Thursday, 28 November 2013

एक टोकरी मिटटी

एक गांव में एक बेईमान जमींदार था. गांव के भोले भाले लोगों को लूटने और उनकी जमीन हथियाने में वह माहिर था. उसके इन्ही दुर्गुणों के कारण गांव का हर व्यक्ति उससे घृणा करता था. परन्तु जरूरत के समय उधार देने वाला उस गांव में जमींदार के अलावा और कोई नहीं था. गांव के अधिकतर लोगों की ज़मीन वह अपनी मक्कारी से हथिया चूका था.

ऐसे ही एक बूढी औरत ने जमींदार से कुछ रपये उधर ले रखे थे. बहुत कोशिस करने के बाद भी वह जमींदार का क़र्ज़ नहीं उतार पाई. जमींदार ने उसके खेत पर कब्ज़ा कर लिया.

अगले दिन वह बुढिया जमींदार के पास गई. उसे देखते ही जमींदार गुस्सा हो गया.

बुढिया ने कहा, "मैं अपना खेत वापस मांगने नहीं आई हूँ. परन्तु इस खेत से मुझे बहुत लगाव है. अगर आप आज्ञा दें तो इस खेत की एक टोकरी मिट्टी, यादगार के रूप में ले जाना चाहती हूँ."

जमींदार को इस बात में कोई हानि नज़र नहीं आई और उसने बुढ़िया को एक टोकरी मिट्टी ले जाने की अनुमति दे दी.

बुढ़िया ने मिट्टी खोद कर टोकरी भर ली और जमींदार से कहा कि वह टोकरी उठवा कर उसके सिर पर रखने में सहायता करे.

जमींदार ने कहा, "बुढ़िया यह टोकरी बहुत भरी है, तू इस बोझ को नहीं उठा पाएगी. तू मर जायेगी"

बुढ़िया ने बहुत नम्रता से कहा, "यदि मैं एक टोकरी मिट्टी से मर जाउंगी, तो तू खुद की सोच, इतने लोगों के ज़मीन हड़प कर तू कैसे जी पायेगा?"

यह सुन कर ज़मींदार को अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ. उसने ना केवल उस बुढ़िया की, बल्कि गांव के हर व्यक्ति की ज़मीन लौटा दी.

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