एक शोध कार्य के दौरान एक समुद्री जीव-वैज्ञानिक एक प्रयोग कर
रहे थे. उन्होंने एक पानी के बड़े टैंक में एक शार्क को डाला. कुछ समय बाद उसी टैंक
में कुछ छोटी-छोटी मछलियों को डाला. फिर क्या हुआ होगा? आप अंदाजा लगा सकते हैं. शार्क ने हमला किया और
छोटी मछली को खा लिया.
कुछ समय बाद एक बेहद मज़बूत कांच की परत से टैंक को दो भागों
में विभाजित कर दिया गया. अब एक भाग में शार्क थी और दुसरे में कुछ और छोटी
मछलियों को डाला गया. उन्हें देखते ही शार्क उन्हें खा जाने के लिए लपकी पर कांच
की दीवार से टकरा कर रह गई. व्याकुल शार्क बार-बार हमले की कोशिश करती रही पर सब
बेकार. हर बार उसे कांच की दीवार से टकरा कर रह जाना पड़ रहा था. जबकि दुसरे भाग
में छोटी मछलियाँ बड़े आराम से बेफिक्र तैरती हुई अठखेलियाँ करती रहीं. एक घंटे की
असफल कोशिश के बाद उस शार्क ने हमला करना कम कर दिया.
इस प्रयोग को अगले कुछ सप्ताह में कई दर्जन बार दोहराया गया. हर बार शार्क की आक्रामकता (aggression) कम होती गई. उसने हमला करने के कम प्रयास किए. और जब शार्क कांच की दीवार पर सर पटक पटक कर पूरी तरह थक गई तो एक समय ऐसा आया, जब उसने हमला करना पूरी तरह से बंद कर दिया.
कुछ दिन बाद वह कांच की दीवार हटा दी गई परन्तु. शार्क ने
हमला नहीं किया. शार्क के दिमाग में यह बैठ चूका था कि वहां एक
बाधा है और इस कारण वह उन छोटी मछलियों पर हमला नहीं कर पाएगी. उस समय छोटी
मछलियाँ बिना किसी रोक टोक के इधर उधर तैर रही थीं. परन्तु शार्क को छोटी मछलियों
के साथ रहने का प्रशिक्षण मिल चूका था. हालांकि इस प्रशिक्षण का मुख्य सूत्र था, शार्क के दिमाग में यह बैठाना कि वहां कोई बाधा
(barrier)
है जिसे वह पार नहीं कर
सकती.
दोस्तों! हम में से कई लोग असफलताओं और विफलताओं का सामना करने के बाद, भावनात्मक रूप से इस कदर हार मान कर बैठ जाते हैं कि उस कार्य को करने की कोशिश करना ही बंद कर देते हैं. कहानी में शार्क की तरह ही हम भी यही मान बैठते हैं कि, क्योंकि हम अतीत में असफल रहे थे, इसलिए हम हमेशा असफल हो जायेंगे. कोई 'असली' बाधा ना होते हुए भी, शार्क की तरह हम भी अपने दिमाग में एक 'नकली' बाधा को सच मान बैठते हैं. यही कारण है हमारी अधिकांश असफलताओं और विफलताओं का. तो उठो और तोड़ दो इस नकली बाधा को.
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