Saturday, 21 December 2013

बीज की सोच

मिटटी के नीचे दबा एक बीज अपने खोल में आराम से सो रहा था. उसके बाकी साथी भी अपने अपने खोल में सिमटे पड़े हुए थे. तभी अचानक एक दिन बरसात हुई, जिस्से. मिटटी के ऊपर कुछ पानी इकठ्ठा हो गया और सारे बीज भीग कर सड़ने लगे. वह भी बीज भी तर -बतर हो गया और सड़ने लगा.
बीज ने सोचा, ”इस तरह तो मैं एक बीज के रूप में ही मर जाऊंगा. मेरी हालत भी मेरे दोस्तों की तरह ही हो जाएगी, जो अब ख़त्म हो चुके हैं. मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए कि मैं अमर हो जाऊं. बीज ने हिम्मत दिखाई और पूरी ताकत लगाकर अपना खोल तोड़ कर खुद एक पौधे के रूप में परिवर्तित कर लिया. अब बरसात और मिटटी उसके दोस्त बन चुके थे और नुक्सान पहुँचाने की जगह बड़े होने में उसकी मदद करने लगे. धीरे धीरे वह बड़ा होने लगा. एक दिन वह स्थिति आई जब वह इतना बड़ा हो गया कि अब और नही बढ़ सकता था. उसने मन ही मन सोचा, इस तरह यहाँ खड़े-खड़े मैं एक दिन मर जाऊँगा, पर मुझे तो अमर होना है. और ये सोच कर उसने खुद को एक कली के रूप में परिवर्तित कर लिया.
कली बसंत में खिलने लगी, उसकी खुशबू दूर-दूर तक फ़ैल गयी जिससे आकर्षित हो कर भँवरे वहां मडराने लगे, इस प्रकार इस पौधे के बीज दूर-दूर तक फ़ैल गए और वह एक बीज जिसने परिस्थितियों के सामने हार ना मान कर खुद को खुद को परिवर्तित करने का फैसला किया था, दुबारा लाखों बीजों के रूप में जीवित हो गया.

परिवर्तन को एक घटना की तरह नही, बल्कि एक प्रक्रिया की तरह देखना चाहिए. यह नयी खोज की तरह होता है. यह हमारे वातावरण को ही नही, बल्कि हमे भी बदलता है. हम विकास की नयी संभावनाओं को देखने लगते हैं और परिवर्तन में सक्षम होते हैं. यह हमे मिटाने की जगह मजबूत बनाता है और हम प्रगतिशील हो जाते हैं.

अभी क्यों नहीं?

एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता थागुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री थासदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था. अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जायेआलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती हैऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है. वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता हैतो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता. यहाँ तक कि अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है . उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली .एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ. जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जायेगी. पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापस ले लूँगा.’
 शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते-करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी,समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा . फिर दूसरे दिन जब वह प्रातःकाल जागा,उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है .उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये काले पत्थर का लाभ ज़रूर उठाएगा . उसने निश्चय किया कि वो बाज़ार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा. दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाज़ार जाकर सामान लेता आएगा. उसने सोचा कि अब तो दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने निकलूंगा. पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी, और उसने बजाये उठ के मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा. पर आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नीद की गहराइयों में खो गया, और जब वो उठा तो सूर्यास्त होने को था. अब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार की तरफ भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरूजी मिल गए उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया . पर इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गयी. उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है और उसने प्रण किया कि अब वो कभी भी काम से जी नहीं चुराएगा और एक कर्मठ, सजग और सक्रिय व्यक्ति बन कर दिखायेगा.
 मित्रों, जीवन में हर किसी को एक से बढ़कर एक अवसर मिलते हैं, पर कई लोग इन्हें बस अपने आलस्य के कारण गवां देते हैं. यदि आप सफल, सुखी, भाग्यशाली, धनी अथवा महान बनना चाहते हैं तो आलस्य को त्यागकर, अपने अंदर विवेक, कष्टसाध्य श्रमऔर सतत् जागरूकता जैसे गुणों को विकसित कीजिये और जब कभी आपके मन में किसी आवश्यक काम को टालने का विचार आये तो स्वयं से एक प्रश्न कीजिये – “अभी क्यों नहीं?”

Friday, 20 December 2013

कुबेर मन्त्र द्वारा धन आकर्षित करें


महालक्ष्मी मन्त्र


Song of Happiness


Thursday, 19 December 2013

Don’t Work Hard. Work Sharp

एक बार एक युवक काम की तलाश में इधर उधर भटक रहा था. कई दिन भटकने के बाद उसे एक ठेकेदार के यहां काम मिल गया. ठेकेदार ने एक बड़े जंगल का ठेका लिया हुआ था. उस युवक को ठेकेदार ने जंगल में पेड़ काटने का कार्य दिया.

वह युवक अगले दिन काम पर पहुंचा. दिन भर में बड़े जोश और मेहनत से उसने पहले दिन 7 पेड़ काट दिए. दुसरे दिन भी उसने उतने ही जोश और मेहनत से काम किया पर दिन भर में वह केवल 6 पेड़ ही का"ट पाया. तीसरे दिन 5 चौथे दिन चार इसी प्रकार सातवें दिन उतने ही जोश और मेहनत के बावजूद वह केवल दो ही पेड़ काट पाया.

ठेकेदार ने उससे पुछा, क्या बात है? तुम्हारा प्रदर्शन दिन पर दिन गिरता जा रहा है?

युवक ने सरलता से उत्तर दिया, "मैं तो उतने ही जोश और मेहनत से काम करता हूँ."

ठेकेदार ने पुछा, "पूरे सप्ताह में तुमने कितनी बार अपनी कुल्हाड़ी की धार पैनी की?"

युवक अब अपनी गलती समझ चूका था. अगले दिन से वह प्रतिदिन दो तीन बार अपनी कुल्हाड़ी की धार पैनी करता और बड़े आराम से 7-8 पेड़ रोज़ काट देता. ठेकेदार अब उसके काम से बहुत खुश था.

दोस्तों! We have to work sharp, not hard.

मुस्कुराहट का रहश्य

एक 60 वर्ष से भी अधिक उम्र के व्यक्ति को लोग प्यार से दादा बुलाते थे. उनकी एक अनोखी आदत थी, हमेशा मुस्कुराते रहना. चाहे कैसी भी विषम से विषम परिस्थिति हो उनके होठों पर हमेशा वही जानी पहचानी मुस्कराहट खेलती रहती थी. लोग उन्हें देख कर हैरान हो जाते कि चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, कैसे यह व्यक्ति हर हाल में खुश रहता है?

एक बार एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला दादा आपसे एक बात पूछनी है. उन्होंने कहा, पूछो. वह व्यक्ति दादा से बोला, मैं पिछले कई सालों से आपको जानता हूँ. आप कैसे भी उतार चढ़ाव, कैसी भी परिस्थिति में कैसे हमेशा इतने खुश रह पाते हैं? आपका तो व्यापार भी काफी बड़ा है, उसमें भी तरह तरह की परेशानियां हर रोज आपको आती होंगी. फिर भी आप हमेशा खुश रहते हैं, मुस्कुराते रहते हैं. कैसे?

दादा ने कहा अरे बस इतनी सी बात? जिन्दगी हमें दो आप्शन देती है, या तो खुश रहो या दुखी रहो. मैं प्रतिदिन सुबह उठते ही अपने आप से एक सवाल करता हूँ. आज मुझे खुश रहना है या दुखी रहना है? मेरा मन क्या उत्तर देता होगा यह तुम समझ सकते हो. और ऐसा करते करते अब मेरी आदत बन चुकी है कि मैं हमेशा खुश रहता हूँ, मुस्कुराता रहता हूँ.

उनका उत्तर सुन कर वह व्यक्ति मन ही मन सोचने लगा कि दादा शायद मुझे अपनी हमेशा खुश रहने की आदत का रहश्य बताना नहीं चाहते.

कुछ दिन बाद अचानक दादा एक दुर्घटना का शिकार हो गए. वही व्यक्ति उनका हाल चाल जानने हॉस्पिटल पहुंचा. उसे देखते ही दादा ने मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे पता है, तुम क्या सोच रहे हो? तुम यही जानना चाहते हो ना कि दुर्घटना का शिकार होने के बाद भी, मैं कैसे मुस्कुरा रहा हूँ?"

उस व्यक्ति ने हां में गर्दन हिलाई.

दादा बोले, "देखो दुर्घटना के बाद जब मुझे पता चला कि मेरी हालत बहुत नाजुक है और मेरा ऑपरेशन किया जाएगा. डॉक्टर ने यह भी बताया कि मेरे बचने की उम्मीद बहुत कम है, तो मेरे सामने दो ही रास्ते थे. या तो मैं अपनी इच्छाशक्ति को बनाए रखूं और जिंदा रहूँ, या अपने आप को भाग्य भरोसे छोड़ दूं. मैंने डॉक्टर से कहा कि अभी तो मैं बहुत वर्षों तक जीना चाहता हूँ, यही सोच कर मेरा ऑपरेशन करें. डॉक्टर भी मेरी बात सुन कर बहुत उत्साहित हो गया, उसने मन लगा कर मेरा ऑपरेशन किया और देखो मैं अब ठीक हूँ."

लोग यह देख कर हैरान थे कि दुर्घटना के कुछ ही दिन बाद दादा मुस्कुराते हुए हॉस्पिटल से घर आ गए.

देखा दोस्तों! खुश रहना कितना आसान है? सब कुछ हमारी सोच पर निर्भर करता है.

Wednesday, 18 December 2013

कैसी कैसी मदद

एक कामकाजी महिला एक दिन अपने कार्यालय में थी. उसके घर से आया का फ़ोन आया कि उस महिला की छोटी बच्ची को तेज बुखार हो गया है. वह तुरंत कार्यालय से छुट्टी ले कर घर चल पड़ी. रास्ते में उसने एक दवाई की दुकान पर कार रोकी और बेटी के लिए कुछ दवाइयां लेने लगी.

दवाई ले कर जैसे ही वह कार के पास आई उसने देखा की हड़बड़ी में वह कार की चाभी कार के अन्दर ही भूल गई थी और कार अब लॉक हो चुकी थी. उसने घर पर फ़ोन कर आया को सारी बात बताई. आया ने कहा कि बच्ची का बुखार और भी बढ़ रहा है. यह सुन कर वह महिला और भी घबरा गई और कार के पास खड़ी भगवान् से प्रार्थना करने लगी, "हे भगवान मेरी मदद करो, मैं कैसे अपनी बीमार बच्ची के पास पहुंचूं?".

थोड़ी देर में उसने देखा की वहां एक खटारा कार आ कर रुकी और मैले कुचैले कपड़े पहने एक आदमी कार से बाहर आया. उसने महिला से कहा क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ. महिला ने उसे अपनी परेशानी बताई और मन ही मन भगवान् से बोली, हे भगवान् मदद भी भेजी तो कैसी?"

उस आदमी ने अपनी जेब से कुछ चाभियां निकाली और देखते ही देखते कार को खोल दिया. महिला की आंखों में ख़ुशी के आंसू छलक पड़े. उसने उस व्यक्ति का आभार व्यक्त किया और कहा, "धन्यवाद, आप बहुत अच्छे इंसान हैं."

वह आदमी कहने लगा, "मैडम मैं अच्छा इंसान नहीं हूँ. मैं तो कार चोरी का काम करता हूँ और आज ही जेल से छूटा हूँ."

महिला ने भगवान् को धन्यवाद दिया, वाह भगवान् प्रोफेशनल मदद भेजने के लिए आपका धन्यवाद."

देखा दोस्तों! कभी कभी बुरा इंसान भी किसी के काम आ सकता है.

चीन का रिक्शावाला

1987 में बाई फंगली नाम का एक रिक्शा-चालक, वर्षों तक मेहनत करने के बाद अपने गाँव वापस आया. अब वह अपने परिवार के साथ बाकी जीवन बिताना चाहता था. गाँव आने के बाद वह यह देख कर बहुत दुखी हुआ कि छोटे-छोटे बच्चे खेतों में मजदूरी कर रहे थे. उन बच्चों के माता-पिता उनकी पढाई का बोझ नहीं उठा सकते थे. उसने मन ही मन एक फैसला लिया.

अगले दिन वह वापस शहर चला गया और रिक्शा चलाना शुरू कर दिया. रेलवे-स्टेशन के पास एक छोटी सी झोंपड़ी में रहता, आधा पेट रूखा सूखा खा कर गुजारा करता और दिन रात मेहनत कर चार पैसे कमाता. वह अपनी मेहनत की सारी कमाई उन गरीब बच्चों की पढाई पर खर्च कर देता था.

300 से भी अधिक बच्चों को पढाई में सहायता करने में बाई ने कुल मिला कर 350,000 युआन खर्च किये. 2005 में अपनी दानशीलता की प्रेरणादायक विरासत छोड़ कर इस दुनिया से विदा ली.

दोस्तों! फाटे पुराने कपड़े पहन कर, आधा पेट भोजन कर, दिन रात रिक्शा चला कर यदि वह 300 से अधिक बच्चों की पढाई का खर्च दे कर उनका जीवन संवार सकता था, तो हम क्या कुछ नहीं कर सकते? यदि हम सब ठान लें तो इस दुनिया की तस्वीर बदल सकते हैं.

Deep Sleep Programming For Achieving Your Goals


Stop Procrastinating (टालमटोल) Overnight - Deep Sleep Programming


कारपेंटर

एक अत्यंत कुशल कारपेंटर बहुत अच्छे व सुन्दर घर बनाता था. ठेकेदार उसके कार्य से बहुत खुश था. जब वह बूढ़ा हो गया और कार्यनिवृत  (retire) होने वाला था. उसने अपने ठेकेदार को इस बारे में सूचना देदी. ठेकेदार ने उसे कहा तुम जाने से पहले केवल एक घर और बना दो.

कारपेंटर इस शर्त पर तैयार हो गया कि यह उसका अंतिम प्रोजेक्ट होगा. उसने घर बनाना शुरू किया. उसका ध्यान क्योंकि कार्यनिवृति (retirement) पर था, वह इस घर के निर्माण में अधिक ध्यान नहीं दे रहा था. उसका मन अपने काम में नहीं था. उसने घटिया निर्माण सामग्री का प्रयोग करते हुए बड़े बेमन से उस घर को पूरा कर दिया.

कार्य पूर्ण होने पर उसने ठेकेदार को बुला कर घर दिखाया. ठेकेदार जब घर देखने आया तो उसने उस घर के कागज और चाभी कारपेंटर को देते हुए कहा. यह है आपका कार्यनिवृति उपहार. यह घर आपका है. कारपेंटर सदमे में था. वह सोच रहा था, अगर उसे पता होता कि वह यह घर अपने लिए बना रहा है, तो वह उच्च कोटि की सामग्री का प्रयोग करता और मन लगा कर सबसे बढ़िया घर बनाता.

दोस्तों! क्या हम लोग भी उस कारपेंटर की भांति नहीं हैं? इश्वर ने हमें इस संसार में भेजा है अच्छे काम करने के लिए, पर हम कितने अच्छे काम करते हैं?

Friday, 13 December 2013

Meditation Techniques in Hindi


Wednesday, 11 December 2013

Deep Sleep, Inner Peace


Tuesday, 3 December 2013

मन की शांति - Peace of mind

गौतम बुद्ध एक बार अपने कुछ अनुयाइयों के साथ पैदल यात्रा कर रहे थे. मार्ग में एक तालाब देख कर वहां रुक गए. गौतम बुद्ध ने अपने एक अनुयाई से कहा कि उन्हें प्यास लगी है, अतः वह पास के तालाब से उनके लिए पानी लाये.

अनुयाई ने तालाब के पास का कर देखा कुछ लोग तालाब में नहा रहे थे, किनारे पर बैठी कुछ औरतें वहां कपड़े धो रही थीं. तभी एक बैलगाड़ी आई और तालाब के बीच में से निकल गई. तालाब का सारा पानी इससे गंदला हो गया. वह अनुयाई सोचने लगा कि ऐसा गंदा पानी वह गौतम बुद्ध को, पीने के लिए कैसे दे सकता था.

वह बिना पानी लिए वापस आ गया और गौतम बुद्ध से बोला, "इस तालाब का पानी बहुत ही गंदा है, मुझे नहीं लहता कि यह पानी पीने योग्य है."

लगभग आधे घंटे के बाद गौतम बुद्ध ने फिर उसी अनुयाई से पीने के लिए पानी लाने को कहा. अनुयाई फिर तालाब के पास गया. साफ़ पानी को देख वह हैरान हो गया. सारी मिट्टी नीचे बैठ गई थी और ऊपर स्वच्छ जल था. वह एक पात्र में पानी ले कर गौतम बुद्ध के पास लौटा.

गौतम बुद्ध ने साफ़ पानी को देखा. फिर उस अनुयाई की और देख कर बोले, "देखा तुमने? तुमने पानी को साफ़ करने के लिए कुछ भी नहीं किया, बस तालाब को ऐसे ही कुछ देर रहने दिया. कुछ ही देर में सारी मिट्टी नीचे बैठ गई और पानी साफ़ हो गया. तुम्हारा मन भी ऐसे ही है. जब भी मन विचलित हो या परेशान हो, तो कुछ मत करो, उसे कुछ समय दो, वह अपने आप ही शांत हो जाएगा. उसे शांत करने के लिए तुम्हे कोई प्रयास नहीं करना पड़ेगा."

दोस्तों! गौतम बुद्ध ने अपने अबुयाई को इस कहानी में जो उपदेश दिया वह था, 'बिना प्रयास' (It is effortless). मन को शांत करने के लिए कोई प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है, हमें बस उसे कुछ समय देना है, वह स्वतः ही शांत हो जायेगा.

You can create anything out of nothingness

The world we inhabit in came into existence 4600 million years ago. But the world of bygone eras underwent a sea of change, and the result is today’s evolved and reformed world. The entire flora and fauna surrounding us was created out of nothingness.

The barren earth stood in solitude and then God began the phenomenal creation of life. When God could create this fascinating and miraculous world for us out of nothing, we, who are created in His image, can also weave fascinating realities for ourselves. According to physicists, the entire earth with all its components, whether natural or manmade including human bodies is made up of atoms. Atoms are the building blocks for all matter. These atoms are made up of subatomic particles, which are mere fluctuations of energy and information. Energy and information are abstract, they are only impulses. Thus it concludes that everything is basically made up of non-material; the essential stuff of the creation is non-stuff. Scientists believe that life first began in the shallow, warm-water pools at the edges of oceans, which was ideal environment for vital chemical formations that eventually generated life. The earliest life form was in the form of unicellular bacteria, which evolved over millions of years to become the present day complex life. The intricate network of our intellect also arises from non-material chemical releases of energy in our body.

We see the world of objectivity around us through our body, but we convert this objectivity into subjectivity through our mind and perceive the ideas and thoughts through our intellect. Every thought and idea, every wish and want and every emotion, happens inside the brain which stores our mind and intellect. The brain contains some 50 billion nerve cells. Tiny electrical nerve signals pass through this vast network representing our thoughts and memories. These electrical signals are nothing but impulses of energy and information. The point of significance is that that each individual has different level and quality of these chemical or energy releases and therefore a differentiated thought pattern. This explains why an event or information becomes a reason to celebrate for some while a cause of gloominess for other. The germane fact is that man is the master of his own thoughts. Since thoughts are nothing but fluctuations of energy, if he adopts the function of UPS (Uninterrupted Power Supply) for his body, he can regulate the flow of energy level and control his thoughts.

REALIZE YOUR DREAMS, THIS UNIVERSE BELONGS TO YOU
CREATE AND LIVE IN ABUNDANCE, THIS UNIVERSE BELONGS TO YOU

The material prosperity that envelops us is the consequence of application of our scientific knowledge to our lives. The automobiles, dishwashers, super computers, space shuttles, etc could be invented because their inventors and contributors had ideas about it. Thus everything is created out of nothingness or say impulses of energy. The most real yet enchanting example of manmade creation is Microsoft, the brainchild of Bill Gates. The operating system “Windows” is predominantly used in the world. Bill Gates was not born with the thought of Windows or other software and present it to the world at a specific age. The ideas and thoughts were his self-generated. Once Bill Gates’ mother asked him, “What are you doing Bill?”. To which he replied, “I am thinking, mother.” The result of his thinking is above the call of recognition. This only corroborates the truth that the tiny electrical nerve signals CAN CREATE a magical world around us, otherwise how could a monitor, a keyboard and a MSN, come from nowhere?

When the impulses of energy in our body are capable of creating the awesome physical world around us, it can in no modicum proportion generate a mental world fecund with positivism. The kind of thoughts that crop up in our minds is our own doing. If the fertilizer is rich and healthy in composition, the harvest will naturally be high quality and bountiful. We are sermon and advised to have positive thinking because positivism and optimism is the key to unlock success. But to achieve positive thinking is an end in itself. We know that our thoughts are minute energy releases of some chemical composition. So unless we can tame the nature of our energy release, we cannot get the better of our thoughts. The chemicals released in the body are hormones and each such hormone has a specific function to perform. With scientific advancement, there are techniques and instruments to regulate the release of some such hormones but fitting an instrument in our brain to change the quality of our energy impulse is yet to be achieved. But this seemingly unachievable task is indeed accomplishable by each one of us and that too without acquiring any biological knowledge or undergoing a surgery. Until we remedy the genesis of a problem, the problem is only temporarily solved. The energy that is released to form thoughts is guided by realm of our imagination and visual perception. Before a thought is verbalized it is structured in the universal language of “FEELING” or “INTENT” by the energy impulses. The nature of our “INTENT” gives visualization to our mind, which we verbalize as thought. When we ask a child what does he want to grow up to become? Before he verbalizes, “I wish to become a doctor”, he would have undergone a signal that can be decoded as “a desire or intention to become a doctor”, he visualizes this intention as “himself wearing the doctor’s white coat and a stethoscope hanging from his ears” and thus forms his thought to be a doctor. When he works towards this thought, a DOCTOR is made.

Mohammed Ali the great wrestler says, “It’s the repetition of affirmations that leads to belief. And once that belief becomes a deep conviction, things begin to happen.” Our mind works through pictures and when we modify the pictures to portray our real intentions, abilities and standing in our own eyes, it creates propitious and effervescent thoughts. Having learnt the ropes of generating right thoughts, the fountain head of bliss is our captive. The whole universe constantly reminds us that when God could create the magnificent and ineffable world, His children are blessed with equal wizardry. We are partners and co-creators in all the happenings of this world. So with the dynamism and confidence to be positive contributories to this universe remember the words of George Bernard Shaw,

“Some men see things as they are and say “why”
I dream of things that never were and say “why not”
REALISE YOUR DREAMS, THIS UNIVERSE BELONGS TO YOU
CREATE AND LIVE IN ABUNDANCE, THIS UNIVERSE BELONGS TO YOU

By: प्रिंस मोहन चुघ

Saturday, 30 November 2013

प्यार का चमत्कार

केरन एक 3 वर्ष के बच्चे की मां, फिर से गर्भवती थी. सोनोग्राफी से पता चला कि उसे इस बार एक बेटी होगी. उसे चिंता थी कि बच्ची के आने पर उसका 3 साल का बेटा माइकल पता नहीं कैसे बर्ताव करेगा. वह बच्ची को स्वीकार करेगा या नहीं? कहीं उसे यह ना लगे कि अब उसके हिस्से का प्यार, माँ बाप नई बच्ची को दे रहे हैं. यह सोच कर उसने अपने बेटे को धीरे-धीरे समझाना शुरू किया कि उसकी एक छोटी बहन आने वाली है. उसने माइकल को इस तरह से समझाया कि वह अपनी आने वाली बहन से बहुत प्यार करने लगा.

और एक दिन माइकल की छोटी बहन का जन्म हुआ. परन्तु वह बहुत बीमार थी इसलिए उसे फ़ौरन नर्सरी में भर्ती करना पड़ा. माइकल अपनी बहन को देखना चाहता था, उसके साथ खेलना चाहता था. केरन बीच-बीच में बच्ची को देखने और दूध पिलाने जाती. नर्सरी में बच्चों का जाना वर्जित होता है, इसलिए बहुत चाहने के बाद भी माइकल अपनी बहन को नहीं देख पा रहा था. वह बहुत दुखी हो गया और ज्यादातर समय रोता रहता था.

बच्ची की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी. यहां तक कि केरन और उसके पति को लगने लगा कि बच्ची का बचना मुश्किल है. माइकल बार-बार अपने माता पिता से जिद करता कि उसे बहन को देखने जाना है और उसे एक गाना सुनाना है.

केरन को लगा कि यदि उसने अभी उसे अपनी बहन से नहीं मिलाया तो शायद कभी भी नहीं मिला पाएगी. यह सोच कर अगले दिन वह माइकल को नर्सरी में ले गई. वहां ड्यूटी पर तैनात हेड-नर्स ने कहा कि बच्चों को वहां लाने की अनुमति नहीं है.

केरन ने बहुत दृढ़ता के साथ हेड-नर्स से कहा कि, "चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपनी बहन को गाना सुनाये बिना वहां से नहीं जाएगा." और वह माइकल को उसकी बहन के पालने के पास ले गई.

बच्ची तड़प रही थी. हाथ-पैर मार रही थी. उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी. माइकल ने बाल-सुलभ तरीके से गाना शुरू किया. अभी उसने एक दो लाइनें ही गाई थीं, कि बच्ची ने हाथ-पैर मारना कम कर दिया. हेड-नर्स सब देख रही थी. वह उसे गाने से रोकना चाहती थी पर बच्ची की प्रतिक्रिया को देख, उसने माइकल से गाना चालू रखने को कहा. हेड-नर्स की आँखें भी भर आई थी. माइकल गाता रहा. बच्ची की उखड्ती सांसें ठीक होने लगी थी. और देखते-देखते माइकल की बहन बिलकुल शांत हो गई, जैसे उसे बहुत आराम मिला हो. वह टिकटिकी लगाए माइकल को देख रही थी. केरन के चेहरे पर ख़ुशी की आभा छा गई.

अगले ही दिन माइकल की बहन को नर्सरी से छुट्टी मिल गई. डॉक्टर्स ने इसे एक चमत्कार कहा.

यह कहानी Tennessee, USA में 1992 में घटित एक सच्ची घटना पर आधारित है. माइकल की बहन (नीचे चित्र) का नाम मार्ली है.


दोस्तों! यह है प्यार की शक्ति. प्यार का चमत्कार.

Thursday, 28 November 2013

मेंढक दौड़

एक बार एक गांव में मेंढकों की प्रतियोगिता रखी गई. जिसमें मेंढकों को एक खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी पर चढ़ना था. बहुत से मेंढक तो पहाड़ी को देख कर ही प्रतियोगिता से बाहर हो गए. बाकी मेंढक पहाड़ी पर चढ़ने लगे. वहां खड़े लोग तमाशा देख रहे थे. बहुत से लोग चिल्ला रहे थे, अरे इस पहाड़ी पर अच्छे-अच्छे नहीं चढ़ पाए, तो इन मेंढकों की क्या औकात?"

मेंढक धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे. कुछ समय बाद उनमें से कुछ मेंढक गिरने लगे. उन गिरते मेंढकों को देख कर, कुछ और मेंढक प्रतियोगिता छोड़ कर बाहर हो गए. थोड़ी और देर बाद कुछ और मेंढक गिर गए. लोगों का शोर बढ़ता जा रहा था. प्रतियोगिता छोड़ने वाले मेंढक भी कह रहे थे, "हां भई, इस पहाड़ी पर चढ़ना बहुत मुश्किल है." कुछ मेंढक तो यहां तक बोलने लगे कि यह नामुमकिन है.

देखते ही देखते, कुछ मेंढक गिरते रहे और कुछ और मेंढक प्रतियोगिता को बीच में ही छोड़ गए. लोगों का शोर और भी बढ़ गया.

परन्तु दो मेंढक पहाड़ी पर चढ़ने में सफल हो गए. जानते हैं क्यों? क्योंकि वे दोनों मेंढक बहरे थे. उन्होंने ना तो लोगों का शोर सुना और ना ही प्रतियोगिता छोड़ने वाले मेंढकों के बातें.

दोस्तों! जीवन में बहुत से लोग केवल इसीलिए सफल नहीं हो पाते, क्योंकि नकारात्मकता उन्हें पीछे धकेलती है. नकारात्मक बातें सुन सुन कर उनका उत्साह ठंडा पड़ जाता है. धीरे धीरे उनके मन में यह गलत धारणा बैठ जाती है कि यह तो बहुत मुश्किल है. कुछ लोग तो यहाँ तक सोच लेते हैं कि यह कार्यनामुमकिन है.

एक टोकरी मिटटी

एक गांव में एक बेईमान जमींदार था. गांव के भोले भाले लोगों को लूटने और उनकी जमीन हथियाने में वह माहिर था. उसके इन्ही दुर्गुणों के कारण गांव का हर व्यक्ति उससे घृणा करता था. परन्तु जरूरत के समय उधार देने वाला उस गांव में जमींदार के अलावा और कोई नहीं था. गांव के अधिकतर लोगों की ज़मीन वह अपनी मक्कारी से हथिया चूका था.

ऐसे ही एक बूढी औरत ने जमींदार से कुछ रपये उधर ले रखे थे. बहुत कोशिस करने के बाद भी वह जमींदार का क़र्ज़ नहीं उतार पाई. जमींदार ने उसके खेत पर कब्ज़ा कर लिया.

अगले दिन वह बुढिया जमींदार के पास गई. उसे देखते ही जमींदार गुस्सा हो गया.

बुढिया ने कहा, "मैं अपना खेत वापस मांगने नहीं आई हूँ. परन्तु इस खेत से मुझे बहुत लगाव है. अगर आप आज्ञा दें तो इस खेत की एक टोकरी मिट्टी, यादगार के रूप में ले जाना चाहती हूँ."

जमींदार को इस बात में कोई हानि नज़र नहीं आई और उसने बुढ़िया को एक टोकरी मिट्टी ले जाने की अनुमति दे दी.

बुढ़िया ने मिट्टी खोद कर टोकरी भर ली और जमींदार से कहा कि वह टोकरी उठवा कर उसके सिर पर रखने में सहायता करे.

जमींदार ने कहा, "बुढ़िया यह टोकरी बहुत भरी है, तू इस बोझ को नहीं उठा पाएगी. तू मर जायेगी"

बुढ़िया ने बहुत नम्रता से कहा, "यदि मैं एक टोकरी मिट्टी से मर जाउंगी, तो तू खुद की सोच, इतने लोगों के ज़मीन हड़प कर तू कैसे जी पायेगा?"

यह सुन कर ज़मींदार को अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ. उसने ना केवल उस बुढ़िया की, बल्कि गांव के हर व्यक्ति की ज़मीन लौटा दी.

Tuesday, 26 November 2013

सोने से तीन फुट दूर

आर.यू.डार्बी के एक अंकल गोल्डरश के दौर में "स्वर्ण की खोज के अभियान में जुट गये. वे खुदार्इ करने और अमीर बनने के लिये पशिचम दिशा में गये. 
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कर्इ सप्ताह की मेहनत के बाद उन्हें चमकते हुये स्वर्ण की झलक दिखार्इ दी. परंतु उस सोने को सतह तक लाने के लिये मशीनों की ज़रूरत थी. चुपचाप उन्होंने खदान का मुँह ढँक दिया और मैरीलैंड के विलियम्सबर्ग के अपने घर मैं लौट आये. उन्होंने अपने रिश्तेदारों और कुछ दोस्तों को सोने की खुदार्इ में सफलता के बारे मे बताया. उन्होंने मिलकर मशीनों को ख़रीदने के लिये आवश्यक धन जुटाया. अंकल और डार्बी खदान पर काम शुरू करने के लिये वापस लौटे.
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कच्चे सोने की पहली खेप को स्मेल्टर तक पहुँचाया गया. वहाँ यह पता चला कि उनकी खदान कालोरेडो की सबसे बढि़या खदान थी. कच्चे सोने की कुछ खेपों में ही उनके सारे क़र्ज़ उतर जाते और फिर लाभ की बारी आती.
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जैसे-जैसे खुदार्इ मशीनें नीचे जा रही थीं, डार्बी और अंकल की आशायें आसमान छू रही थीं. तभी अचानक कुछ हुआ. सोने की झलक गा़यब हो गर्इ. वे इन्द्रधनुष के आखि़री सिरे पर आ गये थे और स्वर्ण अब वहाँ नहीं था. वे खोदते रहे, इस आशा में कि एक बार फिर सोने की झलक दिख जाये-परंतु उनकी मेहनत बेकार गयी. आखि़रकार, उन्होंने अपना प्रयास छोडने का फैसला किया.
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उन्होंने एक कबाडी़ को मशीनें कौडियों के भाव बेच दीं और वापस घर लौट आये. कबाडी़ ने एक माइनिंग इंजीनियर को बुलवाकर खदान का इन्स्पेक्शन करवाया. इंजीनियर ने सलाह दी कि यह प्रोजेक्ट इसलिये असफल हुआ क्योंकि इसके मालिक यह नहीं जानते थे कि बीच में फाल्ट लाइन आती है. उसके विश्लेषण के अनुसार सोने की स्थिति उस स्थान से मात्र तीन फुट नीचे थी जहाँ डार्बी ने खुदार्इ बंद की थी. और इंजीनियर का अनुमान सच साबित हुआ.
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कबाडी़ को खदान से लाखों-करोडों डालर का सोना मिला, सिर्फ इसलिये क्योंकि वह जानता था कि हार मानने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित होता है.

(From ‘Think & Grow Rich’ By- Napoleon Hill)

धैर्य (Patience)

एक व्यक्ति रत्न (Gems) परखने की कला सीखना चाहता था. वह एक प्रसिद्द जौहरी के पास गया और उससे इस हुनर को सीखने का अनुरोध किया. पहले-पहल तो जौहरी ने इनकार कर दिया, लेकिन बार-बार कहने पर उसने उसे अगले दिन से आने को कह दिया.

अगले दिन जब वह व्यक्ति वहाँ पहुँचा, तो जौहरी ने उसे एक रत्न पकडा़ दिया और अपने काम में लग गया. वह कभी रत्नों को काटता, पॉलिश करताकभी तोलता; लेकिन पूरे दिन में उसने उस व्यक्ति से कोई बात नहीं की. अगले दिन फिर यही हाल रहा. एक सप्ताह तक रोजा़ना वह व्यक्ति काम सीखने की ललक में जौहरी के पास जाता और जौहरी उसे एक रत्न पकडा़ कर अपने काम में व्यस्त हो जाता.

जब कभी वह व्यक्ति उससे काम सीखने की बात करता तो जौहरी उसे कहता कि रोज़ आते रहने से जल्दी ही वह काम में पारंगत हो जायेगा.

आखि़रकार उस व्यक्ति के लिए चुप रहना मुश्किल हो गया. एक दिन उसने तय किया कि आज वह साफ़-साफ़ पूछ लेगा कि जौहरी उसे काम सिखाना भी चाहता है, या नहीं. उस दिन जैसे ही वह जौहरी के पास पहुँचा तो रोज़ की तरह जौहरी ने एक रत्न उसके हाथ पर रखा. उस व्यक्ति ने रत्न को देखते ही कहा, यह रोज़ वाला रत्न नहीं है.

उसका उत्तर सुन कर जौहरी मुस्कराते हुए बोलातुम काम सीखने लगे हो. अब जल्दी ही रत्नों की बारीकि़याँ भी समझने लगोगे. उस व्यक्ति का क्रोध हवा हो गया और वह बैठ कर चुपचाप रत्त्न को देखने लगा. वह अब समझ गया था कि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए धैर्य रखना आवश्यक है. 

Monday, 25 November 2013

Keep Driving

एक बार एक लड़की अपने पिता के साथ कार से एक पहाड़ी रास्ते पर जा रही थी. वह कार चला रही थी, पिता बराबर वाली सीट पर बैठे थे. कुछ दूर जाने के बाद अचानक आंधी चलने लगी. कुछ देर में बारिश भी आने लगी. लड़की ने देखा एक एक कर, कुछ कारें साइड में रुकने लगी.

उसने अपने पिता से कहा, "क्या करें, तूफ़ान बढ़ता जा रहा है?"

पिता ने कहा, "keep driving - तुम कार चलती रहो."

थोड़ी देर में, बारिश और तेज हो गई. दूर तक देखना मुश्किल होता जा रहा था. कुछ और गाड़ी वाले ड्राईवर अब अपनी अपनी गाड़ियाँ साइड में रोकने लगे थे. लड़की ने फिर अपने पिता से पुछा, "तूफ़ान और बढ़ गया है, रास्ता भी दूर तक साफ़ नहीं दिखाई दे रहा पापा, अब क्या करें?"

पिता ने बहुत शांत भाव से उत्तर दिया, "कार की रफ़्तार थोड़ी धीरे करो और चलती रहो." लड़की धीरे-धीरे कर चलाते हुए आगे बढ़ रही थी. सड़क पर अब कोई कोई गाड़ी चल रही थी, अधिकतर ड्राईवर अपनी गाड़ियां सड़क किनारे रोक चुके थे. लड़की ने हिम्मत रखी और धीरे धीरे कार चलाती रही.

कुछ देर में उसे रास्ता साफ़ दिखाई देने लगा, तूफ़ान अब कम हो रहा था. कुछ ही देर में वे तूफ़ान से बाहर निकल आये थे. अब वो लोग जहाँ पर थे वहां तूफ़ान नहीं था. धुप खिली हुई थी. पिता ने लड़की से कहा अब तुम कार को किनारे पर रोक सकती हो.

लड़की ने पुछा, "लेकिन अब क्यों पापा?"

पिता ने कहा, "तुम कार चलाती रही तो अब तूफ़ान से बाहर हो. जरा बाहर निकल कर नीचे देखो. जो लोग रुक गए थे वो सब, अब भी तूफ़ान में ही हैं."

दोस्तों! यदि आप भी किसी कठिनाई के समय हार मान लेते हैं, तो कठिनाई आपको अधिक परेशान करती है. परन्तु, बिना हिम्मत हारे, बिना हार माने, अगर आप साहस और धैर्य पूर्वक आगे बढ़ते रहते हैं, तो आप कठिनाई की स्थिति से जल्दी बाहर आ सकते हैं.

दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?

यह चीन के एक बूढ़े किसान की कहानी है. हमारे देश में किसान बैलों से हल चलाते हैं. चीन में यह कार्य घोड़ों द्वारा किया जाता है. बूढ़े किसान के पास एक घोड़ा था जो अब बूढ़ा होने लगा था. किसान घोड़े की मदद से अपना खेती का काम करता था. एक दिन अचानक, उसका घोड़ा कहीं भाग गया. किसान बहुत दुखी था. उसके पड़ोसी उसे सांत्वना देने आये. हर कोई कह रहा था, "कितने दुर्भाग्य की बात है, तुम्हारा घोड़ा भाग गया."

किसान ने सरलता पूर्वक उत्तर दिया, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"

कुछ दिन बाद, अचानक एक दिन, उसका घोड़ा वापस लौट आया. उसके साथ दो जंगली घोड़े और भी थे. किसान बहुत खुश हुआ. उसके पड़ोसी उसे बधाई देने लगे, "कितने सौभाग्य की बात है? तुम्हारा घोड़ा, नो केवल वापस आ गया, अपने साथ दो और घोड़े भी ले आया."

किसान ने कहा, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"

एक दिन उस किसान का बेटा एक जंगली घोड़े की पीठ पर बैठ कर उसे साध रहा था. घोड़ा बिदक गया. गिरने से किसान के बेटे की टांग टूट गई. उसके पड़ोसी सांत्वना देने लगे, "दुर्भाग्य ही है कि तुम्हारे बेटे की टांग टूट गई."

किसान ने फिर कहा, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"

कुछ महीनों बाद एक दिन राजा की सेना उस गांव में आई और हर स्वस्थ व्यक्ति को जबरन सेना में भर्ती होने के लिये ले गए. परन्तु बूढ़ा होने के कारण किसान को और टांग टूटी होने के कारण उसके बेटे को छोड़ दिया. "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"

Saturday, 23 November 2013

मैं उन्हें पढ़ता हूं

एक बार एक व्यक्ति को मोटिवेशन पर एक किताब कहीं से मिल गई. उसने बड़ी लगन से किताब पढ़ी. पढने के बाद उसे अच्छा लगा. वह अपनी साइकल पर एक दुकान पर गया और 1000 रुपये की मोटिवेशनल किताबें खरीद कर लाया. कुछ महीनों बाद वह एक बाइक पर उसी दुकान पर गया और 10000 रुपये की और किताबें खरीद लाया. कुछ और महीने बीते, अबकी बार वह कार से उस दुकान पर गया और 20000 रुपये की किताबें खरीद कर लाया. कुछ महीने बाद वह लम्बी कार से उसी दुकान पर गया और 1 लाख रुपये की किताबें खरीदी. दुकानदार के सब्र का बाँध अब टूट चुका था. उसने उस व्यक्ति से पुछा, "भाई तुम्हारा स्टैण्डर्ड हर बार ऊंचा कैसे होता जाता है.

उस व्यक्ति ने कहा, "तुम्हारी दुकान से जो किताबें ले कर जाता हूं, उनके कारण."

दुकानदार ने कहा, "पर किताबें तो मेरे पास भी हैं?"

उस व्यक्ति ने कहा, "तुम किताबें केवल रखते हो, उन्हें बेचते हो. मैं उन्हें पढ़ता हूं."

दोस्तों! यही इन कहानी का सार है. ज्ञान अमूल्य है. प्रेरणात्मक या मोटिवेशनल किताबें खरीद लेने से या उन्हें खरीद कर बुक-शेल्फ में सजा देने से कुछ नहीं होने वाला. महत्त्व बुक्स का नहीं, उनमें छुपे ज्ञान का है.

Thursday, 21 November 2013

क्या आप अमीर बनना चाहते हैं?

मैंने बचपन में एक दोहा पढ़ा था. शायद आप लोगों में से बहुतों ने पढ़ा होगा:
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय,
वा खाये बौराय जग, या पाये बौराय.
अर्थात सोने (धन) में धतूरे से सौ गुना अधिक नशा होता है, क्योंकि धतूरा तो खाने से नशा करता हैजबकि सोना (धन) पाने मात्र से नशा हो जाता है. सोना पाना या धन पाना, अर्थात अमीर होना. बहुत से लोग कहते रहते हैं, "आदमी को अमीर नहीं होना चाहिए, क्योंकि पैसा आदमी को बुराई की और ले जाता है. पैसा ही सब बुराइयों की जड़ है. अमीर आदमी कभी सुखी नहीं होता" आदि आदि. परन्तु ये कौन लोग हैं? ये वो लोग हैं जो खुद अमीर नहीं बन पाए, और यदि खुद अमीर बन भी गए तो, दूसरों को अमीर होते देखना नहीं चाहते.

यदि अमीर होना बुरी बात होती तो मैं, आप, या अन्य कोई भी इंसान अमीर बनना नहीं चाहता. यह बात सच है कि दौलत का अपना एक नशा होता है. पर यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस नशे का, हलके सुरूर की तरह आनंद लेते हैं, या यह नशा हमारे सिर चढ़ कर बोलता है? अमिताभ बच्चन की फिल्म 'शराबी' का प्रसिद्द गीत "नशा शराब में होता तो नाचती बोतल" आपने भी सुना होगा. दोस्तों! नशा शराब में नहीं, पीने वाले की सोच में होता है. कुछ लोग शराब के सुरूर का आनंद लेते हैं, जबकि कुछ अन्य लोग अत्यधिक शराब पी कर उधम मचाते हैं और सब को परेशान करते हैं. उसी तरह सज्जन व्यक्ति अपने धन के अनोखे सुरूर का आनंद लेते हैं, जब कि दूसरी तरह के लोग धन पाने के बाद इंसान को इंसान नहीं समझते और संसार की हर बुराई को अपना लेते हैं. प्रसिद्द संत रहीम दास जी ने कहा है:
जे रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग,
चन्दन विष व्यापै नहीं, लिपटे रहत भुजंग.
बहुत नशा होता है दोस्तों धन में, पर हमें उसका सदुपयोग करना है, दुरूपयोग नहीं. हमें इसके गुणों का लाभ उठाना है. महात्मा गाँधी ने भी अपने seven-sins में कहा है, Wealth is not a sin, but wealth without work is a sin.

मनुश्य का शरीर पांच तत्वों से बनता है, अग्नि, जल, वायु, आकाश और पृथ्वी. यही पाँचों तत्व अर्थात शक्तियां (energy) मनुष्य के शरीर को जीवन भर चलाती हैं. पर आज के युग में एक और शक्ति बहुत आवश्यक है, और वह है धन. बच्चा पैदा होते ही उसे भूख लगती है, उसे दूध चाहिए जो माँ से मिल जाता है. थोड़ा बड़ा होता है तो उसे खाना चाहिए, पहनने को कपड़े चाहिए, सिर पर छत चाहिए, थोड़ा और बड़ा होता है तो खिलोने चाहिए. स्कूल जाने लगता है तो पुस्तकें, पेंसिल, यूनिफार्म, स्कूल-फीस चाहिए, स्कूल-बस चाहिए, खेल कूद का सामान चाहिए, थोड़ा और बड़ा होता है तो साईकिल चाहिए, बाइक चाहिए. 20-25 वर्ष की आयु तक उसका सारा खर्च माँ-बाप उठाते हैं. शादी में खर्च, शादी के बाद पत्नी का खर्च, फिर बच्चों का भी. बीमार हो गए तो इलाज का खर्च, रहने के लिए घर, आवागमन के लिए बाइक या कार, बात करने के लिए मोबाइल, काम करने के लिए लैपटॉप और भी न जाने क्या-क्या. यह सब, क्या पैसे के बिना संभव है? नहीं. जन्म से ले कर मृत्यु तक हर काम में पैसे की आवश्यकता होती है. आज के युग में बिना पैसे के जीवन संभव ही नहीं है. शायद इसीलिए, पैसे अर्थात धन को आज के युग में, जीवन को चलाने वाली छठी energy माना जाता है.

हाँ तो हम बात कर रहे थे कि, "क्या आप अमीर बनना चाहते हैं?" आपका उत्तर मैं जानता हूँ. परन्तु एक बार पूरे मन से आप मुझे और अपने आप से कहिये कि आप अमीर बनना चाहते हैं. अपने लक्ष्य निर्धारित कीजिये. यदि आपने मेरे पहले के लेख पढ़े हैं तो आप जन चुके होंगे कि लक्ष्य निर्धारण क्यों, कैसे और किस प्रकार के निर्धारित करें. आपने अपनी सक्सेस डायरी बनाई होगी और उसमें अपने लक्ष्य लिखे भी होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है. अगर नहीं बनाई है तो कोई बात नहीं. चलिए अब बना लीजिये और उसके पहले पेज पर अपने लक्ष्य स्पष्ट रूप से लिख लीजिये.

दोस्तों! जैसा कि हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि जीवन में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता. (There are no free lunches) हमें हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है. आपका अपनी सफलता का सपना, अमीर बनने का सपना भी ऐसे ही पूरा होने वाला नहीं है. इसके लिये भी आपको कीमत चुकानी पड़ेगी. आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, इसका अर्थ है कि आप अपनी सफलता के और अमीर बनने के सपने की कीमत चुकाने के लिये काफी हद तक तैयार हैं. फिर भी, अपनी सक्सेस डायरी के दुसरे पेज पर निम्नलिखित प्रश्न और उनके सामने उनके उत्तर लिखिए:

1. क्या आप ऐसे लोगों को छोड़ने के लिए तैयार हैं, जो आपकी तरक्की, आपकी सफलता में रूकावट पैदा करते हैं?

2. क्या आप प्रेरणा-दायक पुस्तकें, लेख आदि पढने एवं इसके विडियो देखने के लिए तैयार हैं?

3. क्या आप प्रेरणा-दायक और self-development सेमिनार या वर्कशॉप अटेंड करने के लिए तैयार हैं?

4. क्या आप TV serials को छोड़ कर news-channels, business channels देखने के लिए तैयार हैं?

5. क्या आप सफल और अमीर व्यक्तिओं की जीवनियाँ (biographies) पढने के लिए तैयार हैं?

6. क्या आप अपनी सोच में से नकारात्मकता को निकालने के लिए तैयार हैं?

7. क्या आप सफल एवं अमीर व्यक्तियों के साथ उठने-बैठने, उनकी संगति करने के लिये तैयार हैं?

यदि इन सब प्रश्नों का उत्तर हाँ है तो आप सही रास्ते पर हैं. आपको सफल होने से, अमीर बनने से कोई भी रोक नहीं सकता. यदि इनमें से एक भी प्रश्न का उत्तर ना में है, तो पहले उस ना को हाँ में बदलीये और फिर आगे बढिए. आइये अब इन प्रश्नों को थोड़ा गहराई में समझने का प्रयास करते हैं.

बचपन से ही हमें माता-पिता, रिश्तेदारों, दोस्तों आदि से यही सुनने को मिलता है कि पैसे से प्यार मत करो. यहाँ तक कि जब हम किसी धार्मिक स्थान पर जाते हैं तो वहां भी यही प्रवचन सुनने को मिलता है. पर क्या यह सब लोग पैसे से प्यार नहीं करते? शायद करते हैं, पर अन्दर ही अन्दर. या फिर शायद वह इस बात से अनजान हैं कि, जाने-अनजाने उन्हें भी पैसे से प्यार है. इनमें से किसी से किसी से भी पूछ कर देखिये क्या उन्हें बड़ा और सुन्दर घर नहीं चाहिये? बड़ी कार नहीं चाहिये? महंगा मोबाइल फ़ोन नहीं चाहिये? बच्चों की अच्छी शिक्षा नहीं चाहिये? यदि चाहिये, तो क्या यह सब, बिना पैसे के आ जाएगा? आप ऐसे दोस्तों को छोड़ सकते हैं, अन्य लोगों को छोड़ सकते हैं, पर अपने परिवार एवं रिश्तेदारों को नहीं. क्या करेंगे आप? उत्तर बेहद आसान है. आप अपने ऊंचे लक्ष्यों एवं अमीर बनने की चाहत को ऐसे लोगों से शेयर ना करें. और उनकी नकारात्मक बातों को अनदेखा करें. इस विषय पर फिर किसी लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे.

जब आप प्रेरणादायक (inspirational and motivational) लेख या पुस्तकें पढ़ते हैं, विडियो देखते हैं, सेमिनार या वर्कशॉप अटेंड करते हैं, तो अन्दर ही अन्दर आप में एक अनोखी चेतना का संचार होता है, आपकी इच्छाशक्ति बढती है, आप एक प्रकार के जोश से भर जाते हैं और आपकी सफलता की राह आसान हो जाती है. आप अपने अमीर बनने के सपने के और अधिक करीब हो जाते हैं. सफल एवं अमीर लोगों की जीवनियाँ (biographies) पढने से भी आप ऐसे ही जोश से ओतप्रोत हो जाते हैं. यार! मुझे भी ऐसा बनना है.

आपके जीवन में इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि आनंदी कितनी बार बदल गई है, या फिर जगिया की शादी गंगा से होती है साँची से. इन फ़ालतू के TV serials में व्यर्थ समय बर्बाद करने की अपेक्षा न्यूज़ चैनल्स या बिज़नेस चैनल्स आपके ज्ञान को कहीं अधिक बढ़ाएंगे जो आपको अपनी सफलता की और बढ़ने में सहायक होगा. हां थोड़ी देर मनोरंजन भी आवश्यक है.

आपकी सकारात्मक या नकारात्मक सोच ही आपके भविष्य का निर्धारण करती है. वो कहते हैं ना कि जो हम सोचते हैं, वही हम बन जाते हैं. विचारों की नकारात्मकता हमें आगे बढ़ने से रोकती है, जबकि सकारात्मक सोच हमें सफल होने में, अमीर बनने में सहायता करती है. इस विषय पर फिर किसी लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे.

जब आप सफल एवं अमीर लोगों के साथ मेल जोल बढ़ाते हैं, उनके साथ उठते बैठते हैं, तो उनके विचारों से, उनकी सोच से अवगत होते हैं. उनकी संगति का सकारात्मक असर आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है. आपकी सोच सकारात्मक होने लगती है, और आप अपने अमीर बनने के सपने के और अधिक करीब आ जाते हैं.

यह लेख बहुत बड़ा हो जाएगा. इसलिए शेष भाग अगले लेख में.

अपने सपनों को साकार करने के लिये मेरे आर्टिकल्स पढ़ते रहियेअपनी राय मुझे कमेंट्स के माध्यम से भेजते रहिये. तब तक के लिए शुभ-रात्रि, good-night, शब्बाखैर. CA बी. एम्. अग्रवाल