Thursday, 31 October 2013

पार्श्विक (lateral) और तार्किक (logical) सोच

सैकड़ों साल पहले एक छोटे शहर में, एक व्यापारी ने एक साहूकार से कुछ पैसे उधार लिए. परन्तु दुर्भाग्यवश वह समय पर अपना ऋण चुका नहीं पाया. साहूकार ने व्यापारी को बुलाया. व्यापारी के साथ उसकी बेटी भी थी. वे साहूकार के बगीचे में एक कंकड़ बिखरे पथ पर खड़े थे. साहूकार ने उसके सामने एक प्रस्ताव रखा की यदि वह व्यपारी अपनी सुन्दर युवा बेटी का विवाह उससे करा दे तो उसका ऋण माफ़ हो जाएगा. व्यपारी भला कैसे अपनी बेटी का विवाह बूढ़े और बदसूरत साहूकार से कर देता? व्यापारी और उसकी बेटी दोनों, साहूकार के प्रस्ताव से भयभीत थे.

चालाक साहूकार ने उन दोनों को दया दिखाने के बहाने कहा, वह एक खाली बैग में एक काला कंकड़ और एक सफेद कंकड़ रखा रखेगा. 
लड़की बिना देखे बैग में से एक कंकड़ उठाएगी. यदि उसने बैग में से काला कंकड़ उठाया तो वह साहूकार की पत्नी बन जाएगी और उसके पिता का कर्ज माफ कर दिया जाएगा. यदि उसने सफेद कंकड़ उठाया तो उसे उसे शादी करने की जरूरत नहीं है और उसके पिता का कर्ज भी माफ कर दिया जाएगा. परन्तु यदि लड़की ने कंकड़ उठाने से इनकार कर दिया तो उसके पिता को जेल में डाल दिया जायेगा. इतना कह कर साहूकार दो कंकड़ लेने के लिए झुका. उसने बड़ी ही चालाकी से दोनों ही काले कंकड़ उठा कर बैग में डाल दिए पर लड़की ने उसकी चालाकी को देख लिया की उसने दोनों काले कंकड़ ही उठाये थे. अब साहूकार ने लड़की को बैग से एक कंकड़ निकलने को कहा.

अब लड़की के सामने तीन ही विकल्प थे.

1. वह
 कंकड़ लेने से मना कर देती.
2. बैग में से दोनों काले कंकड़ निकाल कर साहूकार को बेनकाब कर देती.
3. लड़की एक काले पत्थर को निकाल कर अपने पिता को बचाने के लिए खुद को बलिदान कर देती.

लड़की ने कुछ देर सोचने के बाद, बैग में अपना हाथ डाल दिया, एक कंकड़ बाहर निकाला और बिना देखे गड़बड़ी दिखाते हुए उस कंकड़ को नीचे गिरा दिया.
 वह कंकड़ तुरंत अन्य सभी कंकडों के बीच में खो गया जहां कंकड़ बिखरे पड़े थे.

"ओह, में भी कैसी अनाड़ी हूँ?" उसने कहा. "मगर कोई बात नहीं, तुम बैग में देखो कौनसा कंकड़ है? यदि बैग में सफ़ेद कंकड़ है तो मैंने काला कंकड़ उठाया था और यदि कंकड़ काला है, तो मैंने सफेद उठाया था." 
साहूकार को अपनी बेईमानी स्वीकार करने की हिम्मत नहीं थी. लड़की ने बड़ी चतुराई से स्थिति को अपने पक्ष में कर लिया.

कहानी का सार यह है कि जटिल से जटिल समस्याओं का भी एक समाधान होता है, कभी कभी हमें एक अलग तरीके से उनके बारे में सोचने की ज़रुरत होती है.


उपरोक्त कहानी हमें पार्श्विक (lateral) और तार्किक (logical) सोच के बीच का अंतर बताती है.

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