Monday, 4 November 2013

आत्म विकास के लिए तिलचट्टा थ्योरी; रिस्पांस बनाम रिएक्शन

एक रेस्तरां में, एक तिलचट्टा अचानक कहीं से उड़ता हुआ आया और एक महिला पर बैठ गया. वह डर के मारे चिल्लाने लगी. तिलचट्टे के आतंक से त्रस्त चेहरा और कांपती आवाज के साथ, वह औरत अपने दोनों हाथों से तिलचट्टे से छुटकारा पाने की कोशिश करने लगी. डर के मारे वह औरत तथा उसके साथ की सभी औरतों की प्रतिक्रिया लगभग वैसी ही थी. अंत में महिला, तिलचट्टे को धकेल कर खुद से दूर करने में सफल हो गई. लेकिन वह तिलचट्टा वहां बैठी एक और महिला पर जा गिरा.

अब, यह सब करने की दूसरी महिला की बारी थी. वह भी डर से चिल्लाने लगी, कांपने लगी, और तिलचट्टे से बचने के लिए उछल-कूद करने लगी. इसी प्रकार वह तिलचट्टा एक से दूसरी महिला पर गिरता रहा. रेस्तरां में खलबली मच गई. एक वेटर उनके बचाव के लिए आगे आया. फेंकने की होड़ में, तिलचट्टा अब वेटर पर जा गिरा.

वेटर , कुछ क्षण शांति से एक स्थान पर खड़ा रहा और तिलचट्टे को शांत होने दिया. कुछ क्षण बाद उसने अपनी कमीज पर से तिलचट्टे को अपने हाथ से पकड़ लिया और रेस्तरां से बाहर फेंक दिया.

ज़रा सोचिये क्या उनके व्यवहार के लिए 
तिलचट्टा जिम्मेदार था ?

यदि हां, तो क्यों वेटर परेशान नहीं हुआ? उसने पूरी तन्मयता के साथ शांति से सारा कार्य संपन्न कर दिया. महिलाओं में मची खलबली का कारण वह तिलचट्टा नहीं था बल्कि उस तिलचट्टे से उत्पन्न स्थिति को संभालने (
handle करने) की उन महिलाओं की अक्षमता उस खलबली का कारण थी. 

हम में से कितने लोग अपने बॉस, पिता, पत्नी या किसी अन्य व्यक्ति के चीखने-चिल्लाने से परेशान हो जाते हैं. उनकी परेशानी का कारण इनकी तेज़ आवाज़ या चिल्लाहट नहीं है, बल्कि उस चिल्लाहट से उत्पन्न स्थिति को संभालने की उनकी अक्षमता इस परेशानी का कारण है.


सड़क पर ट्रैफिक-जाम से होने वाली परेशानी का कारण ट्रैफिक-जाम नहीं है, बल्कि उस स्थिति को हैंडल करने की हमारी असमर्थता हमारी परेशानी का कारण है.

जीवन में कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए. प्रतिक्रिया (
Reaction) हमारे जीवन में अराजकता पैदा करती हैं क्योंकि प्रतिक्रियाएं हमेशा क्षणिक आवेश में होती हैं. जबकि प्रत्युत्तर (response) सोच समझ कर शांति से दिया जाता है.

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