जी हाँ “विचार बनाएं जिंदगी”. जैसा सोचोगे वैसा पाओगे,
यह बिलकुल सच है. परन्तु ऐसा क्यों होता है? उत्तर
बिलकुल आसन है. जब हम किसी भी चीज़ के बारे में सोचते हैं तो उस चीज़ की एक तस्वीर
हमारे दिमाग में उभरती है. जितनी गहराई से हम किसी चीज़ के बारे में सोचेंगे उतनी
ही गहरी यह तस्वीर उभरेगी. जितनी गहरी ये तस्वीर होगी उतना ही ज्यादा जल्दी और
आसानी से हम उस चीज़ को प्राप्त कर लेंगे.
अर्थात जो हम सोचते हैं वही हम पाते हैं या यूँ कहें की जैसा हम सोचते हैं
वही हम बन जाते हैं. ऐसा क्यों होता है? क्योंकि
हम सब के साथ एक अनंत शक्ति है. जिसे हम कुदरत कह सकते हैं. या फिर भगवान भी. और
यही शक्ति हमें वह सब कुछ दिलाती है जो हम सोचते हैं.
क्योंकि जब हम किसी चीज़ के बारे में
गहराई से सोचते हैं तो हमारे दिमाग से एक विशेष
प्रकार की तरंगें बाहर की और प्रवाहित होती हैं. यह तरंगें अपनी समान तरंगों को
अपनी और आकर्षित करती हैं. और फिर एक समय आता है जब हम उस चीज़ को प्राप्त कर लेते
हैं. टोयोटा कम्पनी ने एक विशेष प्रकार की व्हीलचेयर बनाई है जो उस पर बैठने वाले
व्यक्ति के सोचने से चलती है. आपको कोई बटन नहीं दबाना होता. एक और कम्पनी ने एक विशेष प्रकार का हेड-फोन (head-phone) बनाया है जिसे पहन कर आप बिना छुए केवल अपनी सोच की शक्ति से अपना कंप्यूटर ऑपरेट कर सकते हैं. यह सिद्ध करता है कि सोचने से हमारा दिमाग एक विशेष
प्रकार की तरंगें प्रेषित करता है जिनकी फ्रीक्वेंसी को वैज्ञानिक तरीके से मापा जा सकता है.
ज़रा सोचिये, ऐसा क्यों है की विश्व की कुल आय का 96 प्रतिशत
भाग दुनिया के केवल 1 प्रतिशत लोग ही कमा रहे हैं. यह सब सोच का कमाल है कोई
संयोग नहीं है. पुराने समय के सफल लोगों ने विचारों की इस शक्ति (आकर्षण का सिद्धांत) को दुनिया की पहुँच से दूर एक राज़ बना कर रखा. अमीर लोग और भी सफल होते गए तथा आम आदमी को कभी इसका कारण ही समझ नहीं आया. यदि हम अपने दिमाग की इस अपरिमित शक्ति को जान जाएँ और इस शक्ति की
असीम उर्जा को सही दिशा में प्रवाहित करें, तो हम बड़े से बड़े कार्य आसानी से कर सकते हैं, जो चाहें उसे प्राप्त कर सकते हैं तथा जो चाहें बन सकते हैं.
जैसा की मैंने ऊपर कहा है कि जब हम किसी भी चीज़ के बारे में सोचते हैं तो उस
चीज़ की एक तस्वीर हमारे दिमाग में उभरती है. और जैसे जैसे हमारा ध्यान इस तस्वीर
की और केन्द्रित होता जाता है, वैसे वैसे हम उस चीज़ को अपनी और आकर्षित करते
हैं. यही तो है "आकर्षण का सिद्धांत". इस सिद्धांत को हम मानें या न मानें, जानें या ना जानें, यह लगातार अपना कार्य करता है. ठीक उसी प्रकार जैसे "गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत" हमारे मानने या ना मानने की परवाह किये बिना लगातार अपना कार्य करता है.
"आकर्षण का सिद्धांत" कोई जादू नहीं है, पर यह
किसी जादू से कम भी नहीं है. हम किसी चीज़ को चाहें या ना चाहें, पर हम
जो सोचते हैं वही हम पाते हैं. हमारी सोच में जो ना शब्द है, उसका इस सिद्धांत के लिए कोई अर्थ नहीं है. यह तो बस इतना जानता है कि हम किस वस्तु के बारे में सोचते हैं. उसी वस्तु की तस्वीर हमारा दिमाग बनाता है और उसी की तरंगें प्रसारित करता है. यदि कोई हमें कहे कि आज आप टीवी मत देखना, तो
सबसे पहले हमारे दिमाग में टीवी की तस्वीर उभरती है. चाहे हमें यह कहा जा रहा है
की टीवी नहीं देखना. जब हम किसी चीज़ के बारे में गहराई से सोचते हैं तो हमारे
दिमाग की साड़ी उर्जा उस चीज़ की छवि पर केन्द्रित हो जाती है और धीरे धीरे, हमें उसे पाने के
अनेकों रास्ते भी सूझने लगते हैं. अर्थात "विचार बनाएं जिंदगी".
अब आप यह पूछेंगे की यदि किसी भी वस्तु
के बारे में सोचने भर से हम उसे प्राप्त कर सकते हैं तो फिर दुनिया भर के लोग वह
क्यों नहीं पा लेते जो वे पाना चाहते हैं? उत्तर बिलकुल आसान
है. असफलताओं से डरते हुए उनके बारे में सोचते हैं. अक्सर हम उन चीज़ों के बारे में अधिक सोचते हैं जो हम नहीं चाहते. हम गरीबी के
बारे में, बिमारी के बारे में, या अन्य
किसी नकारात्मक बात के बारे में सोचते हैं, और वही हमें मिलता
है. सवाल यह नहीं है के हम किसी चीज़ को चाहते हैं या नहीं, महत्वपूर्ण
यह है कि हम क्या सोचते हैं.
जैसा सोचोगे वैसा ही बनोगे. यहाँ मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ. बचपन में मैंने अपने स्कूल के नोटिस बोर्ड पर एक विचार लिखा
देखा. "भविष्य के बारे में सोचे बिना आप उसे पा नहीं सकते". मैं बच्चा
था, समझ नहीं पाया परन्तु जाने क्यों, यह वाक्य मेरे दिमाग में अन्दर तक बैठ गया. एक
दिन अपने हिंदी अध्यापक से पूछा तो उन्होंने मुझे समझाया कि देखो अगर तुमने सोचा
कि तुम्हे दिल्ली जाना है, तभी तो तुम दिल्ली जाओगे. तुम अपना सामान पैक करोगे, स्टेशन
या फिर एअरपोर्ट जाओगे, दिल्ली का टिकट खरीदोगे, अपनी यात्रा आरम्भ करोगे और तुम दिल्ली पहुँच
जाओगे. फिर उन्होंने मुझे पूछा कि तुम क्या बनना चाहते हो? मैंने
कहा सर मैं CA बनना चाहता हूँ. उन्होंने पुछा इसके लिए तुम क्या करोगे? मैंने
कहा सर मैं कोमर्स कोर्स करके B.Com. करूंगा और उसके बाद CA का
कोर्स करूंगा. उन्होंने कहा यही है तुम्हारे प्रश्न का उत्तर. तुमने
भविष्य में CA बनने का सोचा तो साथ साथ उस मंजिल तक पहुँचने के रास्ते के
बारे में भी सोचा और इसी रास्ते पर चल कर तुम CA
बन पाओगे. अगर तुमने इस मंजिल के बारे में सोचा
ही ना होता तो तुम इसके रास्ते के बारे में भी नहीं सोचते और जब रास्ते के बारे
में नहीं सोचते तो मंजिल तक पहुँचने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता. अब शायद तुम
समझ गए होगे की "भविष्य के
बारे में सोचे बिना हम उसे पा नहीं सकते". अब मैं समझ गया था. मैंने
अध्यापकजी का धन्यवाद किया.
तो देखा आपने सोच की ताकत को? आपकी सोच सकारात्मक हो सकती है या नकारात्मक, अच्छी
या बुरी, छोटी या बड़ी. नकारात्मक सोच के नतीज़े नकारात्मक होंगे तो
सकारात्मक सोच के सकारात्मक, सोच अच्छी है तो नतीज़े भी अच्छे ही होंगे
अन्यथा बुरे. सोच बड़ी होगी तभी नतीज़े भी बड़े होंगे. यह सब बातें हम अपने अगले
आर्टिकल्स में डिस्कस करेंगे. तब तक अच्छा सोचिये,
बड़ा सोचिये और हाँ सकारात्मक सोचिये और याद रखिये "विचार बनाएं जिंदगी".
CA बी. एम्. अग्रवाल
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