बहुत पुरानी बात है. एक किसान गाँव के बेकरी वाले को मक्खन
बेचता था. वह प्रतिदिन एक किलो मक्खन बेकरी वाले को देता था और उससे एक किलो ब्रेड
खरीदता था.
बहुत दिन तक यही सब सामान्य रूप से चलता रहा. एक
दिन बेकरी वाले के मन में शक पैदा हुआ कि कहीं किसान मक्खन कम तो नहीं देता? उसने मक्खन तौल कर देखा तो वह एक किलो से बहुत कम था. उसे
किसान पर बहुत गुस्सा आया. वह न्याय पाने के लिये किसान को राजा के पास ले गया.
बेकरी वाले की शिकायत सुनने के बाद राजा ने
किसान से पूछा, "तुम्हें क्या कहना है"?
किसान ने कहा, "महाराज मैं उसे कम मक्खन क्यों दूंगा भला"?
राजा ने पूछा, "तुम मक्खन तौल कर देते हो"?
किसान ने कहा महाराज, "जी महाराज, मेरे
पास एक तराजू है, पर बाट नहीं है".
राजा ने गुस्से से पूछा, "जब तुम्हारे पास बाट नहीं है, तो तुम मक्खन को तौलते कैसे हो"?
किसान ने विनम्रता पूर्वक कहा, "महाराज जो एक किलो ब्रेड मैं बेकरी वाले से
लाता हूँ, उसी ब्रेड से तौल कर एक किलो मक्खन मैं उसे दे
आता हूँ".
अब राजा को सारी बात समझ आ गई थी. राजा ने
किसान को सम्मान पूर्वक छोड़ दिया और बेकरी वाले को उचित सज़ा दी.
हम दूसरों को जो देते हैं, वही हमें वापस मिलता है. दूसरों से इमानदारी की अपेक्षा रखने से पहले हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या हम इमानदारी से अपना काम करते हैं? ईमानदारी और बेईमानी एक आदत बन जाती है. बहुत से लोग भोली सूरत बना कर बड़ी सरलता से बेईमानी करते हैं, झूठ बोलते हैं. और धीरे-धीरे ऐसे व्यक्ति के लिए झूठ और सच में कोई अंतर नहीं रह जाता.
No comments:
Post a Comment