Thursday, 28 November 2013

मेंढक दौड़

एक बार एक गांव में मेंढकों की प्रतियोगिता रखी गई. जिसमें मेंढकों को एक खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी पर चढ़ना था. बहुत से मेंढक तो पहाड़ी को देख कर ही प्रतियोगिता से बाहर हो गए. बाकी मेंढक पहाड़ी पर चढ़ने लगे. वहां खड़े लोग तमाशा देख रहे थे. बहुत से लोग चिल्ला रहे थे, अरे इस पहाड़ी पर अच्छे-अच्छे नहीं चढ़ पाए, तो इन मेंढकों की क्या औकात?"

मेंढक धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे. कुछ समय बाद उनमें से कुछ मेंढक गिरने लगे. उन गिरते मेंढकों को देख कर, कुछ और मेंढक प्रतियोगिता छोड़ कर बाहर हो गए. थोड़ी और देर बाद कुछ और मेंढक गिर गए. लोगों का शोर बढ़ता जा रहा था. प्रतियोगिता छोड़ने वाले मेंढक भी कह रहे थे, "हां भई, इस पहाड़ी पर चढ़ना बहुत मुश्किल है." कुछ मेंढक तो यहां तक बोलने लगे कि यह नामुमकिन है.

देखते ही देखते, कुछ मेंढक गिरते रहे और कुछ और मेंढक प्रतियोगिता को बीच में ही छोड़ गए. लोगों का शोर और भी बढ़ गया.

परन्तु दो मेंढक पहाड़ी पर चढ़ने में सफल हो गए. जानते हैं क्यों? क्योंकि वे दोनों मेंढक बहरे थे. उन्होंने ना तो लोगों का शोर सुना और ना ही प्रतियोगिता छोड़ने वाले मेंढकों के बातें.

दोस्तों! जीवन में बहुत से लोग केवल इसीलिए सफल नहीं हो पाते, क्योंकि नकारात्मकता उन्हें पीछे धकेलती है. नकारात्मक बातें सुन सुन कर उनका उत्साह ठंडा पड़ जाता है. धीरे धीरे उनके मन में यह गलत धारणा बैठ जाती है कि यह तो बहुत मुश्किल है. कुछ लोग तो यहाँ तक सोच लेते हैं कि यह कार्यनामुमकिन है.

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