बात बहुत पुरानी है, एक राजा था। वह अपनी बेटी से बेइंतहा प्यार करता था, उसकी हर इच्छा पूरी करता था। लेकिन बेटी को कभी महल के बाहर नहीं जाने देता था। बेटी महल के बाहर की दुनिया से अपरिचित थी।
एक दिन बेटी ने शहर देखने की इच्छा जताई। राजा के मना करने पर बेटी रूठ गई। राजा चिंता में पड़ गए। फूल-सी बेटी, कभी पैदल ज़्यादा चली नहीं। महल की नर्म चटाइयों पर रहने वाले कोमल पैर पथरीली सड़कों पर कैसे चलेंगे? उस समय न तो आज जैसी कोई पक्की सड़क थी, न ही जूतों का जनम हुआ था। क्या किया जाए?
सोच-विचार के बाद राजा ने मंत्रियों को आदेश दिया की पूरी शहर की गलियों पर चमड़े की चादर बिछा दी जाए, ताकि राजकुमारी को चलने में तकलीफ़ न हो।
तभी एक दरबारी ने सुझाव दिया कि सारे शहर में चमड़ा बिछाने के बजाय क्यों न राजकुमारी के पैरों में चमड़ा पहना दिया जाए। इससे राजकुमारी के पैर भी सुरक्षित रहेंगे और काम भी आसान हो जाएगा। बात बड़ी सरल और तर्कपूर्ण है। दुनिया भर को अपने अनुकूल करने से बेहतर व आसान है निजी बदलाव।
कहा जाता है, तभी से जूते पहनने का चलन शुरू हुआ।
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