब दिया, ‘आप ठीक कह रहे हैं. यह काम मैं कल भी कर सकता हूं. मगर जिसके पैसे हमारे पास आ गए हैं वह आदमी तो बेहद परेशान हो रहा होगा फिर वह मन ही मन बद्दुआ भी दे रहा होगा. मैं नहीं चाहता कि उसकी बद्दुआ हुकूमत को लगे. इसलिए मैं अभी हिसाब साफ करना चाहता हूं ताकि उस शख्स को सुबह होते ही पैसे लौटा सकूं. मैं नहीं चाहता कि कोई यह समझे कि यहां किसी भी मामले में कार्रवाई देर से होती है.बादशाह खजांची की बात सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले, ‘जिस राज्य में तुम जैसा वफादार व ईमानदार खजांची हो उसे तरक्की की ओर जाने से कोई नहीं रोक सकता.बादशाह खजांची की पीठ थपथपाकर लौट गए.


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