Saturday, 30 November 2013

प्यार का चमत्कार

केरन एक 3 वर्ष के बच्चे की मां, फिर से गर्भवती थी. सोनोग्राफी से पता चला कि उसे इस बार एक बेटी होगी. उसे चिंता थी कि बच्ची के आने पर उसका 3 साल का बेटा माइकल पता नहीं कैसे बर्ताव करेगा. वह बच्ची को स्वीकार करेगा या नहीं? कहीं उसे यह ना लगे कि अब उसके हिस्से का प्यार, माँ बाप नई बच्ची को दे रहे हैं. यह सोच कर उसने अपने बेटे को धीरे-धीरे समझाना शुरू किया कि उसकी एक छोटी बहन आने वाली है. उसने माइकल को इस तरह से समझाया कि वह अपनी आने वाली बहन से बहुत प्यार करने लगा.

और एक दिन माइकल की छोटी बहन का जन्म हुआ. परन्तु वह बहुत बीमार थी इसलिए उसे फ़ौरन नर्सरी में भर्ती करना पड़ा. माइकल अपनी बहन को देखना चाहता था, उसके साथ खेलना चाहता था. केरन बीच-बीच में बच्ची को देखने और दूध पिलाने जाती. नर्सरी में बच्चों का जाना वर्जित होता है, इसलिए बहुत चाहने के बाद भी माइकल अपनी बहन को नहीं देख पा रहा था. वह बहुत दुखी हो गया और ज्यादातर समय रोता रहता था.

बच्ची की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी. यहां तक कि केरन और उसके पति को लगने लगा कि बच्ची का बचना मुश्किल है. माइकल बार-बार अपने माता पिता से जिद करता कि उसे बहन को देखने जाना है और उसे एक गाना सुनाना है.

केरन को लगा कि यदि उसने अभी उसे अपनी बहन से नहीं मिलाया तो शायद कभी भी नहीं मिला पाएगी. यह सोच कर अगले दिन वह माइकल को नर्सरी में ले गई. वहां ड्यूटी पर तैनात हेड-नर्स ने कहा कि बच्चों को वहां लाने की अनुमति नहीं है.

केरन ने बहुत दृढ़ता के साथ हेड-नर्स से कहा कि, "चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपनी बहन को गाना सुनाये बिना वहां से नहीं जाएगा." और वह माइकल को उसकी बहन के पालने के पास ले गई.

बच्ची तड़प रही थी. हाथ-पैर मार रही थी. उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी. माइकल ने बाल-सुलभ तरीके से गाना शुरू किया. अभी उसने एक दो लाइनें ही गाई थीं, कि बच्ची ने हाथ-पैर मारना कम कर दिया. हेड-नर्स सब देख रही थी. वह उसे गाने से रोकना चाहती थी पर बच्ची की प्रतिक्रिया को देख, उसने माइकल से गाना चालू रखने को कहा. हेड-नर्स की आँखें भी भर आई थी. माइकल गाता रहा. बच्ची की उखड्ती सांसें ठीक होने लगी थी. और देखते-देखते माइकल की बहन बिलकुल शांत हो गई, जैसे उसे बहुत आराम मिला हो. वह टिकटिकी लगाए माइकल को देख रही थी. केरन के चेहरे पर ख़ुशी की आभा छा गई.

अगले ही दिन माइकल की बहन को नर्सरी से छुट्टी मिल गई. डॉक्टर्स ने इसे एक चमत्कार कहा.

यह कहानी Tennessee, USA में 1992 में घटित एक सच्ची घटना पर आधारित है. माइकल की बहन (नीचे चित्र) का नाम मार्ली है.


दोस्तों! यह है प्यार की शक्ति. प्यार का चमत्कार.

Thursday, 28 November 2013

मेंढक दौड़

एक बार एक गांव में मेंढकों की प्रतियोगिता रखी गई. जिसमें मेंढकों को एक खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी पर चढ़ना था. बहुत से मेंढक तो पहाड़ी को देख कर ही प्रतियोगिता से बाहर हो गए. बाकी मेंढक पहाड़ी पर चढ़ने लगे. वहां खड़े लोग तमाशा देख रहे थे. बहुत से लोग चिल्ला रहे थे, अरे इस पहाड़ी पर अच्छे-अच्छे नहीं चढ़ पाए, तो इन मेंढकों की क्या औकात?"

मेंढक धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे. कुछ समय बाद उनमें से कुछ मेंढक गिरने लगे. उन गिरते मेंढकों को देख कर, कुछ और मेंढक प्रतियोगिता छोड़ कर बाहर हो गए. थोड़ी और देर बाद कुछ और मेंढक गिर गए. लोगों का शोर बढ़ता जा रहा था. प्रतियोगिता छोड़ने वाले मेंढक भी कह रहे थे, "हां भई, इस पहाड़ी पर चढ़ना बहुत मुश्किल है." कुछ मेंढक तो यहां तक बोलने लगे कि यह नामुमकिन है.

देखते ही देखते, कुछ मेंढक गिरते रहे और कुछ और मेंढक प्रतियोगिता को बीच में ही छोड़ गए. लोगों का शोर और भी बढ़ गया.

परन्तु दो मेंढक पहाड़ी पर चढ़ने में सफल हो गए. जानते हैं क्यों? क्योंकि वे दोनों मेंढक बहरे थे. उन्होंने ना तो लोगों का शोर सुना और ना ही प्रतियोगिता छोड़ने वाले मेंढकों के बातें.

दोस्तों! जीवन में बहुत से लोग केवल इसीलिए सफल नहीं हो पाते, क्योंकि नकारात्मकता उन्हें पीछे धकेलती है. नकारात्मक बातें सुन सुन कर उनका उत्साह ठंडा पड़ जाता है. धीरे धीरे उनके मन में यह गलत धारणा बैठ जाती है कि यह तो बहुत मुश्किल है. कुछ लोग तो यहाँ तक सोच लेते हैं कि यह कार्यनामुमकिन है.

एक टोकरी मिटटी

एक गांव में एक बेईमान जमींदार था. गांव के भोले भाले लोगों को लूटने और उनकी जमीन हथियाने में वह माहिर था. उसके इन्ही दुर्गुणों के कारण गांव का हर व्यक्ति उससे घृणा करता था. परन्तु जरूरत के समय उधार देने वाला उस गांव में जमींदार के अलावा और कोई नहीं था. गांव के अधिकतर लोगों की ज़मीन वह अपनी मक्कारी से हथिया चूका था.

ऐसे ही एक बूढी औरत ने जमींदार से कुछ रपये उधर ले रखे थे. बहुत कोशिस करने के बाद भी वह जमींदार का क़र्ज़ नहीं उतार पाई. जमींदार ने उसके खेत पर कब्ज़ा कर लिया.

अगले दिन वह बुढिया जमींदार के पास गई. उसे देखते ही जमींदार गुस्सा हो गया.

बुढिया ने कहा, "मैं अपना खेत वापस मांगने नहीं आई हूँ. परन्तु इस खेत से मुझे बहुत लगाव है. अगर आप आज्ञा दें तो इस खेत की एक टोकरी मिट्टी, यादगार के रूप में ले जाना चाहती हूँ."

जमींदार को इस बात में कोई हानि नज़र नहीं आई और उसने बुढ़िया को एक टोकरी मिट्टी ले जाने की अनुमति दे दी.

बुढ़िया ने मिट्टी खोद कर टोकरी भर ली और जमींदार से कहा कि वह टोकरी उठवा कर उसके सिर पर रखने में सहायता करे.

जमींदार ने कहा, "बुढ़िया यह टोकरी बहुत भरी है, तू इस बोझ को नहीं उठा पाएगी. तू मर जायेगी"

बुढ़िया ने बहुत नम्रता से कहा, "यदि मैं एक टोकरी मिट्टी से मर जाउंगी, तो तू खुद की सोच, इतने लोगों के ज़मीन हड़प कर तू कैसे जी पायेगा?"

यह सुन कर ज़मींदार को अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ. उसने ना केवल उस बुढ़िया की, बल्कि गांव के हर व्यक्ति की ज़मीन लौटा दी.

Tuesday, 26 November 2013

सोने से तीन फुट दूर

आर.यू.डार्बी के एक अंकल गोल्डरश के दौर में "स्वर्ण की खोज के अभियान में जुट गये. वे खुदार्इ करने और अमीर बनने के लिये पशिचम दिशा में गये. 
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कर्इ सप्ताह की मेहनत के बाद उन्हें चमकते हुये स्वर्ण की झलक दिखार्इ दी. परंतु उस सोने को सतह तक लाने के लिये मशीनों की ज़रूरत थी. चुपचाप उन्होंने खदान का मुँह ढँक दिया और मैरीलैंड के विलियम्सबर्ग के अपने घर मैं लौट आये. उन्होंने अपने रिश्तेदारों और कुछ दोस्तों को सोने की खुदार्इ में सफलता के बारे मे बताया. उन्होंने मिलकर मशीनों को ख़रीदने के लिये आवश्यक धन जुटाया. अंकल और डार्बी खदान पर काम शुरू करने के लिये वापस लौटे.
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कच्चे सोने की पहली खेप को स्मेल्टर तक पहुँचाया गया. वहाँ यह पता चला कि उनकी खदान कालोरेडो की सबसे बढि़या खदान थी. कच्चे सोने की कुछ खेपों में ही उनके सारे क़र्ज़ उतर जाते और फिर लाभ की बारी आती.
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जैसे-जैसे खुदार्इ मशीनें नीचे जा रही थीं, डार्बी और अंकल की आशायें आसमान छू रही थीं. तभी अचानक कुछ हुआ. सोने की झलक गा़यब हो गर्इ. वे इन्द्रधनुष के आखि़री सिरे पर आ गये थे और स्वर्ण अब वहाँ नहीं था. वे खोदते रहे, इस आशा में कि एक बार फिर सोने की झलक दिख जाये-परंतु उनकी मेहनत बेकार गयी. आखि़रकार, उन्होंने अपना प्रयास छोडने का फैसला किया.
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उन्होंने एक कबाडी़ को मशीनें कौडियों के भाव बेच दीं और वापस घर लौट आये. कबाडी़ ने एक माइनिंग इंजीनियर को बुलवाकर खदान का इन्स्पेक्शन करवाया. इंजीनियर ने सलाह दी कि यह प्रोजेक्ट इसलिये असफल हुआ क्योंकि इसके मालिक यह नहीं जानते थे कि बीच में फाल्ट लाइन आती है. उसके विश्लेषण के अनुसार सोने की स्थिति उस स्थान से मात्र तीन फुट नीचे थी जहाँ डार्बी ने खुदार्इ बंद की थी. और इंजीनियर का अनुमान सच साबित हुआ.
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कबाडी़ को खदान से लाखों-करोडों डालर का सोना मिला, सिर्फ इसलिये क्योंकि वह जानता था कि हार मानने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित होता है.

(From ‘Think & Grow Rich’ By- Napoleon Hill)

धैर्य (Patience)

एक व्यक्ति रत्न (Gems) परखने की कला सीखना चाहता था. वह एक प्रसिद्द जौहरी के पास गया और उससे इस हुनर को सीखने का अनुरोध किया. पहले-पहल तो जौहरी ने इनकार कर दिया, लेकिन बार-बार कहने पर उसने उसे अगले दिन से आने को कह दिया.

अगले दिन जब वह व्यक्ति वहाँ पहुँचा, तो जौहरी ने उसे एक रत्न पकडा़ दिया और अपने काम में लग गया. वह कभी रत्नों को काटता, पॉलिश करताकभी तोलता; लेकिन पूरे दिन में उसने उस व्यक्ति से कोई बात नहीं की. अगले दिन फिर यही हाल रहा. एक सप्ताह तक रोजा़ना वह व्यक्ति काम सीखने की ललक में जौहरी के पास जाता और जौहरी उसे एक रत्न पकडा़ कर अपने काम में व्यस्त हो जाता.

जब कभी वह व्यक्ति उससे काम सीखने की बात करता तो जौहरी उसे कहता कि रोज़ आते रहने से जल्दी ही वह काम में पारंगत हो जायेगा.

आखि़रकार उस व्यक्ति के लिए चुप रहना मुश्किल हो गया. एक दिन उसने तय किया कि आज वह साफ़-साफ़ पूछ लेगा कि जौहरी उसे काम सिखाना भी चाहता है, या नहीं. उस दिन जैसे ही वह जौहरी के पास पहुँचा तो रोज़ की तरह जौहरी ने एक रत्न उसके हाथ पर रखा. उस व्यक्ति ने रत्न को देखते ही कहा, यह रोज़ वाला रत्न नहीं है.

उसका उत्तर सुन कर जौहरी मुस्कराते हुए बोलातुम काम सीखने लगे हो. अब जल्दी ही रत्नों की बारीकि़याँ भी समझने लगोगे. उस व्यक्ति का क्रोध हवा हो गया और वह बैठ कर चुपचाप रत्त्न को देखने लगा. वह अब समझ गया था कि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए धैर्य रखना आवश्यक है. 

Monday, 25 November 2013

Keep Driving

एक बार एक लड़की अपने पिता के साथ कार से एक पहाड़ी रास्ते पर जा रही थी. वह कार चला रही थी, पिता बराबर वाली सीट पर बैठे थे. कुछ दूर जाने के बाद अचानक आंधी चलने लगी. कुछ देर में बारिश भी आने लगी. लड़की ने देखा एक एक कर, कुछ कारें साइड में रुकने लगी.

उसने अपने पिता से कहा, "क्या करें, तूफ़ान बढ़ता जा रहा है?"

पिता ने कहा, "keep driving - तुम कार चलती रहो."

थोड़ी देर में, बारिश और तेज हो गई. दूर तक देखना मुश्किल होता जा रहा था. कुछ और गाड़ी वाले ड्राईवर अब अपनी अपनी गाड़ियाँ साइड में रोकने लगे थे. लड़की ने फिर अपने पिता से पुछा, "तूफ़ान और बढ़ गया है, रास्ता भी दूर तक साफ़ नहीं दिखाई दे रहा पापा, अब क्या करें?"

पिता ने बहुत शांत भाव से उत्तर दिया, "कार की रफ़्तार थोड़ी धीरे करो और चलती रहो." लड़की धीरे-धीरे कर चलाते हुए आगे बढ़ रही थी. सड़क पर अब कोई कोई गाड़ी चल रही थी, अधिकतर ड्राईवर अपनी गाड़ियां सड़क किनारे रोक चुके थे. लड़की ने हिम्मत रखी और धीरे धीरे कार चलाती रही.

कुछ देर में उसे रास्ता साफ़ दिखाई देने लगा, तूफ़ान अब कम हो रहा था. कुछ ही देर में वे तूफ़ान से बाहर निकल आये थे. अब वो लोग जहाँ पर थे वहां तूफ़ान नहीं था. धुप खिली हुई थी. पिता ने लड़की से कहा अब तुम कार को किनारे पर रोक सकती हो.

लड़की ने पुछा, "लेकिन अब क्यों पापा?"

पिता ने कहा, "तुम कार चलाती रही तो अब तूफ़ान से बाहर हो. जरा बाहर निकल कर नीचे देखो. जो लोग रुक गए थे वो सब, अब भी तूफ़ान में ही हैं."

दोस्तों! यदि आप भी किसी कठिनाई के समय हार मान लेते हैं, तो कठिनाई आपको अधिक परेशान करती है. परन्तु, बिना हिम्मत हारे, बिना हार माने, अगर आप साहस और धैर्य पूर्वक आगे बढ़ते रहते हैं, तो आप कठिनाई की स्थिति से जल्दी बाहर आ सकते हैं.

दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?

यह चीन के एक बूढ़े किसान की कहानी है. हमारे देश में किसान बैलों से हल चलाते हैं. चीन में यह कार्य घोड़ों द्वारा किया जाता है. बूढ़े किसान के पास एक घोड़ा था जो अब बूढ़ा होने लगा था. किसान घोड़े की मदद से अपना खेती का काम करता था. एक दिन अचानक, उसका घोड़ा कहीं भाग गया. किसान बहुत दुखी था. उसके पड़ोसी उसे सांत्वना देने आये. हर कोई कह रहा था, "कितने दुर्भाग्य की बात है, तुम्हारा घोड़ा भाग गया."

किसान ने सरलता पूर्वक उत्तर दिया, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"

कुछ दिन बाद, अचानक एक दिन, उसका घोड़ा वापस लौट आया. उसके साथ दो जंगली घोड़े और भी थे. किसान बहुत खुश हुआ. उसके पड़ोसी उसे बधाई देने लगे, "कितने सौभाग्य की बात है? तुम्हारा घोड़ा, नो केवल वापस आ गया, अपने साथ दो और घोड़े भी ले आया."

किसान ने कहा, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"

एक दिन उस किसान का बेटा एक जंगली घोड़े की पीठ पर बैठ कर उसे साध रहा था. घोड़ा बिदक गया. गिरने से किसान के बेटे की टांग टूट गई. उसके पड़ोसी सांत्वना देने लगे, "दुर्भाग्य ही है कि तुम्हारे बेटे की टांग टूट गई."

किसान ने फिर कहा, "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"

कुछ महीनों बाद एक दिन राजा की सेना उस गांव में आई और हर स्वस्थ व्यक्ति को जबरन सेना में भर्ती होने के लिये ले गए. परन्तु बूढ़ा होने के कारण किसान को और टांग टूटी होने के कारण उसके बेटे को छोड़ दिया. "दुर्भाग्य? सौभाग्य? कौन जाने?"

Saturday, 23 November 2013

मैं उन्हें पढ़ता हूं

एक बार एक व्यक्ति को मोटिवेशन पर एक किताब कहीं से मिल गई. उसने बड़ी लगन से किताब पढ़ी. पढने के बाद उसे अच्छा लगा. वह अपनी साइकल पर एक दुकान पर गया और 1000 रुपये की मोटिवेशनल किताबें खरीद कर लाया. कुछ महीनों बाद वह एक बाइक पर उसी दुकान पर गया और 10000 रुपये की और किताबें खरीद लाया. कुछ और महीने बीते, अबकी बार वह कार से उस दुकान पर गया और 20000 रुपये की किताबें खरीद कर लाया. कुछ महीने बाद वह लम्बी कार से उसी दुकान पर गया और 1 लाख रुपये की किताबें खरीदी. दुकानदार के सब्र का बाँध अब टूट चुका था. उसने उस व्यक्ति से पुछा, "भाई तुम्हारा स्टैण्डर्ड हर बार ऊंचा कैसे होता जाता है.

उस व्यक्ति ने कहा, "तुम्हारी दुकान से जो किताबें ले कर जाता हूं, उनके कारण."

दुकानदार ने कहा, "पर किताबें तो मेरे पास भी हैं?"

उस व्यक्ति ने कहा, "तुम किताबें केवल रखते हो, उन्हें बेचते हो. मैं उन्हें पढ़ता हूं."

दोस्तों! यही इन कहानी का सार है. ज्ञान अमूल्य है. प्रेरणात्मक या मोटिवेशनल किताबें खरीद लेने से या उन्हें खरीद कर बुक-शेल्फ में सजा देने से कुछ नहीं होने वाला. महत्त्व बुक्स का नहीं, उनमें छुपे ज्ञान का है.

Thursday, 21 November 2013

क्या आप अमीर बनना चाहते हैं?

मैंने बचपन में एक दोहा पढ़ा था. शायद आप लोगों में से बहुतों ने पढ़ा होगा:
कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय,
वा खाये बौराय जग, या पाये बौराय.
अर्थात सोने (धन) में धतूरे से सौ गुना अधिक नशा होता है, क्योंकि धतूरा तो खाने से नशा करता हैजबकि सोना (धन) पाने मात्र से नशा हो जाता है. सोना पाना या धन पाना, अर्थात अमीर होना. बहुत से लोग कहते रहते हैं, "आदमी को अमीर नहीं होना चाहिए, क्योंकि पैसा आदमी को बुराई की और ले जाता है. पैसा ही सब बुराइयों की जड़ है. अमीर आदमी कभी सुखी नहीं होता" आदि आदि. परन्तु ये कौन लोग हैं? ये वो लोग हैं जो खुद अमीर नहीं बन पाए, और यदि खुद अमीर बन भी गए तो, दूसरों को अमीर होते देखना नहीं चाहते.

यदि अमीर होना बुरी बात होती तो मैं, आप, या अन्य कोई भी इंसान अमीर बनना नहीं चाहता. यह बात सच है कि दौलत का अपना एक नशा होता है. पर यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस नशे का, हलके सुरूर की तरह आनंद लेते हैं, या यह नशा हमारे सिर चढ़ कर बोलता है? अमिताभ बच्चन की फिल्म 'शराबी' का प्रसिद्द गीत "नशा शराब में होता तो नाचती बोतल" आपने भी सुना होगा. दोस्तों! नशा शराब में नहीं, पीने वाले की सोच में होता है. कुछ लोग शराब के सुरूर का आनंद लेते हैं, जबकि कुछ अन्य लोग अत्यधिक शराब पी कर उधम मचाते हैं और सब को परेशान करते हैं. उसी तरह सज्जन व्यक्ति अपने धन के अनोखे सुरूर का आनंद लेते हैं, जब कि दूसरी तरह के लोग धन पाने के बाद इंसान को इंसान नहीं समझते और संसार की हर बुराई को अपना लेते हैं. प्रसिद्द संत रहीम दास जी ने कहा है:
जे रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग,
चन्दन विष व्यापै नहीं, लिपटे रहत भुजंग.
बहुत नशा होता है दोस्तों धन में, पर हमें उसका सदुपयोग करना है, दुरूपयोग नहीं. हमें इसके गुणों का लाभ उठाना है. महात्मा गाँधी ने भी अपने seven-sins में कहा है, Wealth is not a sin, but wealth without work is a sin.

मनुश्य का शरीर पांच तत्वों से बनता है, अग्नि, जल, वायु, आकाश और पृथ्वी. यही पाँचों तत्व अर्थात शक्तियां (energy) मनुष्य के शरीर को जीवन भर चलाती हैं. पर आज के युग में एक और शक्ति बहुत आवश्यक है, और वह है धन. बच्चा पैदा होते ही उसे भूख लगती है, उसे दूध चाहिए जो माँ से मिल जाता है. थोड़ा बड़ा होता है तो उसे खाना चाहिए, पहनने को कपड़े चाहिए, सिर पर छत चाहिए, थोड़ा और बड़ा होता है तो खिलोने चाहिए. स्कूल जाने लगता है तो पुस्तकें, पेंसिल, यूनिफार्म, स्कूल-फीस चाहिए, स्कूल-बस चाहिए, खेल कूद का सामान चाहिए, थोड़ा और बड़ा होता है तो साईकिल चाहिए, बाइक चाहिए. 20-25 वर्ष की आयु तक उसका सारा खर्च माँ-बाप उठाते हैं. शादी में खर्च, शादी के बाद पत्नी का खर्च, फिर बच्चों का भी. बीमार हो गए तो इलाज का खर्च, रहने के लिए घर, आवागमन के लिए बाइक या कार, बात करने के लिए मोबाइल, काम करने के लिए लैपटॉप और भी न जाने क्या-क्या. यह सब, क्या पैसे के बिना संभव है? नहीं. जन्म से ले कर मृत्यु तक हर काम में पैसे की आवश्यकता होती है. आज के युग में बिना पैसे के जीवन संभव ही नहीं है. शायद इसीलिए, पैसे अर्थात धन को आज के युग में, जीवन को चलाने वाली छठी energy माना जाता है.

हाँ तो हम बात कर रहे थे कि, "क्या आप अमीर बनना चाहते हैं?" आपका उत्तर मैं जानता हूँ. परन्तु एक बार पूरे मन से आप मुझे और अपने आप से कहिये कि आप अमीर बनना चाहते हैं. अपने लक्ष्य निर्धारित कीजिये. यदि आपने मेरे पहले के लेख पढ़े हैं तो आप जन चुके होंगे कि लक्ष्य निर्धारण क्यों, कैसे और किस प्रकार के निर्धारित करें. आपने अपनी सक्सेस डायरी बनाई होगी और उसमें अपने लक्ष्य लिखे भी होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है. अगर नहीं बनाई है तो कोई बात नहीं. चलिए अब बना लीजिये और उसके पहले पेज पर अपने लक्ष्य स्पष्ट रूप से लिख लीजिये.

दोस्तों! जैसा कि हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि जीवन में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता. (There are no free lunches) हमें हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है. आपका अपनी सफलता का सपना, अमीर बनने का सपना भी ऐसे ही पूरा होने वाला नहीं है. इसके लिये भी आपको कीमत चुकानी पड़ेगी. आप इस लेख को पढ़ रहे हैं, इसका अर्थ है कि आप अपनी सफलता के और अमीर बनने के सपने की कीमत चुकाने के लिये काफी हद तक तैयार हैं. फिर भी, अपनी सक्सेस डायरी के दुसरे पेज पर निम्नलिखित प्रश्न और उनके सामने उनके उत्तर लिखिए:

1. क्या आप ऐसे लोगों को छोड़ने के लिए तैयार हैं, जो आपकी तरक्की, आपकी सफलता में रूकावट पैदा करते हैं?

2. क्या आप प्रेरणा-दायक पुस्तकें, लेख आदि पढने एवं इसके विडियो देखने के लिए तैयार हैं?

3. क्या आप प्रेरणा-दायक और self-development सेमिनार या वर्कशॉप अटेंड करने के लिए तैयार हैं?

4. क्या आप TV serials को छोड़ कर news-channels, business channels देखने के लिए तैयार हैं?

5. क्या आप सफल और अमीर व्यक्तिओं की जीवनियाँ (biographies) पढने के लिए तैयार हैं?

6. क्या आप अपनी सोच में से नकारात्मकता को निकालने के लिए तैयार हैं?

7. क्या आप सफल एवं अमीर व्यक्तियों के साथ उठने-बैठने, उनकी संगति करने के लिये तैयार हैं?

यदि इन सब प्रश्नों का उत्तर हाँ है तो आप सही रास्ते पर हैं. आपको सफल होने से, अमीर बनने से कोई भी रोक नहीं सकता. यदि इनमें से एक भी प्रश्न का उत्तर ना में है, तो पहले उस ना को हाँ में बदलीये और फिर आगे बढिए. आइये अब इन प्रश्नों को थोड़ा गहराई में समझने का प्रयास करते हैं.

बचपन से ही हमें माता-पिता, रिश्तेदारों, दोस्तों आदि से यही सुनने को मिलता है कि पैसे से प्यार मत करो. यहाँ तक कि जब हम किसी धार्मिक स्थान पर जाते हैं तो वहां भी यही प्रवचन सुनने को मिलता है. पर क्या यह सब लोग पैसे से प्यार नहीं करते? शायद करते हैं, पर अन्दर ही अन्दर. या फिर शायद वह इस बात से अनजान हैं कि, जाने-अनजाने उन्हें भी पैसे से प्यार है. इनमें से किसी से किसी से भी पूछ कर देखिये क्या उन्हें बड़ा और सुन्दर घर नहीं चाहिये? बड़ी कार नहीं चाहिये? महंगा मोबाइल फ़ोन नहीं चाहिये? बच्चों की अच्छी शिक्षा नहीं चाहिये? यदि चाहिये, तो क्या यह सब, बिना पैसे के आ जाएगा? आप ऐसे दोस्तों को छोड़ सकते हैं, अन्य लोगों को छोड़ सकते हैं, पर अपने परिवार एवं रिश्तेदारों को नहीं. क्या करेंगे आप? उत्तर बेहद आसान है. आप अपने ऊंचे लक्ष्यों एवं अमीर बनने की चाहत को ऐसे लोगों से शेयर ना करें. और उनकी नकारात्मक बातों को अनदेखा करें. इस विषय पर फिर किसी लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे.

जब आप प्रेरणादायक (inspirational and motivational) लेख या पुस्तकें पढ़ते हैं, विडियो देखते हैं, सेमिनार या वर्कशॉप अटेंड करते हैं, तो अन्दर ही अन्दर आप में एक अनोखी चेतना का संचार होता है, आपकी इच्छाशक्ति बढती है, आप एक प्रकार के जोश से भर जाते हैं और आपकी सफलता की राह आसान हो जाती है. आप अपने अमीर बनने के सपने के और अधिक करीब हो जाते हैं. सफल एवं अमीर लोगों की जीवनियाँ (biographies) पढने से भी आप ऐसे ही जोश से ओतप्रोत हो जाते हैं. यार! मुझे भी ऐसा बनना है.

आपके जीवन में इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि आनंदी कितनी बार बदल गई है, या फिर जगिया की शादी गंगा से होती है साँची से. इन फ़ालतू के TV serials में व्यर्थ समय बर्बाद करने की अपेक्षा न्यूज़ चैनल्स या बिज़नेस चैनल्स आपके ज्ञान को कहीं अधिक बढ़ाएंगे जो आपको अपनी सफलता की और बढ़ने में सहायक होगा. हां थोड़ी देर मनोरंजन भी आवश्यक है.

आपकी सकारात्मक या नकारात्मक सोच ही आपके भविष्य का निर्धारण करती है. वो कहते हैं ना कि जो हम सोचते हैं, वही हम बन जाते हैं. विचारों की नकारात्मकता हमें आगे बढ़ने से रोकती है, जबकि सकारात्मक सोच हमें सफल होने में, अमीर बनने में सहायता करती है. इस विषय पर फिर किसी लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे.

जब आप सफल एवं अमीर लोगों के साथ मेल जोल बढ़ाते हैं, उनके साथ उठते बैठते हैं, तो उनके विचारों से, उनकी सोच से अवगत होते हैं. उनकी संगति का सकारात्मक असर आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है. आपकी सोच सकारात्मक होने लगती है, और आप अपने अमीर बनने के सपने के और अधिक करीब आ जाते हैं.

यह लेख बहुत बड़ा हो जाएगा. इसलिए शेष भाग अगले लेख में.

अपने सपनों को साकार करने के लिये मेरे आर्टिकल्स पढ़ते रहियेअपनी राय मुझे कमेंट्स के माध्यम से भेजते रहिये. तब तक के लिए शुभ-रात्रि, good-night, शब्बाखैर. CA बी. एम्. अग्रवाल

Wednesday, 20 November 2013

रिश्तों में मजबूती

एक बड़ा उत्सव चल रहा था. एक आदमी और उसकी मंगेतर शादी कर रहे थे. दोनों के दोस्त, रिश्तेदार और परिवार के सभी लोग शादी के समारोह में हिस्सा लेने के लिए आये थे. दुल्हन अपने शादी के जोड़े में बहुत खूबसूरत लग रही थी, और दूल्हा अपनी शेरवानी में. ख़ुशी-ख़ुशी शादी संपन्न हो गई.

कुछ महीने बाद, पत्नी एक प्रस्ताव के साथ पति के पास आई: "हम अपनी शादी को और भी मजबूत कर सकते हैं, इसके बारे में कुछ समय पहले मैंने एक पत्रिका में पढ़ा था. हम दोनों अलग-अलग अपनी-अपनी एक लिस्ट बनायेंगे और उसमें वह सब बातें लिखेंगे, जो हमें, एक दूसरे में पसंद नहीं हैं. फिर हम दोनों साथ बैठ कर अपनी-अपनी लिस्ट पढेंगे और प्रकार हम उन चीज़ों को दूर कर सकेंगे जो दूसरे को पसंद नहीं हैं."


पति भी इस बात पर सहमत हो गया. दोनों ने तय किया कि अगले दिन सुबह नाश्ते के समय दोनों अपनी अपनी लिस्ट पढेंगे. वे दोनों, दिन भर, आराम से इस सवाल के बारे में सोचते रहे.अगली सुबह, नाश्ते की मेज़ पर, वे अपनी अपनी लिस्ट के साथ उपस्थित थे."पहले मैं शुरू करूंगी" पत्नी ने कहा और अपनी लिस्ट बाहर निकाली. इस में कई आइटम थे. उसने छोटी बड़ी सब बातें लिखते लिखते 3 पेज भर रखे थे.
पत्नी ने अपनी छोटी-छोटी नाराजगियों की लिस्ट पढनी शुरू की. उसके पति की आंखों में आंसू दिखाई देने लगे."क्या हुआ?" उसने पूछा. "कुछ नहीं, तुम अपनी लिस्ट पढो." पति ने कहा.अपनी 3 पेज की लिस्ट पढने के बाद उसने कहा, "अब आप अपनी लिस्ट पढिये. फिर हम दोनों लिस्ट के बारे में विचार करेंगे."पति ने कहा, "मेरी लिस्ट में कुछ भी नहीं है, 
तुम सुंदर और अद्भुत हो. तुम जैसी हो, मेरे लिये परिपूर्ण हो. मैं नहीं चाहता, कि तुम मेरे लिए अपने आप को बदलो."

पति की ईमानदारी और अपने लिए उसके प्यार को देख कर, पत्नी बहुत खुश हो गई. अब आंसू उसकी आँखों में छलक रहे थे.कोई भी समझदार पति यदि अपनी पत्नी में कुछ बात नापसंद करता है तो उसे पत्नी की कोई और बात पसंद होती है, जो नापसंद बात को महत्वहीन कर देती है.जीवन में कई बार हम निराश हो जाते हैं और एक दुसरे में बुराइयां ढूंढना शुरू कर देते हैं. यदि हमें रिश्तों में मजबूती लानी है, तो हमें एक दुसरे के अवगुण ढूँढने की अपेक्षा उसकी अच्छाइयां ढूंढनी चाहिए. ईश्वर ने सौंदर्य, प्रकाश और नेमतों से भरी, एक अद्भुत दुनिया हमें दी है. क्यों हम बुरी, निराशाजनक या कष्टप्रद चीजों की तलाश में समय बर्बाद करते हैं? हम में से कोई भी पूर्ण नहीं है. लेकिन फिर भी हम दूसरों में पूर्णता ढूंढते हैं. हम यदि दूसरों की कमियों के बजाय, गुणों को देखें, कठिनाइयों के समय दूसरे की सहायता करें, तो रिश्ते अवश्य ही सुन्दर और मज़बूत बनेंगे.

रास्ते का पत्थर

बहुत पुरानी बात है. एक राजा ने एक दिन बीच सड़क पर एक बड़ा पत्थर रख दिया और पास ही झाड़ियों के पीछे छुप कर बैठ गया. राज्य के धनी व्यापारी और दरबारियों में से कुछ उस सड़क से गुजरे. हर कोई उस पत्थर से बच कर निकल गया. किसी ने भी उसे हटाने के लिये नहीं सोचा. उल्टे उनमें से अधिकतर लोग बडबडाते हुए जा रहे थे कि राजा नगर और सड़कों का ध्यान नहीं रखता. और तो और उनमें राज्य के वह अधिकारी भी थे जिनका काम सड़कों का ध्यान रखना था.

तभी सिर पर सब्जियों की भारी टोकरी लिये एक किसान वहां आया और बीच राह में पत्थर देख ठिठक कर रुक गया. उसने अपनी सब्जियों की टोकरी एक तरफ रखी और उस पत्थर को सड़क से हटाने का प्रयास करने लगा. पत्थर बहुत बड़ा और भारी था, इसलिए किसान को बहुत जोर लगाना पड़ रहा था. इसी बीच कई और लोग वहां से गुजरे पर किसी ने भी किसान की सहायता नहीं की. उल्टे उसका मजाक उड़ाया, "देखो कितना पागल है, बेकार इतनी मेहनत कर रहा है". काफी देर मेहनत करने के बाद वह उस पत्थर को सड़क से हटाने में सफल हो गया.

किसान ने अपना पसीना पोंछा और अपनी सब्जियों की टोकरी उठा कर चलने लगा. तभी झाड़ियों के पीछे से निकल कर राजा सामने आ गया. राजा ने किसान की बहुत सराहना की और उचित इनाम दिया. 

हर बाधा हमारे लिये एक सुअवसर प्रस्तुत करती है.

Tuesday, 19 November 2013

आलू, अंडे और कॉफ़ी

एक बार एक दुखी लड़की अपने पिता के पास आई और कहा, "मैं अपने जीवन से बहुत परेशान हूँ. मेरे जीवन में एक समस्या सुलझती नहीं है कि दूसरी समस्या आ जाती है. क्या करूं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा पापा?"

उसके पापा जो कि एक शेफ थे, उसे रसोई में ले गए. उन्होंने तीन बर्तनों में पानी डाला और गैस पर रख दिया. थोड़ी देर बाद जब तीनों बर्तनों में पानी उबलने लगा तो उन्होंने एक में आलू, दूसरे में अंडे और तीसरे में कॉफ़ी बीन्स डाल दिए और उन्हें उबलने दिया. इस बीच उन्होंने लड़की से कुछ नहीं कहा. लड़की सोच-सोच कर परेशान थी कि उसके पापा कर क्या रहे हैं?

कुछ देर बाद उन्होंने गैस बंद कर दी और तीनों बर्तनों को नीचे उतार लिया. पहले बर्तन से आलू निकाल कर एक प्लेट में रखे, दुसरे बर्तन से अंडे निकल कर दूसरी प्लेट में रखे और तीसरे बर्तन से कॉफ़ी को एक कप में डाला. इसके बाद उन्होंने बड़े शांत भाव से लड़की की तरफ देखा और पुछा,"बेटी! तुमने क्या देखा? "

"आलू, अंडे और कॉफी" लड़की ने उत्तर दिया.उन्होंने कहा, "ज़रा करीब से देखो और आलू को छूओ." 
लड़की ने वैसा ही किया और कहा कि वे नरम थे. इसके बाद उन्होंने उसे एक अंडा लेकर उसे तोड़ने के लिए कहा. खोल से लिकालने के बाद उबला अंडा सख्त था. अंत में, उन्होंने कॉफ़ी का कप उसे देते हुए कहा, "पियो." एक घूंट कॉफी की महक से उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई.

"पापा इसका क्या मतलब है? " उसने पुछा.पापा ने कहा, "आलू, अंडे और कॉफी बीन्स, प्रत्येक ने, एक ही विपरीत परिस्थिति, यानि उबलते पानी का सामना किया, परन्तु तीनों वस्तुओं की एक अलग प्रतिक्रिया हुई. आलू मजबूत और कठोर था लेकिन उबलते पानी में यह नरम और कमजोर हो गया. अंडा जो कि एक नाज़ुक खोल में liquid को अपने अन्दर समेटे था, उबलते पानी में जा कर कठोर हो गया. पर सबसे अलग कॉफ़ी बीन्स थे जो उबलते पानी में घुल-मिल गए और एक नया रूप ले लिया.इतना कह कर उन्होंने लड़की से पुछा, "कौन सी वस्तु बनोगी आप? विपरीत परिस्थितियों में आपकी प्रतिक्रिया कैसी होगी? आलू, अंडा या कॉफी बीन्स?"

लड़की अब सब कुछ समझ गई थी.


दोस्तों! हम में से प्रत्येक के जीवन में अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियां आती हैं, लेकिन वास्तव में जो चीज मायने रखती है, वह यह है कि हम उनसे कैसे निपटते हैं, हमारे भीतर क्या होता है? विपरीत परिस्थिति हमें कमज़ोर बनाती हैं, या मज़बूत या फिर कॉफ़ी बीन्स की तरह कुछ और?

दुनिया बदलना चाहता था

अपनी जवानी के दिनों में एक आदमी दुनिया बदलना चाहता था. कुछ वर्षों बाद जब उसे लगा कि वह दुनिया को नहीं बदल पायेगा तो उसने सोचा चलो मैं अपने देश को ही बदल डालता हूँ. परन्तु कुछ और वर्षों बाद उसे ऐसा लगने लगा देश बदलना तो मुश्किल है, चलो मैं अपने शहर को बदलता हूँ. जब वह शहर को भी नहीं बदल पाया तो सोचा कि चलो शहर नहीं बदल पाया तो क्या, मैं अपने परिवार को तो अवश्य ही बदल सकता हूँ.

आपने ठीक सोचा. वह अपने परिवार को भी नहीं बदल पाया. इस बीच वह बूढ़ा हो गया था.

अब, एक बूढ़े आदमी के रूप में, उसे एहसास हुआ कि मैं केवल अपने आप को बदल सकता हूँ.

वह अपने आप को बदलने का प्रयास करने लगा और उसमें सफल भी रहा. 

पर क्या आपको नहीं लगता कि अब बहुत देर हो चुकी थी. यदि बहुत पहले उसने अपने आप को बदला होता, तो इसका प्रभाव उसके परिवार पर पड़ता और परिवार बदल जाता. उसमें और उसके परिवार में बदलाव देख कर शायद उसका मोहल्ला, फिर उसका शहर भी बदल सकता था. इसी तरह धीरे धीरे शायद उसका देश भी बदल जाता और शायद एक दिन दुनिया भी.

दोस्तों! इस कहानी का एक और भी सन्देश है कि कुछ प्रयासों के बाद अधिकतर लोग अपने लक्ष्य को छोटा करते चले जाते हैं और यही सोच आपकी सफलता को रोकती है.

Monday, 18 November 2013

पूँछ में आग

एक बार कुछ चिडियां आकाश में उड़ रही थीं. तभी एक हवाई जहाज़ वहां से बहुत तेजी से गुजरा. एक चिड़िया बहुत हैरान हो गई. उसने दूसरी चिड़िया से पूछा, "यह क्या चीज है? यह देखने में तो हमारे जैसा ही लग रहा है. परन्तु यह इतनी तेजी से कैसे उड़ रहा है?"

उसके साथ उड़ रही दूसरी चिड़िया ने कहा, "यह एक हवाई जहाज़ है. और यह भी ठीक है कि यह देखने में हमारे जैसा ही लगता है. परन्तु तुमने शायद देखा नहीं, उसकी पूंछ में आग लगी है. जिस दिन तुम्हारी पूँछ में आग लग जायेगी, तुम उससे भी तेज उड़ पाओगी."

दोस्तों! दूसरी चिड़िया की बात शायद आपको मज़ाक लगेगी? परन्तु यह बिलकुल सच है. पूंछ में आग लगना एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है ज्वलंत इच्छा (burning desire) का होना. जब तक कोई इच्छा ज्वलंत-इच्छा नहीं बनती तब तक सफलता नहीं मिलती. जिस किसी को भी सफलता की चाहत है, उसे अपनी पूंछ में आग लगानी पड़ेगी, अर्थात अपनी इच्छा को ज्वलंत-इच्छा बनाना पड़ेगा. यह कहानी कम से कम शब्दों में सफलता का मार्ग दिखाती है.

Friday, 15 November 2013

काम का मूल्यांकन

एक छोटे शहर में एक दुकान के बाहर एक पब्लिक टेलीफोन बूथ था. एक दिन एक लड़का वहां आया और फ़ोन करने लगा. दुकानदार उस समय कुछ खाली था सो उस लड़के की बातें सुनने लगा.

फ़ोन मिलने पर लड़के ने कहा, "नमस्ते मैडम, क्या मुझे आपके यहाँ माली का काम मिल सकता है?"

दूसरी तरफ से महिला ने उत्तर दिया, "परन्तु हमारे पास तो पहले से ही एक माली है."

लड़का बोला, "मैडम मैं उस व्यक्ति से आधी तनख्वाह में भी काम करने को तैयार हूँ."

इस पर महिला ने कहा, "मैं अपने वर्तमान माली के काम से बहुत संतुष्ट हूँ."

लड़के ने अब अधिक दृढ़ता के साथ कहा, "मैडम मैं माली का काम करने के साथ साथ, आपके घर का झाड़ू-पोछा मुफ्त में कर दूंगा."

महिला ने कहा, "नहीं, शुक्रिया."
अपने चेहरे पर एक मुस्कान लिये, लड़के ने फ़ोन का रिसीवर रख दिया. 
दुकान का मालिक, जो यह सब सुन रहा था, लड़के के पास गया और कहा, "बेटा! मुझे तुम्हारा रवैया बहुत पसंद आया, मुझे लगता है कि तुम्हे नौकरी की सख्त जरूरत है. मैं तुम्हे नौकरी दूंगा."

लड़के ने कहा, "नहीं, धन्यवाद."

इस पर दुकानदार ने कहा, "लेकिन अभी तो तुम नौकरी के लिए विनती कर रहे थे?"


लड़का बोला, "नहीं सर , मैं तो बस अपने काम का मूल्यांकन कर रहा था. इन महिला के यहां मैं ही माली का काम देखता हूँ और जानना चाहता था कि मैं अपना काम ठीक से कर रहा हूँ या नहीं?"
दोस्तों! काम छोटा हो या बड़ा, पूरी निष्ठा एवं इमानदारी से करना चाहिये. साथ ही साथ अपने कार्य का समय समय पर मूल्यांकन भी करते रहना चाहिये.

Thursday, 14 November 2013

स्वभाव अपना अपना

एक बूढे आदमी ने एक बिच्छू को डूबते देखा और पानी से बाहर निकलने का फैसला किया. बहुत शांति पूर्वक, बिच्छू तक पहुँचने के लिए, उसने अपना हाथ बढ़ाया और बिच्छू को उठा लिया. बिच्छू ने उसके हाथ पर डंक मार दिया. दर्द के कारण बूढ़े आदमी का हाथ हिला और बिच्छू वापस पानी में गिर गया. बिच्छू को फिर से डूबता देख, उस आदमी ने दुबारा उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन बिच्छू ने उसे फिर से उसे डंक मार दिया. उस आदमी के हाथ से बिच्छू फिर से छूट गया. एक बार फिर उस आदमी ने बिच्छू को बचाने के लिए हाथ बढाया ही था कि, पास खड़े एक लड़के ने, जो यह सब देख रहा था कहा, "बाबा आप यह क्या कर रहे हैं? आप बार बार इसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि यह दुष्ट बिच्छू बार बार डंक मार कर आपको कष्ट पहुंचा रहा है. आप इसे डूब क्यों नहीं जाने देते?"
बूढ़े आदमी ने बहुत शांतिपूर्वक कहा,  "बेटा! बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है मदद करना. जब यह बिच्छू अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता तो भला मैं मनुष्य हो कर अपना स्वभाव कैसे छोड़ सकता हूँ?"
फिर बूढ़े आदमी ने क्षण भर के लिए सोचा और पास के पेड़ से एक पत्ता लेकर, बिच्छू को 
पानी से बाहर खींच लिया और उसकी जान बचाई .

अपनी प्रकृति, अपना स्वभाव नहीं बदलन चाहिये. किसी की सहायता करते हुए, स्वयं को तकलीफ से बचाने के लिए सावधानी अवश्य बरतनी चाहिये परन्तु अपना स्वभाव कभी नहीं छोड़ना चाहिए.

शब्दों का अंतर

एक अंधा लड़का एक इमारत की सीढ़ियों पर बैठा था. उसके पैरों के पास एक टोपी रखी थी. पास ही एक बोर्ड रखा था, जिस पर लिखा था, "मैं अंधा हूँ, मेरी मदद करो." टोपी में केवल कुछ सिक्के थे.

वहां से गुजरता एक आदमी यह देख कर रुका, उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकले और टोपी में गिरा दिये. फिर उसने उस बोर्ड को पलट कर कुछ शब्द लिखे और वहां से चला गया. उसने बोर्ड को पलट दिया था जिससे कि लोग वह पढ़ें जो उसने लिखा था.


जल्द ही टोपी को भरनी शुरू हो गई. अधिक से अधिक लोग अब उस अंधे लड़के को पैसे दे रहे थे. दोपहर को बोर्ड बदलने वाला आदमी फिर वहां आया. वह यह देखने के लिए आया था उसके शब्दों का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा? अंधे लड़के ने उसके क़दमों की आहट पहचान ली और पूछा, "आप सुबह मेरे बोर्ड को बदल कर गए थे? आपने बोर्ड पर क्या लिखा था?"


उस आदमी ने कहा मैंने केवल सत्य लिखा था, मैंने तुम्हारी बात को एक अलग तरीके से लिखा, "आज एक खूबसूरत दिन है और मैं इसे नहीं देख सकता."


आपको क्या लगता है? पहले वाले शब्द और बाद वाले शब्द, एक ही बात कह रहे थे?


बेशक दोनों संकेत 
लोगों को बता रहे थे कि लड़का अंधा था. लेकिन पहला संकेत बस इतना बता रहा था कि वह लड़का अंधा है. जबकि दूसरा संकेत लोगों को यह बता रहा था कि वे कितने भाग्यशाली हैं कि वे अंधे नहीं हैं. क्या दूसरा बोर्ड अधिक प्रभावशाली था?

दोस्तों! यह कहानी हमें बताती है कि, जो कुछ हमारे पास है उसके लिए हमें आभारी होना चाहिए. रचनात्मक रहो. अभिनव रहो. अलग और सकारात्मक सोच रखो. लोगों को अच्छी चीजों की तरफ, समझदारी से आकर्षित करो. जीवन तुम्हे रोने का एक कारण देता है, तो तुम्हारे पास मुस्कुराने के लिए 10 कारण हैं. 

Wednesday, 13 November 2013

क्या Law of Attraction काम करता है?

क्या "आकर्षण का सिद्धांत" (Law of Attraction) काम करता है? यह प्रश्न करीब करीब हर उस इंसान के मस्तिष्क में उठता है जो इस को पढता है या इस पर बनी विडियो देखता है. इसका उत्तर है, हां यह काम करता है. परन्तु उस प्रकार नहीं, जिस प्रकार विडियो में दिखाया गया है. विडियो बनाने वाले लोगों को अपना विडियो बेचना है, इसलिए वह हर चीज़ को बहुत आसान बना कर दिखाते हैं, कि बस आपने केवल सोचना है, कुदरत (इश्वर) को एक मेनू-कार्ड की तरह इस्तेमाल करते हुए अपना आर्डर देना है और वह, अलादीन के जिन्न की भांति सब कुछ ला कर आपके क़दमों में डाल देगा. दोस्तों! वास्तविक जिंदगी में ऐसा नहीं होता. 

आइये थोड़ा विस्तार से इस पर विचार करते हैं.

सिद्धांत, कुदरत के बनाये एक प्रकार के नियम हैं, जो निरंतर अपना कार्य करते हैं. इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि हम उन नियमों को जानते हैं या नहीं जानते, उन्हें मानते हैं या नहीं मानते. हमारे मानने या ना मानने से ये सिद्धांत बदल नहीं जाते, ये अपना कार्य निर्धारित रूप से करते जाते हैं. हम गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को मानें या ना मानें. ऊंचाई से छलांग लगाने से हम उड़ नहीं जायेंगे, बल्कि नीचे ही गिरेंगे. क्योंकि पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण हर वस्तु को अपनी और आकर्षित करती है, उसे अपने और खींचती है. ठीक उसी प्रकार, जैसे अन्य सिद्धांत अपना कार्य करते हैं. जैसे उर्जा से तरल पदार्थ (liquid), भाफ़ (steam) बन जाता है, ठण्ड से भाफ़ द्रव (liquid) बन जाती है. इसी तरह आकर्षण का सिद्धांत भी अपने नियमों के अनुसार ही कार्य करता है, चाहे हम उसे मानें या ना मानें.

दोस्तों! हमने देखा कि किस प्रकार प्रकृति के सिद्धांत अपना कार्य करते हैं? इसी प्रकार "आकर्षण का सिद्धांत" (Law of Attraction) भी अपना कार्य करता है. अब यदि हम चाहें तो इस सिद्धांत को भी अपने फायदे के लिए प्रयोग कर सकते हैं, जैसे हम अन्य सिद्धांतों को प्रयोग में लाते हैं. आग का सिद्धांत है जलाना, पर हम इसे खाना पकाने के लिए प्रयोग करते हैं. यही आग यदि सावधानी पूर्वक प्रयोग ना की जाए तो यह हमें जला भी सकती है. इसी आग की शक्ति से भाफ़ (steam) बनती है जो बड़े-बड़े जहाज़ों को रेल-इंजनों को चलाती है. यदि हम सही तरीके से "आकर्षण के सिद्धांत" को प्रयोग में लायेंगे तो उससे बहुत लाभ उठा सकते हैं, अन्यथा, यही सिद्धांत अपना कार्य करते हुए हमारा अहित भी कर सकता है.

सबसे पहले आती है हमारी सोच. जो हम सोचते हैं वही हम बन जाते हैं. हमें अपनी सोच सकारात्मक रखनी है. यदि हमारी सोच सकारात्मक है, तो यह सिद्धांत हमें सकारात्मक परिणाम देगा, अन्यथा हमारी नकारात्मक सोच के चलते भी यह तो अपना कार्य करता ही जाएगा, पर ज़रा सोचिये इस प्रकार हमारा कितना अहित हो सकता है? यदि इस सिद्धांत का प्रयोग ठीक से किया जाए तो 'हम जो चाह सकते हैं, वह हम पा सकते हैं.'

दोस्तों! दुनिया में दो प्रकार के विश्वास होते हैं. एक है विश्वास और दूसरा है अंधविश्वास. ईश्वर है, यह एक विश्वास है परन्तु ईश्वर ही हर अच्छे बुरे कार्य या परिणाम के लिए उत्तरदायी है, यह अंधविश्वास है. आकर्षण के सिद्धांत में सबसे पहले यह बताया जाता है कि आपको अपने लक्ष्य लिखने हैं. यह सच है कि लिखने से कोई भी बात हमारे दिमाग में जल्द और गहराई तक बैठती है और हमारी सोच को प्रभावित करती है. एक दूसरा तरीका भी इस बात के लिए यह भी बताया जाता है कि आप अपने लक्ष्यों की तस्वीरें लगा कर एक विज़न-बोर्ड बनाएं. चाहे आप अपने लक्ष्यों को लिखें या फिर विज़न-बोर्ड बनाएं, तात्पर्य यह है कि आपके लक्ष्य जितना अधिक आपके सामने रहेंगे, उतना ही आप उन्हें याद रख पायेंगे. वो कहते हैं न किout of sight, out of mind. प्रतिदिन आपके दिमाग में आने वाले हज़ारों विचारों में, आपके लक्ष्य कहां खो जायेंगे, पता भी नहीं चलेगा. लिखे हुए लक्ष्य या विज़न-बोर्ड का कार्य है आपकी इच्छाओं को को ज्वलंत-इच्छाएं (burning desire) बनाना. पर यदि आप यह सोचते हैं, कि केवल लिख देने से या विज़न-बोर्ड बना देने भर से आपको आपके लक्ष्य प्राप्त हो जायेंगे, तो यह आपका अंध-विश्वास है. आपने देखा होगा कि बहुत से लोग अपने ड्राइंग-रूम में बड़ी-बड़ी मंहगी कारों के या बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स के चित्र लगाते हैं, बहुत से हेयर-कटिंग सैलून में भी ऐसी तस्वीरें लगी रहती हैं, पर बरसों बाद भी ऐसे लोगों के पास वैसी बड़ी-बड़ी मंहगी कारें या बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स नहीं आती. तो यह सोचना कि लिखने या विज़न-बोर्ड बनाने मात्र से आपको आपके लक्ष्य प्राप्त हो जायेंगे, यह अंध-विश्वास है. जहाँ विश्वास आपका हित-साधक है, वहीँ अन्धविश्वास आपका अहित ही करता है.

जब अपने लक्ष्यों, अपनी इच्छाओं पर आप पूरा ध्यान केन्द्रित (focus) करेंगे, आपकी इच्छाएं burning desires बन जायेंगी. आपको अपने लक्ष्यों तक पहुँचने के अनेकों रास्ते नज़र आयेंगे, उन रास्तों पर चलते हुए जब आप जोश के साथ प्रयत्न करेंगे, तो आपके लिए अपने लक्ष्य प्राप्त करना आसान हो जाएगा. अर्थात केवल सोचने से या लिखने से आपको आपके लक्ष्य प्राप्त नहीं होने वाले. अपनी सोच से अपने लक्ष्यों को अपनी इच्छाओं को ज्वलंत इच्छाएं बनाना है और अपनी कल्पना में अपने लक्ष्यों को पूरा होते देखने का अनुभव (visualise) करना है. तब बनेंगी आपकी इच्छाएं burning desires. जब आपकी इच्छाएं burning desires बन जायेंगी, आगे का रास्ता आपके लिए आसान हो जाएगा. इसमें आपका विश्वास भी बहुत महत्वपूर्ण पार्ट अदा करता है. यदि आप मन में यही सोचते रहते हैं, कि यह सिद्धांत काम करेगा या नहीं? यह आपके अनुसार कार्य नहीं करेगा.

एक और बात भी यहां सामने आती है, वह है आपकी इच्छाशक्ति. आकर्षण का सिद्धांत आपकी इच्छाशक्ति को दृढ बनाता है. आपकी इच्छाशक्ति बहुत सी समस्याओं (जैसे बिमारी, आपसी सम्बन्ध आदि) से निकलने में आपका बहुत साथ देती है. 

इस सिद्धांत को कैसे प्रयोग करना है? इसके लिए आपको क्या करना है और क्या नहीं? इसकी चर्चा हम फिर किसी लेख में करेंगे.

अपने सपनों को साकार करने के लिये मेरे आर्टिकल्स पढ़ते रहियेअपनी राय मुझे कमेंट्स के माध्यम से भेजते रहिये. तब तक के लिए शुभ-रात्रि, good-night, शब्बाखैर. CA बी. एम्. अग्रवाल