Tuesday, 11 March 2014

विद्या ददाति विनयम्

एक स्टेशन पर एक युवक छोटा सा सूटकेस हाथ में लेकर ट्रेन से उतरा. उतर कर वह कुली ढूंढने लगा. कुली-कुली उसने कई आवाजें लगाई, परंतु कोई कुली नहीं आया. उस युवक के साथ एक अन्य व्यक्ति भी ट्रेन से उतरा. उसने जब देखा कि युवक एक बहुत ही छोटे से सूटकेस को उठाने के लिए कुली ढूंढ रहा है तो उसकी मदद के लिए गया कि शायद युवक को कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होगी, जिसके कारण वह छोटे से सूटकेस को ढोने के लिए भी कुली ढूंढ रहा है.

उस व्यक्ति ने युवक से पूछा आप इस जरा से सूटकेस को उठाने के लिए कुली को क्यों ढूंढ रहे हैं?

मैं पढ़ा लिखा व्यक्ति हूँ, और सूटकेस छोटा हो या बड़ा इसे तो कुली ही उठाते हैं युवक ने जवाब दिया.

कुली तो हैं नहीं, यदि तुम्हें कोई समस्या न हो तो मैं इसे उठा कर आप जहाँ कहें पहुँचा देता हूं उस व्यक्ति ने प्रस्ताव दिया.

युवक सहर्ष राज़ी हो गया. गंतव्य पर पहुँचने पर युवक उस व्यक्ति को मेहनताना देने लगा. मगर उस व्यक्ति ने मना कर दिया.

शाम को वहीं स्टेशन के पास एक सभागार में प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भाषण था. सभागार में वह युवक भी पहुँचा. दरअसल वह खासतौर पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भाषण सुनने ही इस शहर में आया था.

उसने देखा कि वह व्यक्ति जिसने उसका बैग उठाया था, और कोई नहीं, ईश्वरचंद्र विद्यासागर थे!

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