एक व्यक्ति रत्न (Gems) परखने की कला सीखना
चाहता था. वह एक प्रसिद्द जौहरी के पास गया और उससे इस हुनर को सीखने का अनुरोध किया. पहले-पहल तो जौहरी ने इनकार कर दिया, लेकिन बार-बार कहने
पर उसने उसे अगले दिन से आने को कह दिया.
अगले
दिन जब वह व्यक्ति वहाँ पहुँचा, तो जौहरी ने उसे एक रत्न पकडा़ दिया और अपने काम में लग गया. वह
कभी रत्नों को काटता, पॉलिश करता, कभी
तोलता; लेकिन पूरे दिन में
उसने उस व्यक्ति से कोई बात
नहीं की. अगले दिन फिर यही हाल रहा. एक सप्ताह तक रोजा़ना वह व्यक्ति काम सीखने की ललक में जौहरी के पास जाता और जौहरी उसे एक रत्न पकडा़ कर अपने काम में व्यस्त हो जाता.
जब कभी वह व्यक्ति उससे काम सीखने की बात करता तो जौहरी उसे कहता कि रोज़ आते रहने से जल्दी ही वह काम में पारंगत हो जायेगा.
आखि़रकार उस व्यक्ति के लिए चुप रहना मुश्किल हो गया. एक दिन उसने तय किया कि आज वह साफ़-साफ़ पूछ लेगा कि जौहरी उसे काम सिखाना भी चाहता है, या नहीं. उस दिन
जैसे ही वह जौहरी के पास पहुँचा तो रोज़
की तरह जौहरी ने एक रत्न उसके हाथ पर रखा. उस व्यक्ति ने रत्न को देखते
ही कहा, “यह रोज़ वाला रत्न नहीं है.”
उसका उत्तर सुन कर जौहरी मुस्कराते हुए बोला, “तुम काम सीखने लगे हो. अब जल्दी ही रत्नों की बारीकि़याँ भी समझने लगोगे.” उस व्यक्ति का क्रोध हवा हो गया और वह बैठ कर चुपचाप रत्त्न को देखने लगा. वह अब समझ गया था कि
लक्ष्य की प्राप्ति के लिए धैर्य रखना आवश्यक है.
No comments:
Post a Comment