Saturday, 23 November 2013

मैं उन्हें पढ़ता हूं

एक बार एक व्यक्ति को मोटिवेशन पर एक किताब कहीं से मिल गई. उसने बड़ी लगन से किताब पढ़ी. पढने के बाद उसे अच्छा लगा. वह अपनी साइकल पर एक दुकान पर गया और 1000 रुपये की मोटिवेशनल किताबें खरीद कर लाया. कुछ महीनों बाद वह एक बाइक पर उसी दुकान पर गया और 10000 रुपये की और किताबें खरीद लाया. कुछ और महीने बीते, अबकी बार वह कार से उस दुकान पर गया और 20000 रुपये की किताबें खरीद कर लाया. कुछ महीने बाद वह लम्बी कार से उसी दुकान पर गया और 1 लाख रुपये की किताबें खरीदी. दुकानदार के सब्र का बाँध अब टूट चुका था. उसने उस व्यक्ति से पुछा, "भाई तुम्हारा स्टैण्डर्ड हर बार ऊंचा कैसे होता जाता है.

उस व्यक्ति ने कहा, "तुम्हारी दुकान से जो किताबें ले कर जाता हूं, उनके कारण."

दुकानदार ने कहा, "पर किताबें तो मेरे पास भी हैं?"

उस व्यक्ति ने कहा, "तुम किताबें केवल रखते हो, उन्हें बेचते हो. मैं उन्हें पढ़ता हूं."

दोस्तों! यही इन कहानी का सार है. ज्ञान अमूल्य है. प्रेरणात्मक या मोटिवेशनल किताबें खरीद लेने से या उन्हें खरीद कर बुक-शेल्फ में सजा देने से कुछ नहीं होने वाला. महत्त्व बुक्स का नहीं, उनमें छुपे ज्ञान का है.

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