एक व्यापारी ने अपने पुत्र को प्रसन्नता
का रहस्य जानने के लिए एक बुद्धिमान वृद्ध के पास भेजा. चालीस दिन और चालीस रातों तक रेगिस्तान में चलता हुआ वह युवक अंततः एक पर्वत के शिखर
पर बने हुए सुन्दर किले के पास पहुँच गया. वह बुद्दिमान वृद्ध वहीं रहता था.
उस किले में प्रवेश करने पर उसने देखा कि वहां मजमा-सा लगा हुआ था. चारों ओर राग-रंग बिखरा हुआ था. व्यापारियों की टोलियाँ घूम रहीं थीं. यहाँ-वहां बैठे लोग बतिया रहे थे. साजिंदों ने रागिनियाँ छेड़ रखीं थीं. दस्तरखानों पर दुनिया के बेहतरीन पकवान सजे हुए थे.
युवक ने भीड़ में बुद्धिमान वृद्ध को भी देखा. वह कई लोगों से बातें कर रहा था. सभी उससे कुछ पूछना कहते थे. अपनी बारी आने के लिए युवक को दो घंटे तक इंतज़ार करना पड़ा.
वृद्ध ने बहुत धैर्यपूर्वक युवक से उसके वहां आने का कारण सुना. वृद्ध ने उससे कहा कि प्रसन्नता का रहस्य बताने के लिए उसके पास पर्याप्त समय नहीं है. उसने युवक से कहा कि वह एक-दो घंटे में किले के इर्द-गिर्द सैर करके वापस आ जाये.
“जाने से पहले मेरे लिए एक छोटा सा काम कर दो” - वृद्ध वे युवक से कहा. वृद्ध ने युवक को एक चम्मच में दो बूँद तेल डालकर दे दिया और कहा – “बाहर घूमते-फिरते समय इस चम्मच को अपने हाथ में रखे रहना और इसमें से तेल की बूँदें गिरने मत देना.”
युवक ने उस चम्मच को बहुत सावधानी से अपने हाथ में थामकर किले की बेशुमार सीढ़ियाँ चढीं-उतरीं और दसियों कमरों में से गुज़रा. उसकी नज़रें हमेशा चम्मच में मौजूद तेल पर ही टिकीं रहीं. दो घंटे के बाद वह वृद्ध के पास लौट आया.
“बढ़िया है” - वृद्ध ने युवक से कहा – “क्या तुमने हमारे भोजन कक्ष में टंगे बेशकीमती फ़ारसी परदे देखे? तुमने वह बाग़ तो देखे ही होंगे जिन्हें तराशने में हमारे सबसे हुनरमंद मालियों को भी दस साल लग गए! और तुमने किताबघर में रखीं नायाब किताबें देखीं?”
युवक ने झिझकते हुए कहा कि उसने वह सब नहीं देखा. उसके जहन में हर पल वृद्ध द्वारा सौंपी गईं तेल की बूंदों को गिरने से बचने की कवायद ही चल रही थी.
“कोई बात नहीं. तुम दोबारा जाओ और यह सब अच्छे से देखकर वापस आओ.” - वृद्ध ने युवक से कहा – “तुम उस आदमी पर तब तक यकीन नहीं कर सकते जब तक तुमने उसके घर को भली-भांति न देख लिया हो”.
इस बार युवक के मन में कोई परेशानी नहीं थी. उसी चम्मच को हाथ में थामे हुए युवक ने आराम से किले को देखा. इस बार उसने वृद्ध द्वारा बताई गईं खासियतों के साथ -साथ किले में मौजूद बेशुमार कलाकृतियों और बारीकियों का मुआयना किया. वापस लौटकर उसने वृद्ध को सब कुछ तफ़सील से बताया.
“ठीक है. लेकिन वह दो बूँद तेल कहाँ है जो मैंने तुम्हें हिफाज़त से रखने के लिए दिया था?” – वृद्ध ने पूछा.
उस चम्मच को देखने पर युवक को इस बात का इल्म हुआ कि चम्मच में से सारा तेल छलक चुका था.
“मायूस न हो मेरे बच्चे. मैं तुम्हें यही तो दिखाना चाहता था” – वृद्ध ने कहा – “प्रसन्नता का रहस्य इसी बात में है कि तुम इस दुनिया के सारे करिश्मे देख लो फिर भी तेल की उन दो बूंदों को चम्मच में से न छलकने दो.”
उस किले में प्रवेश करने पर उसने देखा कि वहां मजमा-सा लगा हुआ था. चारों ओर राग-रंग बिखरा हुआ था. व्यापारियों की टोलियाँ घूम रहीं थीं. यहाँ-वहां बैठे लोग बतिया रहे थे. साजिंदों ने रागिनियाँ छेड़ रखीं थीं. दस्तरखानों पर दुनिया के बेहतरीन पकवान सजे हुए थे.
युवक ने भीड़ में बुद्धिमान वृद्ध को भी देखा. वह कई लोगों से बातें कर रहा था. सभी उससे कुछ पूछना कहते थे. अपनी बारी आने के लिए युवक को दो घंटे तक इंतज़ार करना पड़ा.
वृद्ध ने बहुत धैर्यपूर्वक युवक से उसके वहां आने का कारण सुना. वृद्ध ने उससे कहा कि प्रसन्नता का रहस्य बताने के लिए उसके पास पर्याप्त समय नहीं है. उसने युवक से कहा कि वह एक-दो घंटे में किले के इर्द-गिर्द सैर करके वापस आ जाये.
“जाने से पहले मेरे लिए एक छोटा सा काम कर दो” - वृद्ध वे युवक से कहा. वृद्ध ने युवक को एक चम्मच में दो बूँद तेल डालकर दे दिया और कहा – “बाहर घूमते-फिरते समय इस चम्मच को अपने हाथ में रखे रहना और इसमें से तेल की बूँदें गिरने मत देना.”
युवक ने उस चम्मच को बहुत सावधानी से अपने हाथ में थामकर किले की बेशुमार सीढ़ियाँ चढीं-उतरीं और दसियों कमरों में से गुज़रा. उसकी नज़रें हमेशा चम्मच में मौजूद तेल पर ही टिकीं रहीं. दो घंटे के बाद वह वृद्ध के पास लौट आया.
“बढ़िया है” - वृद्ध ने युवक से कहा – “क्या तुमने हमारे भोजन कक्ष में टंगे बेशकीमती फ़ारसी परदे देखे? तुमने वह बाग़ तो देखे ही होंगे जिन्हें तराशने में हमारे सबसे हुनरमंद मालियों को भी दस साल लग गए! और तुमने किताबघर में रखीं नायाब किताबें देखीं?”
युवक ने झिझकते हुए कहा कि उसने वह सब नहीं देखा. उसके जहन में हर पल वृद्ध द्वारा सौंपी गईं तेल की बूंदों को गिरने से बचने की कवायद ही चल रही थी.
“कोई बात नहीं. तुम दोबारा जाओ और यह सब अच्छे से देखकर वापस आओ.” - वृद्ध ने युवक से कहा – “तुम उस आदमी पर तब तक यकीन नहीं कर सकते जब तक तुमने उसके घर को भली-भांति न देख लिया हो”.
इस बार युवक के मन में कोई परेशानी नहीं थी. उसी चम्मच को हाथ में थामे हुए युवक ने आराम से किले को देखा. इस बार उसने वृद्ध द्वारा बताई गईं खासियतों के साथ -साथ किले में मौजूद बेशुमार कलाकृतियों और बारीकियों का मुआयना किया. वापस लौटकर उसने वृद्ध को सब कुछ तफ़सील से बताया.
“ठीक है. लेकिन वह दो बूँद तेल कहाँ है जो मैंने तुम्हें हिफाज़त से रखने के लिए दिया था?” – वृद्ध ने पूछा.
उस चम्मच को देखने पर युवक को इस बात का इल्म हुआ कि चम्मच में से सारा तेल छलक चुका था.
“मायूस न हो मेरे बच्चे. मैं तुम्हें यही तो दिखाना चाहता था” – वृद्ध ने कहा – “प्रसन्नता का रहस्य इसी बात में है कि तुम इस दुनिया के सारे करिश्मे देख लो फिर भी तेल की उन दो बूंदों को चम्मच में से न छलकने दो.”
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