यह चीन के एक बूढ़े किसान की कहानी है. हमारे देश में किसान बैलों से हल चलाते हैं. चीन में यह कार्य घोड़ों द्वारा किया जाता है. बूढ़े किसान के पास एक घोड़ा था जो अब बूढ़ा होने लगा था. किसान घोड़े की मदद से अपना खेती का काम करता था. एक दिन अचानक, उसका घोड़ा कहीं भाग गया. किसान बहुत दुखी था. उसके पड़ोसी उसे सांत्वना देने आये. हर कोई कह रहा था, "कितने दुर्भाग्य की बात है, तुम्हारा घोड़ा भाग गया."
किसान ने सरलता पूर्वक उत्तर दिया, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"
कुछ दिन बाद, अचानक एक दिन, उसका घोड़ा वापस लौट आया. उसके साथ दो जंगली घोड़े और भी थे. किसान बहुत खुश हुआ. उसके पड़ोसी उसे बधाई देने लगे, "कितने सौभाग्य की बात है? तुम्हारा घोड़ा, नो केवल वापस आ गया, अपने साथ दो और घोड़े भी ले आया."
किसान ने कहा, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"
एक दिन उस किसान का बेटा एक जंगली घोड़े की पीठ पर बैठ कर उसे साध रहा था. घोड़ा बिदक गया. गिरने से किसान के बेटे की टांग टूट गई. उसके पड़ोसी सांत्वना देने लगे, "दुर्भाग्य ही है कि तुम्हारे बेटे की टांग टूट गई."
किसान ने फिर कहा, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"
कुछ महीनों बाद एक दिन राजा की सेना उस गांव में आई और हर स्वस्थ व्यक्ति को जबरन सेना में भर्ती होने के लिये ले गए. परन्तु बूढ़ा होने के कारण किसान को और टांग टूटी होने के कारण उसके बेटे को छोड़ दिया. "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"
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