Tuesday, 19 November 2013

दुनिया बदलना चाहता था

अपनी जवानी के दिनों में एक आदमी दुनिया बदलना चाहता था. कुछ वर्षों बाद जब उसे लगा कि वह दुनिया को नहीं बदल पायेगा तो उसने सोचा चलो मैं अपने देश को ही बदल डालता हूँ. परन्तु कुछ और वर्षों बाद उसे ऐसा लगने लगा देश बदलना तो मुश्किल है, चलो मैं अपने शहर को बदलता हूँ. जब वह शहर को भी नहीं बदल पाया तो सोचा कि चलो शहर नहीं बदल पाया तो क्या, मैं अपने परिवार को तो अवश्य ही बदल सकता हूँ.

आपने ठीक सोचा. वह अपने परिवार को भी नहीं बदल पाया. इस बीच वह बूढ़ा हो गया था.

अब, एक बूढ़े आदमी के रूप में, उसे एहसास हुआ कि मैं केवल अपने आप को बदल सकता हूँ.

वह अपने आप को बदलने का प्रयास करने लगा और उसमें सफल भी रहा. 

पर क्या आपको नहीं लगता कि अब बहुत देर हो चुकी थी. यदि बहुत पहले उसने अपने आप को बदला होता, तो इसका प्रभाव उसके परिवार पर पड़ता और परिवार बदल जाता. उसमें और उसके परिवार में बदलाव देख कर शायद उसका मोहल्ला, फिर उसका शहर भी बदल सकता था. इसी तरह धीरे धीरे शायद उसका देश भी बदल जाता और शायद एक दिन दुनिया भी.

दोस्तों! इस कहानी का एक और भी सन्देश है कि कुछ प्रयासों के बाद अधिकतर लोग अपने लक्ष्य को छोटा करते चले जाते हैं और यही सोच आपकी सफलता को रोकती है.

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