एक
बूढे आदमी ने एक बिच्छू को डूबते देखा और पानी से बाहर निकलने का फैसला किया. बहुत शांति पूर्वक, बिच्छू तक पहुँचने के लिए, उसने अपना हाथ बढ़ाया और बिच्छू को उठा लिया. बिच्छू ने उसके हाथ पर डंक मार दिया. दर्द के कारण बूढ़े आदमी का हाथ हिला और बिच्छू वापस पानी में गिर गया. बिच्छू को फिर से डूबता देख, उस आदमी ने दुबारा उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन बिच्छू ने उसे फिर से उसे
डंक मार दिया. उस आदमी के हाथ से बिच्छू फिर से छूट गया. एक बार फिर उस आदमी ने बिच्छू को बचाने के लिए हाथ बढाया ही था कि, पास खड़े एक लड़के ने, जो यह सब देख रहा था कहा, "बाबा आप यह क्या कर रहे हैं? आप बार बार इसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि यह दुष्ट बिच्छू बार बार डंक मार कर आपको कष्ट पहुंचा रहा है. आप इसे डूब क्यों नहीं जाने देते?"
बूढ़े आदमी ने बहुत शांतिपूर्वक कहा, "बेटा! बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है मदद करना. जब यह बिच्छू अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता तो भला मैं मनुष्य हो कर अपना स्वभाव कैसे छोड़ सकता हूँ?"
फिर बूढ़े आदमी ने क्षण भर के लिए सोचा और पास के पेड़ से एक पत्ता लेकर, बिच्छू को पानी से बाहर खींच लिया और उसकी जान बचाई .
अपनी प्रकृति, अपना स्वभाव नहीं बदलन चाहिये. किसी की सहायता करते हुए, स्वयं को तकलीफ से बचाने के लिए सावधानी अवश्य बरतनी चाहिये परन्तु अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ना चाहिए.
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