Wednesday, 23 October 2013

जो लिखा है वह मिलेगा - या जो लिखोगे वह मिलेगा?

हम इंसानों की आम धारणा यह है कि किस्मत में "जो लिखा है" वही मिलेगा. संभवतः इसी धारणा के चलते आम आदमी अपने लक्ष्य से भटक जाता है और अपने आप को किस्मत के हवाले करके बैठ जाता है. हमें बचपन से यही सुनने को मिलता है कि जो लिखा होगा वही होगा!या “चाहे कुछ भी कर लीजिये जो किस्मत में होगा वही मिलेगाया “समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी किसी को ना कुछ मिला है और नाहीं मिलेगाया फिर सब पहले से तय है, ऊपर वाले ने जो लिख दिया है वही होना हैआदि आदि. क्या यह सब धारणाएं ऐसे ही बन गई? नहीं. इन सबके पीछे मुख्य कारण है इंसान की अकर्मण्यता या उसका आलसीपन. इसके अतिरिक्त हमारा अपनी संकुचित सोच के दायरे से बाहर ना सोच पाने की आदत. जो बात हजारों बरसों से दोहराई जा रही हो और जिसे हम बचपन से सुनते आ रहे हों; वो गलत हो कर भी सही ही लगेगी.

किसी व्यक्ति की छोटी-बड़ी असफलता या किसी अन्य समस्या के समय उसके अपने मित्र, रिश्तेदार या परिवार के लोग यही कर उसे धैर्य बंधाते हैं कि "तुम्हारा समय खराब है. जब समय ठीक होगा, तो सब ठीक हो जाएगा" या "जो लिखा था सो हो गया, चिंता मत करो". या फिर "भगवान् की शायद यही इच्छा थी". उसे कोई यह नहीं कहता कि "कोई बात नहीं, असफलता के बाद ही सफलता मिलती है, फिर से प्रयास करो. अच्छे से सोच-विचार कर दुबारा प्रयास करो, सब ठीक हो जाएगा".

हम इस प्रकार की भ्रांतिपूर्ण धारणाओं में इतने जकड़े हुवे रहते है, कि स्वयं को निष्क्रिय कर लेते हैं, या स्वयं को भाग्य के भरोसे छोड़ कर बैठ जाते हैं. हम में से कुछ लोग अच्छी बुरी ग्रह-दशा की चिंता में ज्योतिशिओं या तांत्रिक आदि के चक्कर में पड़ कर ना केवल अपना समय, पैसा और मानसिक शांति बर्बाद करते हैं, बल्कि स्वयं को निकम्मा बना कर भाग्य के भरोसे छोड़ देते हैं. 

यहाँ मुझे एक जोक याद आ गया. एक बार एक आदमी तरह-तरह की समस्याओं से घिर कर बहुत परेशान था. वह एक ज्योतिषी के पास गया और बोला महाराज मैं बहुत परेशान हूं. ज्योतिषी ने उसकी जन्म-कुंडली देख कर बोला "ओह! तुम पर तो शनि महाराज की बहुत खराब दशा चल रही है. तुम्हे शनि-महाराज को प्रसन्न करने के लिये एक काली भैंस दान करनी होगी." वह व्यक्ति बोला "महाराज मैं तो बहुत गरीब हूँ, भैंस दान नहीं कर सकता." ज्योतिषी ने कहा "ठीक है, तब तुम एक काली बकरी दान कर दो". वह व्यक्ति बोला महाराज "मैं तो बकरी भी दान नहीं कर सकता". ज्योतिषी ने कहा "तो तुम केवल 5 किलो काले उड़द ही दान कर दो". वह व्यक्ति बोला "प्रभु मेरी तो इतनी औकात भी नहीं है". अब ज्योतिषी क्रोध में भर कर बोला "जा, जब तेरी इतनी भी औकात नहीं है तो शनि तेरा क्या बिगाड़ लेगा?"

यह तो खैर एक जोक था. पर क्या हमें यह मान लेना चाहिये कि जो कुछ भी होता है, अच्छा या बुरा, वह सब कुछ पहले से लिखा होता है? भगवान् जब हमें पैदा करता है तो वह पहले से ही सब कुछ निर्धारित कर देता है? कब, कैसे और कहाँ कोई पैदा होगा, पढ़ेगा या अनपढ़ रहेगा? नौकरी करेगा या व्यापार करेगा? गरीब रहेगा या धनवान बनेगा? अच्छा इंसान होगा या बुरा? बीमार रहेगा या स्वस्थ? आदि-आदि. यानी हमारे हर अच्छे-बुरे कार्य के लिए भगवान् ही जिम्मेदार है? यानि जो कुछ हम करते हैं वह भगवान् की इच्छा से करते हैं? तो क्या एक चोर जो चोरी करता है वह अपने कर्मों का दोष भगवान् को दे सकता है? क्या एक बलात्कारी को, एक खूनी को, एक आतंकवादी को भगवान् ही ऐसा करने को कहते हैं? फिर तो हर अच्छे काम का श्रेय भगवान् के नाम और हर बुरे कार्य का दोष भी भगवान् पर लगना चाहिये

क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी गलत धारणाएं इन्सान को केवल और केवल कमज़ोर बनाती हैं, उसे निकम्मा और नाकारा बनाती हैं, उसे कुछ कर्म करने की बजाय भाग्य के भरोसे बैठना सिखाती हैं? यदि केवल वही होता जो किस्मत में लिखा है, तो फिर हमें पढने-लिखने की क्या ज़रुरत थी? नौकरी या व्यापार व्यवसाय करने की क्या जरूरत थी? या यूँ कहें कि कुछ भी करने की क्या ज़रुरत थी? जो होना है वह तो हो ही जाएगा. हम क्या ऐसा मान कर बैठ जाते हैं? नहीं ना. फिर हम क्यों यह मानते हैं कि जो लिखा है वही होगा. 

मैं भाग्य में भी यकीन करता हूँ और भगवान् में भी अटूट विश्वास रखता हूँ, पर मैं इस बात को नहीं मानता कि सब कुछ पहले से निर्धारित है (लिखा है) और उसे बदला नहीं जा सकता है. मेरे विचार से भाग्य 90% हमारे कर्मो का फल है, और 10 % दैविक. और 10% कभी भी 90% से अधिक नहीं होता. जब तक हम कर्म नहीं करेंगे तब तक भगवान् intervene नहीं करेगा. कर्म अच्छे होंगे तो भाग्य अच्छा होगा और यदि हमारे कर्म खराब होंगे तो भाग्य भी निश्चित रूप से खराब ही होगा. 

यदि किसी व्यक्ति का समय खराब चल रहा है तो जो भी वह करेगा, उसका परिणाम खराब ही होगा. तो क्या उसे सब कुछ भाग्य के भरोसे छोड़ कर निठल्ला बैठ जाना चाहिए? नहीं ना. इस प्रकार तो उसका बुरा या खराब समय और भी खराब हो जाएगा. ज्योतिष (यदि आप मानते हैं तो) केवल एक दिशा-सूचक का कार्य भर कर सकती है, आपका भाग्य बना या बिगाड़ नहीं सकती.

अच्छे या बुरे कर्म हमारी सही या गलत (सकारात्मक या नकारात्मक) सोच का परिणाम होते हैं. जैसा कि मैंने अपने पहले आर्टिकल "विचार बनाएं जिंदगी" में लिखा था, कि अपने विचारों की शक्ति से हम जो चाहते हैं वह पा सकते हैं. यहाँ यह तो हम समझ ही गए हैं कि अच्छे कर्म हमारे ही अच्छे एवं सकारात्मक विचारों का परिणाम हैं. अर्थात हमारे अच्छे एवं सकारात्मक विचार हमें अच्छे कर्मों के लिये प्रेरित करते हैं और हम जो चाहते हैं वह पा सकते हैं. यानि अपने भाग्य-विधाता हम स्वयं हैं, कोई और नहीं.

जब हम जान गए हैं, कि हम स्वयं ही अपने भाग्य-विधाता है, अर्थात जो भी हम चाहते हैं उसे अपनी और आकर्षित करते हैं, उसे पा सकते हैं, तो क्यों हम हर बात के लिए भाग्य को दोष देना बंद नहीं करते

फिल्म "ओम शांति ओम" में शाहरुख़ खान का यह डायलोग आपको याद होगा "जब हम किसी को शिद्दत से चाहते हैं, तो पूरी की पूरी कायनात उसे हम से मिलाने में लग जाती है". अर्थात हमारे तीव्र विचार ही हमारी गहरी चाह बनती है और गहरी चाह ही कुदरत या भगवान् को हमारी मनचाही वस्तु हमें दिलाने को मजबूर करती है.

आप भी अपने भाग्य-विधाता बनिये. अपना भाग्य स्वयं लिखिये. इसकी शुरुआत करिये एक सुन्दर डायरी से. आज ही एक सुन्दर सी डायरी खरीद कर उसमे वह सब कुछ लिखें जो आप पाना चाहते है, कब तक पाना चाहते हैं. कैसे पाना है यह आपको नहीं लिखना है. आपके विचार आपकी सोच एकदम स्पष्ट होनी चाहिये. अपने आप पर और अपने विचारों पर अपनी सोच पर पूर्ण विश्वास रखिये. बिना पूर्ण विश्वास के, आप अपनी मनचाही वस्तु नहीं पा सकते. यह सब कैसे करना है, मैं अपने अगले आर्टिकल में बताऊंगा.

और विश्वास रखिये "जो लिखा है" वह हो ना हो, "जो आप लिखेंगे" वह अवश्य होगा, क्योंकि आप अब अपने भाग्य-विधाता बन गए हैं.

अपने सपनों को साकार करने के लिये मेरे आर्टिकल्स पढ़ते रहिये, अपनी राय मुझे कमेंट्स के माध्यम से भेजते रहिये. तब तक के लिए शुभ-रात्रि, good-night, शब्बाखैर. 

CA बी. एम्. अग्रवाल

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